बिहार सरकार ने राज्य की ग्राम पंचायतों में तैनात किसान सलाहकारों के मासिक मानदेय (Stipend) में एक हज़ार रुपये महीने का इज़ाफ़ा करने का फैसला किया है। चार साल के बाद 8.33 फ़ीसदी के मामूली से इज़ाफ़े के बाद किसान सलाहकारों का मानदेय 12 हज़ार रुपये से बढ़ाकर 13 हज़ार रुपये हो गया है। बढ़ा हुआ मानदेय 1 अप्रैल 2021 से प्रभावी होगा। मानदेय बढ़ाने के अलावा सरकार ने सेवाकाल में मौत होने वाले किसान सलाहकारों के आश्रितों को 4 लाख रुपये का मुआवज़ा यानी अनुग्रह राशि देने का भी फैसला किया है।
जिस तरह बेहद कम मानदेय ही आँगनवाड़ी और आशा वर्कर को भी हतोत्साहित करता है उसी तरह किसान सलाहकारों को मिलने वाले मामूली मानदेय ने ही शायद इस योजना को आज भी बहुत अनाकर्षक बना रखा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में शिक्षा, स्वास्थ्य और खेती-किसानी के पिछड़ेपन के लिए बिहार सरकार की ऐसी नीतियों को भी उत्तरदायी समझा जाना चाहिए। यही वजह है कि राज्य में 8 हज़ार से ज़्यादा ग्राम पंचायतों में अभी कुल 6,327 किसान सलाहकार कार्यरत हैं। यानी करीब 2 हज़ार किसान सलाहकारों के पद खाली हैं। हालाँकि, किसान सलाहकार पूरी तरह से सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। इनकी दशा ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों जैसी ही है।
कौन हैं किसान सलाहकार?
बिहार में खेती-किसानी से जुड़ी समस्याओं के स्थानीय स्तर पर निवारण के लिए सरकार ने 2010 में किसान सलाहकारों की नियुक्ति की योजना शुरू की थी। इसका मकसद ग्राम पंचायत स्तर पर ऐसे प्रगतिशील किसानों का नेटवर्क खड़ा करना था जो ज़िले के कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ तालमेल क़ायम करके अपने गाँव के किसानों के लिए एक प्रशिक्षक या गाइड की भूमिका निभा सकें।
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चयन और मानदेय
किसान सलाहकारों का चयन कृषि विभाग करता है। शुरुआत में यानी 2010 में इन्हें 2,500 रुपये बतौर मानदेय दिया जाता था। लेकिन कालान्तर में इसे 2012 में 5 हज़ार, 2014 में 6 हज़ार, 2015 में 8 हज़ार और 2017 में 12 हज़ार रुपये तक बढ़ाया गया। इस हिसाब से देखें तो हम पाते हैं कि 2021 में जो 1,000 रुपये का इज़ाफ़ा किया गया है, वो भी चार साल बाद हुआ है। जो निश्चित रूप से पिछली बढ़ोत्तरियों के अनुपात में बेहद कम है।
क्या है किसान सलाहकार की भूमिका?
किसान सलाहकारों का काम है कि वो कृषि विभाग की योजनाओं का प्रचार-प्रसार करें, खेती-किसानी से सम्बन्धित तरह-तरह के लाभार्थियों के सत्यापन का काम करें, मिट्टी की जाँच करवाने के काम में किसानों को सलाह और मदद दें, बैंक से कर्ज़ लेने की कोशिश करने वाले किसानों की मदद करें। इन्हीं दायित्वों को निभाने के लिए सरकार ने हरेक ग्राम पंचायत में कम से कम एक किसान सलाहकार की तैनाती करने की योजना बनायी थी।
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100 करोड़ रुपये का सालाना बजट
किसान सलाहकारों को मानदेय का भुगतान पर बिहार सरकार ने 100.1 करोड़ रुपये सालाना खर्च करने के बजट को मंज़ूरी दी है। सरकारी विज्ञप्ति में बताया गया है कि अब सेवाकाल के दौरान मौत हो जाने वाले किसान सलाहकारों के आश्रितों को जो 4 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाएगा, उसके भुगतान की पूरी ज़िम्मेदारी ज़िला कृषि अधिकारी को होगी।