क्या आपको भी अचार, पापड़ बनाने में महारत हासिल है? अगर हां, तो आप भी मणिपुर की नाओरम अरुणदयंति देवी की तरह एक सफल उद्यमी बनकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकते हैं। पापड़ बनाना लघु उद्योग की श्रेणी में आता हैं और आज बहुत सी महिलाएं इस बिज़नेस से जुड़ी हैं, क्योंकि इसके लिए आपको किसी ख़ास तरह के प्रशिक्षण या कौशल की आवश्यकता नहीं होती। कुछ दिनों में ही आप पापड़ बनाना सीख सकते हैं। साथ ही पापड़ एक ऐसी चीज़ है, जिसकी डिमांड रहती ही है। मणिपुर की नाओरम अरुणदयंति को अपने ख़ास तरह के पापड़ की वजह से लोकप्रियता मिली और अब उनके पापड़ की उनके क्षेत्र में बहुत मांग हैं।
कैसे शुरू किया पापड़ का बिज़नेस?
मणिपुर के बिष्नुपुर ज़िले के ओइनम अवांग लेइकाई गांव की रहने वाली नाओरम अरुणदयंति देवी पहले एक फल विक्रेता थीं, लेकिन 2012 में यह काम छोड़कर वह फ़ूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में आ गईं। बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के उन्होंने अचार और कैंडी बनाने का काम शुरू कर दिया। शुरुआत में वह इसे स्थानीय खुदरा विक्रेताओं और अपने दोस्तों को ही बेचा करती थीं, लेकिन इससे ज़्यादा कमाई नहीं हो पाती थी। इसके बाद उन्होंने पापड़ बनाने के व्यवसाय में कदम रखा।
प्रशिक्षण के बाद की शुरुआत
अचार और कैंडी के बिज़नेस में खास सफलता नहीं मिलने पर उन्हें महसूस हुआ कि प्रोसेसिंग फ़ील्ड में आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त ट्रेनिंग की ज़रूरत है। फिर उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र बिष्नुपुर से 3 दिनों की पापड़ बनाने की ट्रेनिंग ली। मणिपुर में स्नैक्स के रूप में पापड़ बहुत लोकप्रिय है और इसकी बहुत मांग है। प्रशिक्षण लेने के तुरंत बाद उन्होंने प्राकृतिक जड़ी बूटियों (जैसे चीनी चिव्स, एलियम हुकेरी, धनिया, पुदीना आदि) के इस्तेमाल से पापड़ बनाना शुरू कर दिया। इसके बाद मई 2019 और मार्च 2020 में भी सेवा मणिपुर (एनजीओ) द्वारा आयोजित प्रशिक्षण में उन्होंने पापड़, सोया दूध/पनीर और काले चावल से बाय-प्रॉडक्ट्स बनाने की ट्रेनिंग मिली।
लॉकडाउन में बढ़ी पापड़ की डिमांड
पहले कुछ चुनिदां खुदरा विक्रेताओं तक अपने उत्पाद पहुंचान के बाद, उनके फ्लेवर्ड पापड़ की लोकप्रियता बढ़ने लगीं और इसे ग्रीन पापड़ के नाम से जाना जाने लगा। इस बीच उनके काम को पहचान मिली और उन्हें स्टार्टअप मणिपुर के लिए चुना गया, इसमें उन्हें सब्सिडी के रूप में 3 लाख रुपये की आर्थिक मदद मिली।
उनके द्वारा तैयार किए गए ग्रीन पापड़ मणिपुर सरकार की एक इकाई, आर्गेनिक आउटलेट MOMA (मणिपुर ऑर्गेनिक मिशन एजेंसी) पर भी बेचे जाते हैं। कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने उनके उत्पाद की बिक्री कई गुणा बढ़ा दी। इसकी मांग भी तेज़ी से बढ़ने लगी, जिसे पूरा करने के लिए अधिक लोगों को शामिल करके उन्होंने उत्पादन बढ़ाया।
प्रशिक्षण के बाद बढ़ी आमदनी
कृषि विज्ञान केंद्र बिष्णुपुर से प्रशिक्षण लेने से पहले तक उनकी आमदनी बहुत कम थी, लेकिन प्रशिक्षण कार्यक्रम में मिली जानकारी और कड़ी मेहनत की बदौलत वह एक सफल महिला उद्यमी बनने में कामयाब रहीं और अपने इलाके में महिला सशक्तिकरण की मिसाल भी हैं। वह सालाना लगभग 3.6 लाख की कमाई कर लेती हैं।
नाओरम अरुणदयंति से प्रेरित होकर उनके क्षेत्र की कई अन्य महिलाएं भी पापड़ बनाने का व्यवसाय शुरू कर चुकी हैं। नाओरम अरुणदयंति उन्हें इस काम में मदद भी करती हैं। पापड़ बनाने के लिए कच्चे माल की उपलब्धता से लेकर उन्हें ट्रेनिंग भी देती हैं। यदि आप भी कम लागत में कोई व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो यह आपके लिए अच्छा विकल्प है।
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