भारत में लघु और सीमांत किसानों की संख्या 85 फीसदी से ज़्यादा है, जिनके पास खेती की ज़मीन इतनी कम है कि इसके सहारे साल भर परिवार नहीं चल सकता। कम जोत के किसान और भूमिहीन किसानों के लिए ऐसा क्या विकल्प हो सकता है, जिससे उन्हें अच्छी आय हो सके? ये विकल्प है मशरूम, जिसे लेकर हाल के वर्षों में देश भर में जागरुकता आई है। भारत में जो मशरूम उत्पादन हो रहा है, उसका 50 फीसदी सीमांत किसान ही कर रहे हैं, जबकि शेष 50 फीसदी उत्पादन औद्योगिक संस्थाएं करती हैं। उत्तर प्रदेश, केरल और त्रिपुरा जैसे राज्य भारत में हो रहे मशरूम उत्पादन में अग्रणी हैं, जबकि हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी धीरे-धीरे नए किसान और एग्री स्टार्टअप सामने आ रहे हैं। इन सबके बावजूद भारत कुल वैश्विक मशरूम उत्पादन का सिर्फ एक फीसदी ही उत्पादन कर पा रहा है।
मशरूम में लागत कम है, जगह की ज़रूरत कम है, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में मांग अच्छी है। अलग-अलग मौसम और जलवायु के मुताबिक किस्मों का विकल्प है। ऐसे में इन अनुकूल परिस्थितियों का लाभ ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादकों और उद्यमियों तक कैसे पहुंचाया जा सकता है, इसे लेकर किसान ऑफ़ इंडिया के पहले मशरूम डिज़िटल क़ॉन्क्लेव में 28 फरवरी को चार घंटे तक चर्चा चली। इसके पहले सत्र में अलग-अलग राज्यों से युवा स्टार्टअप जुड़े और विषय था एग्री स्टार्टअप मशरूम।
दुबई में 15 साल तक नौकरी करने के बाद दो साल पहले अपने राज्य उत्तराखंड में लौटकर मशरूम के बिज़नेस से शुरुआत करने वाले सतिंदर रावत, उत्तराखंड के ही संजीत कुमार, हरियाणा में मशरूम स्टार्टअप से मुकाम बना रहे हिसार के विकास वर्मा, बिहार के राजीव रंजन और छत्तीसगढ़ के तोषण सिंह पहले सत्र के हमारे मेहमान थे। छत्तीसगढ़ के धमतरी के तोषण कुमार सिन्हा ने बताया कि उनका इलाका तो धान के कटोरा के नाम से मशहूर है, लेकिन उन्होंने अपने लिए मशरूम की खेती को चुना। आज वो मशरूम बीज के कारोबार से जुड़े हैं और उन्होंने बताया कि क़रीब एक हज़ार महिला किसान उनके साथ जुड़ी हैं।
छोटे स्तर पर करें मशरूम की खेती की शुरुआत
हरियाणा के हिसार के मशरूम स्टार्टअप विकास वर्मा के मुताबिक मशरूम कम पूंजी में अच्छा मुनाफ़ा देने वाली फसल है, इसलिए मशरूम एग्री स्टार्टअप के लिए एक अच्छा विकल्प है। विकास वर्मा का सुझाव है कि मशरूम से जुड़ने वाले किसानों को सबसे पहले सीखने की ज़रूरत है, इसलिए प्रशिक्षण के बाद छोटे स्तर से शुरुआत करनी चाहिए। अपना अनुभव साझा करते हुए विकास ने बताया कि उन्होंने ज़्यादा लागत से शुरू की और घाटा हो गया क्योंकि अनुभव नहीं था। बाद में वो कभी भी इसे बड़ा कर सकते हैं। विकास वर्मा का कहना है कि कृषि विकास केंद्र से जुड़िए। आसपास के किसी मशरूम उत्पादक किसान से समझिए। अगर सोशल मीडिया वीडियो देखकर कोई इसे शुरू करता है तो उसे नुकसान हो सकता है।
पलायन की समस्या को रोक सकता है मशरूम का उत्पादन
उत्तराखंड के सतिंदर रावत दुबई में 15 साल नौकरी करने के बाद दो साल पहले अपने राज्य लौटे हैं। उनका कहना है कि शुरुआत उन्होंने एक HUT से की थी, इसलिए पहले ये काम समझकर ही किसानों को मशरूम के क्षेत्र में उतरना होगा। सतिंदर रावत का कहना है कि ये मुश्किल काम नहीं है, लेकिन अलग काम है यानी Difficult नहीं है, लेकिन Different है। सतिंदर रावत का भी यही सुझाव है कि शुरुआत छोटे स्तर से, कम लागत से ही करनी चाहिए। उनके मुताबिक उत्तराखंड जैसे पर्वतीय प्रदेश में खेती मुश्किल है, सीढ़ीदार खेत होते हैं, रकबा कम होता है। मशरूम का फ़ायदा ये है कि एक ही जगह में साल में चार बार कर सकते हैं, ऐसे में इसकी संभावनाएं ज़्यादा हैं, जिसे सरकार से भी मदद मिल रही है। सतिंदर रावत का कहना है कि उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या है और वो रिवर्स माइग्रेशन यानी पलायन रोकने के लिए भी मशरूम पर काम कर रहे हैं।
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उत्पादकों में अभी और जागरुकता की ज़रूरत
उत्तराखंड के ही संजीत कुमार का कहना है कि 2019 में उन्होंने हिमाचल में मशरूम से जुड़ी ट्रेनिंग ली थी। उनके मुताबिक मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार युवा किसानों को सब्सिडी भी दे रही है, इसलिए मौजूदा दौर मशरूम के लिए फ़ायदेमंद है।
बिहार के मशरूम उद्यमी राजीव रंजन ने बताया कि मशरूम का मार्केट तो बन रहा है, लेकिन उत्पादकों में अभी और जागरुकता और थोड़ा सा सब्र चाहिए क्योंकि वो बटन और ऑयस्टर दोनों किस्मों के लिए एक जैसी कीमत चाहते हैं और एकदम से मुनाफ़े की उम्मीद लगाए रहते हैं।
पहले सत्र में सभी मेहमानों ने अपने-अपने इलाकों की मुश्किलों को भी सामने रखा और उन मुश्किलों से निपटने के रास्ते भी बताए। पहले कदम से लेकर अब तक के अपने सफर को साझा करके उन्होंने नए उत्पादकों और उद्यमियों को राह भी दिखाई।आगे भी हम मशरूम को लेकर कॉन्क्लेव का आयोजन करेंगे। अगर मशरूम की खेती, उत्पादन, मार्केट, प्रोसेसिंग को लेकर आपका कोई सवाल हो तो आप हमें नीचे दिए गए नंबर पर भेज सकते हैं।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।