केन्द्र सरकार ने आगामी खरीफ़ सीज़न (2021-22) के लिए अनेक फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ा दिया है। रुपये प्रति क्विंटल के लिहाज़ से सबसे अधिक इज़ाफ़ा तिलहन और दलहन की फसलों ख़ासकर तिल, अरहर और उड़द के समर्थन मूल्य में हुआ है। लेकिन यदि उत्पादन लागत के हिसाब से देखा जाए तो सबसे अधिक फ़ायदा बाजरा और उड़द के हिस्से में आया है। उत्पादन लागत के मुक़ाबले बाजरा का MSP जहाँ 85% अधिक है वहीं उड़द के मामले में इसे 65% रखा गया है। तिल की 452 रुपये और अरहर तथा उड़द के न्यूनतम समर्थन मूल्य में प्रति क्विंटल 300 रुपये का इज़ाफ़ा किया गया है। खरीफ में सबसे अधिक उपजाये जाने वाले धान के हिस्से में सिर्फ़ 72 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गयी है।
* इसका मतलब खेती की समग्र लागत से है। इसमें मानव श्रम, बैल श्रम, मशीन श्रम, पट्टे वाली ज़मीन का किराया, बीज, खाद, सिंचाई का खर्च, उपकरणों का मूल्यह्रास, कार्यशील पूँजी पर ब्याज़ और पारिवारिक श्रम के मूल्य को शामिल किया जाता है।
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^ धान (ग्रेड ए), ज्वार (मलडंडी) और कपास (लम्बे रेशे) के लिए लागत के आँकड़े को अलग से शामिल नहीं किया गया है।
MSP का महत्व
MSP के रूप में किसानों को उनकी उपज के न्यूनतम मूल्य पर खरीदारी की गारंटी दी जाती है। ताकि किसी भी वजह से यदि किसानों को बाज़ार में उचित दाम नहीं मिल सके तो वो सरकार को MSP पर अपनी उपज बेच सकें। MSP का निर्धारण केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के मातहत गठित CAPC यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस या कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफ़ारिश के आधार पर किया जाता है। CAPC की ओर से खेती में सम्मिलित हरेक तरह की लागत की समीक्षा करके MSP में होने वाली बढ़ोत्तरी का आकंलन किया जाता है। साल 2018 से सरकार ने विभिन्न फसलों की लागत में कम से कम 50% मुनाफ़ा जोड़कर MSP निर्धारित करने की नीति को अपना रखा है। पिछले साल 1 जून को खरीफ फसलों की MSP को बढ़ाया गया था। केन्द्र सरकार का अनुमान है कि MSP की नयी दरों के निर्धारण से सरकार पर 25 हज़ार करोड़ रुपये बोझ बढ़ेगा।
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दलहन और तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए रणनीति
खरीफ सीजन 2021 में तुअर, मूँग और उड़द के लिए रक़बा और उत्पादकता बढ़ाने के लिए अधिक उपज देने वाले किस्मों (एचवाईवी) के बीजों को सहरोपण और एकल फसल के लिए किसानों को मुफ़्त मुहैया करवाया जाएगा। यही रणनीति तिलहनों के मामले में भी होगी। इसके लिए भी किसानों को उन्नत किस्म के बीजों के मिनी किट्स मुफ़्त दिये जाएँगे ताकि तिलहनी फसलों का रक़बा 6.37 लाख हेक्टेयर हो सके। सरकारी अनुमान है कि इन कोशिशों से तिलहन की पैदावार 120.26 लाख क्विंटल हो जाएगी और इससे 24.36 लाख क्विंटल खाद्य तेल का उत्पादन हो सकेगा।