Indigo Farming: नील की खेती की ये हैं latest तकनीकें, Neel Plant के बारे में भी जानिए

नील की फसल को बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड के इलाकों में उगाया जाता है। नील के पौधे तीन से चार महीने में उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। नील की खेती में पत्तों को बेचकर एक एकड़ में लगभग 35 से 40 हज़ार रुपये की कमाई कर सकते हैं।

नील की खेती कैसे करें

नील की खेती भारत में सबसे पहले शुरू हुई थी। इसकी खेती आज रंजक (Dyes) के रूप में की जा रही है। रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से भी नील तैयार की जाती है, लेकिन आज के समय में बाज़ारो में प्राकृतिक नील की मांग बढ़ रही है। इसी कारण किसानों ने नील का फिर से उत्पादन करना शुरू कर दिया है। नील का पौधा भूमि के लिए अधिक लाभकारी होता है।   यह मिट्टी को अधिक उपजाऊ भी बनाता है।

हाल के दिनों में नील की फसल को बिहार, बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड के इलाकों में उगाया जाता है। नील यानि इंडिगो की विभिन्न किस्में हैं। इनमें सबसे आम इंडिगोफेरा टिनक्टरिया (Indigofera Tinctoria) और इंडिगो हेटेरंथा (Indigo Heterantha) हैं।  इस फसल को ज़्यादा  वर्षा, जलभराव और ओलावृष्टि से बचाना जरूरी है। इसके पौधे एक से दो मीटर ऊँचे होते है, और इनमें  निकलने वाले फूलो का रंग बैंगनी और गुलाबी होता है। इसके पौधे जलवायु के आधार पर एक से दो साल तक उत्पादन दे सकते हैं। इस लेख में अब हम अपको आगे बताएंगे  कि आप इसकी खेती कैसे कर सकते हैं और उसके लिए किन चीजों का ध्यान रखना ज़रूरी  है।

नील की खेती के लिए कैसी मिट्टी, जलवायु और तापमान होना चाहिए ?  (What should be the soil, climate and temperature for Indigo Farming?)

नील की खेती में बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।  भूमि में उचित जल निकासी भी होनी चाहिए। जल-भराव वाली भूमि में इसकी खेती करना मुश्किल होता है। नील की अच्छी फसल के लिए गर्म और नरम जलवायु को उचित माना जाता है। नील के पौधों को अधिक वर्षा की जरूरत होती है, क्योंकि  इसके पौधे बारिश के मौसम में बढ़िया  विकास करते हैं। इसके पौधों को सामान्य तापमान की जरूरत होती है। अधिक गर्म और अधिक ठंडे मौसम में फ़सल  को बहुत  नुकसान हो सकता है।

नील की खेती के लिए कैसे करें खेत को तैयार ? (How to prepare field for Indigo Farming)

  • खेत को तैयार करते समय सबसे पहले गहरी जुताई करनी चाहिए।
  • जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ देना चाहिए।
  • इसके बाद खेत में 8 से 10 किलोग्राम पुरानी गोबर की खाद डालनी चाहिए।  
  • इसके बाद रोटावेटर से जुताई करनी चाहिए। इससे खाद, मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाती है।
  • इसके बाद खेत में पानी को फव्वारे की तरह  (Pulverized) काफी समय तक देना चाहिए।
  • इसके बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है, तब खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर देना चाहिए।

नील के बीजों की रोपाई का तरीका (Indigo Seeds Planting Method)

नील की खेती में बीजों की रोपाई ड्रिल विधि द्वारा की जाती है। सिंचित जगहों पर रोपाई अप्रैल में की जानी चाहिए और असिंचित जगहों पर बारिश के मौसम (जून-जुलाई ) में की जानी चाहिए। इससे पौधा कम समय में कटाई के लिए तैयार होता है और अच्छी पैदावार मिलती है। खेत में बीजों को लगाने से पहले खेत में एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार करना चाहिए। इन पंक्तियों में प्रत्येक बीज के बीच एक फ़ीट की दूरी रखें।  

नील की खेती के लिए खेत की तैयारी
तस्वीर साभार: Wikipedia

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नील के पौधों की कब और कितनी बार सिंचाई करें? (When and how often to irrigate indigo plants?)

नील के पौधों को कम सिंचाई की जरूरत होती है। अगर अप्रैल में रोपाई करते हैं तो बारिश होने से पहले दो से तीन बार सिंचाई करनी चाहिए। अगर रोपाई बारिश के मौसम की गई है, तो एक या दो बार सिंचाई करनी चाहिए। नील की फसल तीन से चार महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। 

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नील की खेती में खरपतवार को कैसे नियंत्रित  करें? (How to control weeds in indigo farming?)

नील के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके पौधों को अधिकतम दो गुड़ाई की आवश्यकता होती है। इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 25 दिन बाद की जाती है।इसके बाद दूसरी गुड़ाई को 15 से 20 दिन के अंतराल में करना चाहिए।

नील के पौधों की कैसे और कब कटाई करें? (How and when to harvest indigo plants?)

नील के पौधे तीन से चार महीने में उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके बाद पौधों की कटाई की जा सकती है। नील के पौधों की कटाई कई बार की जा सकती है। एक से अधिक बार कटाई करने के लिए पौधों पर फूल बनने से पहले उन्हें काट लेना चाहिए। कटाई के बाद इन पौधों को छायादार जगह पर सुखा लेना चाहिए। इसके बाद सूखी हुई पत्तियों को बाज़ार में बेच सकते हैं।  इन सूखी हुई पत्तियों से नील निकालने के लिए पत्तों की गहाई की जाती है।

नील की खेती
तस्वीर साभार: Telegraph

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नील के पत्तों से रंग निकालने की प्रक्रिया (Process of extracting color from indigo leaves)

नील से रंग हरे और सूखे, दोनों तरह के पौधों से निकाला जाता है। कटे हुए हरे पौधों को गड़ी हुई नाँदों (Knots) में दबाकर रख देते हैं और ऊपर से पानी भर देते हैं। लगभग 12-14 घंटे पानी में पड़े रहने से उसका रस पानी में उतर आता है और पानी का रंग धानी हो जाता है। इसके बाद पानी दूसरी नाँद में जाता है, जहाँ डेढ़ दो घंटे तक लकड़ी से हिलाया और मथा जाता है। मथने का यह काम मशीन से भी कर सकते हैं। इसके बाद नीचे बैठी हुई नील को  साफ़ पानी में मिलाकर उबाला जाता है।

उबल जाने पर यह बाँस की फट्टियों के सहारे तानकर फैलाए हुए मोटे कपड़े (या कैनवस ) की चाँदनी पर डाल दिया जाता है। यह चाँदनी छन्नी का काम करती है। इस  गीली नील को, गीले कपड़े से मढ़े , छोट-छोटे छिद्रों से युक्त एक संदूक में रखकर खूब डुबाया जाता है। इसके बाद  कतरे काटकर घोरे-धीरे सूखने के लिये रख दिए जाते हैं। सूखने पर इन कतरों पर एक पपड़ी सी जम जाती है जिसे साफ कर देते हैं। ये ही कतरे नील के नाम से बिकते हैं।

नील की खेती से मुनाफ़ा (Indigo Farming Profit)

आज के समय में किसान एक एकड़ में 7 क्विंटल सूखी पत्तियों को प्राप्त कर लेते है। इसका बाज़ारी भाव 50 से 60 रूपए प्रति किलो के आसपास होता है।  इस तरह किसान, एक एकड़ में नील की एक बार की फसल से लगभग 35 से 40 हज़ार रूपए तक की कमाई कर सकते हैं।

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