यूरोप इन दिनों मणिपुरी ब्लैक राइस का मुरीद हो चला है। स्थानीय भाषा में चाक हाओ के नाम से प्रसिद्ध इस सुगंधित पहाड़ी ब्लैक राइस की मांग यूरोपीय देशों में काफ़ी बढ़ रही है। यही वजह है कि यूरोप से एक मिट्रिक टन ब्लैक राइस का ऑर्डर मिला। पहली बार एक मीट्रिक टन जैविक मणिपुरी काला चावल इम्फाल से यूरोप को निर्यात किया गया है।
इस कंसाइन्मेंट को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने 12 अगस्त को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। साथ ही देश के अन्य राज्यों में 1500 मिलियन टन काले चावल का निर्यात किया गया है।
इस चावल में ऐसा क्या है खास
चाक हाओ चावल की किस्म मणिपुर में सदियों के मौसम में पैदा की जाती है। मणिपुर में इस चावल की खेती लगभग 45,000 हेक्टेयर में होती है। माना जाता है कि काले चावल की खेती तब शुरू हुई जब मणिपुर के शुरुआती लोग यहां आए। इस चावल को बीते मई महीने में ही (जियोग्रैफिकल इंडिकेशन) GI टैग मिला। इसके बाद सीधे एक मिट्रिक टन के ऑर्डर को मणिपुर की राजधानी इम्फाल से यूरोप के लिए रवाना किया गया। ये काला चावल इम्फाल में औसतन 100-120 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा जाता है।
काला चावल आमतौर पर विशेष अवसरों और त्योहारों के अवसर पर बनाया जाता है। पकाने के बाद इसका रंग काले से बैंगनी हो जाता है। काले चावल की खीर बहुत प्रसिद्ध है। पारंपरिक चिकित्सक द्वारा चाक हाओ का इस्तेमाल बतौर दवा के तौर पर भी किया जाता है।
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एंटीऑक्सिडेंट्स से होता है भरपूर
मणिपुर के इस काले चावल में उच्च विटामिन से लेकर कई मिनिरल्स पाए जाते हैं। यह वसा मुक्त (Gluten-free) होने के साथ, एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। इसका काला रंग इसके एंथोसायनिन पिगमेंट का नतीजा है, जो इसे एंटी ऑक्सीडेंट खूबियां देता है। एंटीऑक्सिडेंट रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं, जो शरीर को कई तरह की बीमारियों और संक्रमणों से लड़ने में सहायक होते हैं।
स्थानीय किसानों को व्यापक बाजारों से जोड़ने में कारगर
इस चावल को GI टैग दिलाने के पीछे नॉर्थ ईस्टर्न रीजनल एग्रिकल्चरल मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NERAMAC), मिशन ऑर्गेनिक वैल्यु टेन डेवलपमेंट (कृषि) और मणिपुर कृषि विभाग ने पहल की थी। इस चावल को GI टैग मिलने से स्थानीय किसानों को व्यापक बाजारों से जोड़ने और उनकी उपज के लिए बेहतर दाम मुहैया कराने में मदद मिलेगी।
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इसके अलावा मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने सरकार के ‘ड्रग्स पर युद्ध’ अभियान द्वारा अफीम के बागानों के विनाश से प्रभावित राज्य के विभिन्न हिस्सों में निवासियों को वितरण के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज ले जाने वाले वाहनों को भी हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।