किसानों के विकास में ही देश का विकास है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने हाल ही में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (Contract Farming) के कानून से जुड़े विवाद के समाधान के लिए नियम और प्रक्रिया जारी कर दी है।
हाल ही में सरकार ने फार्मर्स एग्रीमेंट ऑन प्राइस अश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट 2020 लागू किया है। हालांकि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस कानून का विरोध भी किया जा रहा है। किसानों का मानना है कि यदि यह कानून लागू हो गया तो उनकी बात कोई नहीं सुनेगा और बड़े कॉर्पोरेट और कंपनियों का ही पक्ष लिया जाएगा।
उनका यह भी मानना है कि किसी भी तरह का विवाद होने पर किसान कोर्ट नहीं जा सकता और विवाद का निपटारा एसडीएम और डीएम करेंगे, जो कि सरकार के पक्ष में ही काम करेंगे और किसानों को न्याय नहीं मिल पाएगा।
किसानों की इस आशंका को दूर करने के लिए कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी ने विश्वास जताया कि कृषि कानून सिर्फ किसानों की भलाई के लिए बनाया गया है। इसलिए किसानों को घबराने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने बताया कि कई उदाहरण हैं जिसमें किसानों की भूमि एक से अधिक सब डिवीजन में आती है।
ऐसे मामलों में भूमि के सबसे बड़े हिस्से पर अधिकार क्षेत्र मजिस्ट्रेट के पास निर्णय लेने का अधिकार होगा। किसानों को बताया कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में जो भी पक्ष शामिल होंगे उन्हें समीक्षा के लिए उच्च प्राधिकरण के पास जाने का पूरा अधिकार होगा।
30 दिनों में होगा निपटारा
किसानों को आशंका है कि नए कृषि कानून के तहत उनके साथ पक्षपात हो सकता है। उनकी सुनवाई भी ठीक प्रकार से नहीं हो पाएगी। किसानों की इस आशंका को दूर करने के लिए सरकार ने एक सुलह बोर्ड गठित करने का फैसला किया है। इस बोर्ड में अधिसूचित नियमों के अनुसार, एसडीएम दोनों पक्षों से समान प्रतिनिधित्व वाले सुलह बोर्ड का गठन करके विवाद का निपटारा करेंगे।
यह निपटारा सुलह बोर्ड के गठन की तारीख से 30 दिनों के भीतर करना होगा। यदि किसी भी कारणवश सुलह बोर्ड मामले को निपटाने में सफल नहीं होता है, तो पार्टी उप-विभागीय प्राधिकरण से संपर्क कर सकती है। जिसे सुनवाई के बाद आवेदन दाखिल करने के 30 दिनों के भीतर मामले का फैसला करना होगा।
क्या है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों के लिए कोई नया शब्द नहीं है। पहले भी महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान सहित दक्षिण राज्यों के छोटे-बड़े किसान कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करते आए हैं। आपको बता दें कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का मतलब है कि कंपनी और किसानों के बीच लिखित करार। जो किसान खेती में पैसा नहीं लगा सकते वे कंपनियों से मदद लेते हैं।
कंपनी खाद-बीज, तकनीक आदि सब कुछ किसान को उपलब्ध करवाती है। कंपनी पैसा लगाती है और किसान कंपनी के लिए अपने खेत में फसल उगाता है। इस काम के लिए कंपनी किसान से एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाती है, जिसमें फसल के दाम पहले से ही तय किए जाते हैं।
जब फसल तैयार हो जाती है, तब किसान कॉन्ट्रैक्ट में तय की गई कीमत पर कंपनी को अपनी फसल बेच देता है। सरकार द्वार लाया गया नया कानून किसानों को बुआई से पहले बिक्री की गारंटी देता है।
कृषि कानून का हो रहा विरोध
सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों का विरोध किया जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा विरोध पंजाब और हरियाणा में किया जा रहा है। विधानसभा में प्रस्ताव पेश करने की पहल भी पंजाब की कांग्रेस सरकार ने की है। इस प्रस्ताव में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तीन और नए प्रस्ताव पास किए हैं।
इन प्रस्तावों में यह कहा गया है कि यदि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर फसल बेचने पर मजबूर किया गया तो ऐसा करने वाले को तीन साल तक की जेल हो सकती है। यदि कोई कंपनी या व्यक्ति किसानों पर जमीन या फसल को लेकर किसी भी तरह का दबाव बनाता है तो उसके खिलाफ भी जेल और जुर्माना हो सकता है।
पंजाब के बाद अब राजस्थान में भी कृषि कानूनों के खिलाफ विधेयक लाया जाने वाला है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बताया कि विधेयक के लिए राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जा सकता है। माना जा रहा है कि और भी कांग्रेस शासित प्रदेशों में कृषि कानूनों का विरोध हो सकता है।