नीम का पेड़, वनस्पति जगत का इकलौता ऐसा प्राणी है जिसमें मानव के साथ-साथ पशुओं और पेड़-पौधों के विभिन्न रोगों तथा हानिकारक कीट-पतंगों से उपचार की अद्भुत क्षमता है। नीम पर आधारित 125 से ज़्यादा रसायनों को अब तक खोजा जा चुका है। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने बताया है कि नीम में फसलों के विभिन्न रोगों के उपचार के अलावा हानिकारक कीट-पतंगों पर भी नियंत्रण की क्षमता है।
आधुनिक रासायनिक खेती की वजह से जहाँ मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गम्भीर खतरा बढ़ा है वहीं नीम के प्रयोग से जहरीले कीटनाशकों से मुक्ति पाने में सफलता मिली है। इसीलिए जैविक और प्राकृतिक खेती में नीम के इस्तेमाल को बढ़ाने पर ख़ासा ज़ोर दिया जाता है।
प्राचीन भारतीय ग्रन्थों और चिकित्सा शास्त्रों से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक खोजों ने भी नीम के अद्भुत औषधीय गुणों को साबित किया है। परम्परागत तौर पर खेती-बाड़ी के मामले में नीम का मुख्य इस्तेमाल अन्न भंडारण और पशुओं के परजीवी कीड़ों के नियंत्रण तक सीमित रहा है। नीम में जीवाणुरोधी, कवकरोधी, विषाणुरोधी, कृमिनाशक, कफ़शामक, गर्भ-निरोधक, मूत्र-और पित्त सम्बन्धी विकारों को ख़त्म करने वाला, शीतलकारी, रक्तशोधक, ज्वरनाशक, यकृत उत्तेजक, मधुमेह नाशक, दन्त और रोग निवारक जैसे एक से बढ़कर एक गुण पाये जाते हैं।
नीम का प्रभाव एड्स जैसे असाध्य रोग के विषाणुओं पर भी देखा गया है। इन्हीं विलक्षण गुणों के कारण नीम को ‘सर्व-रोग-निवारक’, ‘नीम-हक़ीम’ और ‘एक नीम, सौ हक़ीम’ जैसी उपमाएँ मिली हैं और ये भारतीय जीवनशैली का अभिन्न अंग बना हुआ है।
जैविक खेती में नीम की उपयोगिता
जैविक खेती के लिहाज़ से नीम जैसी उपयोगी कोई अन्य वनस्पति नहीं है। इसीलिए जोधपुर स्थित ICAR-CAZRI (Central Arid Zone Research Institute या केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसन्धान संस्थान) और मेरठ स्थित ICAR-IIFSR (Indian Institute of Farming Systems Research या भारतीय कृषि प्रणाली अनुसन्धान संस्थान) के वैज्ञानिकों ने जैविक खेती में इस्तेमाल के लिए नीम से बनने वाले विभिन्न उत्पादों को बनाने और उसके इस्तेमाल की प्रक्रिया का मानकीकरण (standardisation) किया है। इसे नीम की पत्तियों और इसके बीजों से बने उत्पादों के रूप में बाँटा गया है।
जैविक या प्राकृतिक में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग वर्जित है। इसीलिए मिट्टी में मुख्य तौर पर नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्व की उपलब्धता और रासायनिक दवाईयों के बग़ैर बीमारियों की रोकथाम बड़ी चुनौती बन जाती है। लेकिन नीम का पेड़ इन चुनौतियों से निपटने में बेहद मददगार साबित होता है और जैविक खेती का एक ठोस आधार बनता है। नीम की पत्तियों और खली से बनी खाद को जहाँ मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए होता है, वहीं इसकी पत्तियों, बीजों, तेल और खली का उपयोग कीट-पतंगों से रोकथाम में किया जाता है।
क) नीम की पत्तियों से बने उत्पाद
- नीम की पत्तियों का जूस: नीम की पत्तियों से ‘नीम-पर्ण-स्वरस’ यानी जूस बनाने के लिए एक किलोग्राम नीम की पत्तियों को 5 लीटर पानी में रात भर भिगोना है। अगली सुबह भीगी पत्तियों को इसी पानी में कूट-पीसकर परस्पर मिला देने से नीम की पत्तियों का जूस बन जाता है। इसे महीन कपड़े से छान लें। सूँड़ी जैसे कीड़ों और हानिकारक कीट-पतंगों के उपचार के लिए प्रति एकड़ 32 किलोग्राम नीम की पत्तियों और 160 लीटर पानी से तैयार जूस की ज़रूरत पड़ेगी। इसके हरेक छिड़काव से पहले यदि जूस में खादी वाले साबुन का चूर्ण भी मिला दें तो दवाई और कारगर बन जाएगी।
- नीम-गोमूत्र अर्क: इसे बनाने के लिए 5 किग्रा नीम की पत्तियों को उपयुक्त पानी में पीसें। इस पेस्ट को 5 लीटर गोमूत्र और 2 किग्रा गाय के गोबर में मिलाकर एक घोल बनाएँ। अगले 24 घंटे तक इस घोल को कुछेक घंटे के अन्तराल पर किसी डंडे से हिलाते रहें। फिर घोल को महीन कपड़े से छान लें और इसमें 100 लीटर पानी मिला लें। इतनी मात्रा एक एकड़ में छिड़काव के लिए ज़रूरी होगी। इसे खड़ी फसल की पत्तियों का रस चूसने वाले और ‘मिली बग’ जैसे कीड़ों पर बहुत प्रभावी पाया गया है।
- बेसरम-मिर्च-लहसुन-नीम अर्क: इस अर्क को बनाने के लिए 1 किग्रा बेसरम (बेहया) पेड़ की पत्तियाँ, 500 ग्राम तीखी हरी मिर्च, 500 ग्राम लहसुन और 5 किग्रा नीम की पत्तियों को पीसकर इसे 10 लीटर गोमूत्र मिलाकर इस घोल को इतना उबाले कि इसकी मात्रा घटकर आधा रह जाए। फिर इस अर्क को महीन कपड़े से छानकर बोतलों में भरकर रखें। इस अर्क को पत्ती-मोड़क, तना, फली और फल वेधक कीटों के ऊपर बेहद प्रभावी पाया गया है। एक एकड़ के खेत में इस अर्क की 3 लीटर मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
- दसपर्णी अर्क: इसे बनाने के लिए 5 किग्रा नीम की पत्तियाँ, 2-2 किग्रा गिलोय, अनानास, लाल कनेर, मदार और करंज की पत्तियों के अलावा 2 किग्रा हरी मिर्च और 250 ग्राम लहसुन का पेस्ट या चटनी तैयार करें। फिर इसमें 3 किग्रा गाय का गोबर और 5 लीटर गोमूत्र और 200 लीटर पानी मिलाकर घोल को एक महीने तक सड़ने दें। इस दौरान रोज़ाना दो बार इसे 5 मिनट तक डंडे से हिलाते रहे।
महीने भर बाद इस अर्क को छानकर बोतलों में भर लें और अगले 6 महीने तक फसल में लगने वाले सामान्य कीट-पतंगों और बीमारियों की रोकथाम के लिए इसका कीटनाशक की तरह छिड़काव करें। प्रबंधन हेतु करते हैं। छिड़काव से पहले दसपर्णी अर्क की 300 से 500 मिली मात्रा को 15 लीटर पानी में घोलकर पतला कर लें। इतनी मात्रा एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। - मिश्रित पर्ण-अर्क: इस अर्क को बनाने के लिए 3 किग्रा नीम की पत्तियों को, 2-2 किग्रा अनानास, पपीता, अनार और अमरूद की पत्तियों के साथ पीसें। फिर इस पेस्ट को 10 लीटर गोमूत्र के साथ मिलाकर तब तक उबालें जब तक कि इसकी मात्रा आधी न हो जाए। अगले दिन इस मिश्रित अर्क को छान लें। इसे 6 महीने तक बोतलों में रख सकते हैं। सौ लीटर पानी में 2.5 लीटर मिश्रित अर्क मिलाकर एक एकड़ की फसल में छिड़काव करने से तना, फलों में छेद करने वाले या उसे चूसकर बर्बाद करने वाले कीटों की कारगर रोकथाम हो जाती है।
ख) नीम के बीजों से बने उत्पाद
नीम में पाये जाने वाले ‘अजैडिरैच्टिन’ नामक तत्व ही रोगाणुओं और कीट-पतंगों का सफ़ाया करने में सबसे प्रभावी भूमिका निभाता है। इस पदार्थ की सबसे ज़्यादा मात्रा नीम के बीजों यानी निमौलिया में पाया जाता है। इसीलिए जैविक कीटनाशक बनाने में नीम के बीज बेहद गुणकारी हैं। नीम के बीजों से निम्न दवाएँ बनती हैं –
- नीम-गिरी-चूर्ण: नीम के सूखे बीजों को कूट-पीसकर महीन चूर्ण (पाउडर) बना लें। इस पाउडर को 2 प्रतिशत की दर से अनाज में मिलकर भंडारण में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसी पाउडर को लकड़ी के बुरादे या धान के भूसी या काली चिकनी मिट्टी में बराबर मात्रा में मिलाकर और इसकी छोटी-छोटी गोलियाँ बना रखी जा सकती हैं। इन गोलियों को मक्के या ज्वार के खेत में करीब 100 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से बिखेरकर तनों में छेद करने वाले कीटों पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है।
- नीम के बीजों की गोलियाँ: ICAR-CAZRI के वैज्ञानिकों ने नीम बीजों के पाउडर में करीब 12 से 15 प्रतिशत नीम का तेल और एक प्रतिशत यूकेलिप्टस के तेल का इस्तेमाल करके एक ख़ास नीम की गोलियाँ (पैलेट) बनायी हैं। प्रति एकड़ 100 गोलियों को खेत में छिड़कने से अगले दस महीनों तक दीमक, सफ़ेद गिडार और सूत्र कृमियों जैसे कीटों का प्रभावी नियंत्रण हो जाता है।
- नीम बीज गिरी अर्क (Neem Seed Kernel Extract- NSKE): ये नीम के फल की गुठली यानी गिरी का अर्क है। इसे बनाने के दो तरीके हैं – पहला, 3 किग्रा नयी गिरी और 5 किग्रा दो महीने से पुरानी गिरी कूट-पीसकर इसका चूर्ण बना लें। इस वक़्त सावधानी रखें कि बीजों से नीम का तेल नहीं निकले। दूसरा तरीके के तहत, 5 किलो गिरी को 10 लीटर पानी में 4 घंटे के लिए भिगाएँ। फिर इस गीली गिरी को पीसकर इसका लेई जैसा पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को 10 लीटर पानी में घोलकर रात भर छोड़ दें।
अगले दिन इस मिश्रण को डंडे से अच्छी तरह हिलाने के बाद महीन कपड़े से मसल-मसल कर छान लें। खेतों में छिड़कने से पहले 10 लीटर नीम बीज गिरी अर्क में 25 लीटर पानी और करीब 350 मिली खादी साबुन का घोल मिलाएँ। एक एकड़ की फसल में ऐसे 250 से 300 घोल का छिड़काव जैविक कीटनाशक के रूप में किया जाना चाहिए। - लहसुन नीम अर्क: एक किग्रा लहसुन, आधी मुट्ठी नीम गिरी, 10 किग्रा नीम की पत्तियाँ और 500 ग्राम नीम के तने की छाल को उपयुक्त पानी मिलाकर इसका लेई जैसा पेस्ट बना लें। इस पेस्ट में 12 लीटर पानी मिलाकर उबाल लें। ठंडा होने पर मिश्रण को महीन कपड़े से छान लें तथा बोतलों में भरकर 4-5 सप्ताह तक छाये में रखें। इस लहसुन नीम अर्क को 500 मिली प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर हरेक सप्ताह छिड़काव करने से अनेक तरह के कीड़ों से छुटकारा मिल जाता है।
अनाज भंडारण में नीम से कीड़ों की रोकथाम
अनाज के भंडार को कीड़ों से बचाने के लिए छाया में सूखे नीम की पत्तियों का इस्तेमाल करना चाहिए। इन पत्तियों की एक सेंटी मोटी परत को बोरों या भंडारण-पात्र की पेंदी पर बिछा दें। फिर एक फुट ऊँचाई कर अनाज भरें। अब सेंटी मोटी सूखी नीम की पत्ती की तह बिछायें। इस पर फिर एक फुट अनाज भरें। इसी क्रम में भंडारण की सबसे ऊपरी परत भी नीम की सूखी पत्ती की ही बनाएँ। ध्यान रहे कि कीड़ों से बचाव की ये तरकीब उसे अनाज के लिए कारगर साबित नहीं होती जो पहले से कीड़ों की चपेट में आ चुके हैं।
इसी तरह, सूखे हुए अनाज के कुल वजह में 2 से लेकर 5 फ़ीसदी के अनुपात से नीम की सूखी पत्तियों का चूर्ण मिलाकर भी उन्हें कीड़ों से सुरक्षित रखा जा सकता है। एक और तरीका ये है कि 10 किलो नीम की पत्तियों को 100 लीटर पानी में उबलकर बनाये गये अर्क में जूट की उन बोरियों को भिगोने और सुखाने के बाद इसे अनाज के भंडारण के लिए इस्तेमाल करें। इसी तरह से मिट्टी से बने भंडारण पात्र में अनाज भरने से पहले उसकी दीवारों और ढक्कन पर ऐसे पेस्ट का मोटा लेप लगाएँ जो नीम की पत्तियों के चूर्ण को गीली मिट्टी में मिलाकर तैयार किया गया हो। लेप के सूखने के बाद इसमें रखा गया अनाज कीड़ों से सुरक्षित रहता है।
नीम का हर हिस्सा है उपयोगी
जहाँ नीम के दातून से दिनचर्या शुरू होती है और नीम के तेल का दीया जलाकर मच्छर भगाकर निश्चिन्त नींद लेने तक चली है। इसीलिए देश के अनेक क्षेत्रों में घर के बाहर पहला पेड़ नीम का ही लगाने की परम्परा रही है।
आयुर्वेद में जहाँ नीम की पत्तियों, छाल, तनों से निकला रस, फूल, गोंद, फल, बीज और तेल का उपयोग विभिन्न दवाईयों में होता है, वहीं खेती-बाड़ी में फसलों के विभिन्न कीटों और रोगों के उपचार के लिए नीम की पत्तियों, बीज, तेल और खली का प्रयोग होता है। नीम का तेल भूरे-पीले रंग का, नहीं सूखने वाला, अप्रिय गन्ध और बेहद कड़वे स्वाद का होता है। अथर्वेद में नीम को भानिम्बा कहा गया है तो पुराणों, उपनिषदों और चरक तथा सुश्रुत संहिता जैसे आयुर्वेदिक ग्रन्थों में इसके गुणों का बखान निम्बा, पिचुमर्द, तिक्तक, पिचुमन्द, अरिष्ट, पारिभद्र, हिंगू, हिंगुनिर्यास आदि नामों से हुआ है।
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