उत्तर प्रदेश सरकार ने मंडियों में गेहूँ बेचने के लिए पहुँच रहे किसानों के लिए एक ऐसी नयी नीति को लागू किया है, जिससे ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का फ़ायदा मिल सके। इसके तहत 50 क्विंटल तक गेहूँ लेकर मंडी आने वाले किसानों के लिए सप्ताह के चार दिन यानी सोमवार से गुरुवार तक का वक़्त आरक्षित किया गया है, जबकि 50 क्विंटल से ज़्यादा गेहूँ को मंडी में बेचने के लिए पहुँचने वालों को शुक्रवार और शनिवार को मंडी में आने के लिए कहा गया है।
गेहूँ खरीद का रिकॉर्ड
उत्तर प्रदेश में खाद्य और रसद विभाग तथा अन्य खरीद एजेंसियों के ओर से चालू रबी सीज़न में 5,678 खरीद केन्द्रों का संचालन किया गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाली इन मंडियों में गेहूँ की खरीदारी 1 अप्रैल से शुरू हुई और ये 15 जून तक चलेगी। राज्य में 29 मई तक 37.63 लाख मीट्रिक टन गेहूँ की खरीद हुई है। जबकि पिछले साल पूरे सीज़न में 35.76 लाख मीट्रिक टन हुई थी।
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पंजीकरण का भी रिकॉर्ड
खाद्य आयुक्त मनीष चौहान के मुताबिक, इस साल गेहूँ की खरीद के लिए खाद्य विभाग के पोर्टल पर उत्तर प्रदेश के करीब 14.82 लाख किसानों ने ऑनलाइन पंजीकरण कराया है। जबकि पिछले साल करीब 7.94 लाख किसानों ने पंजीकरण करवाया था। लेकिन यदि पंजीकरण के मुकाबले गेहूँ बेचने के लिए मंडियों में पहुँचने वाले किसानों की संख्या की तुलना की जाए तो अब तक 7,71,504 किसानों से ही गेहूँ की खरीदारी की गयी है। यानी, कुल पंजीकृत किसानों में से अब भी करीब 7.10 लाख किसानों का मंडियों तक अपने गेहूँ को लेकर पहुँचना बाक़ी है।
इसका मतलब ये है कि अभी तक पंजीकृत किसानों में से सिर्फ़ 52 फ़ीसदी ने अपना गेहूँ मंडियों में ले जाकर बेचा है। 48 फ़ीसदी अब भी बचे हुए हैं, जबकि अब सिर्फ़ दो हफ़्ते की खरीदारी बाकी है। इस साल गेहूँ का समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित है। इस तरह अभी तक 7431.27 करोड़ रुपये के गेहूँ का ही भुगतान किसानों को हो पाया है। इसीलिए खाद्य विभाग ने दर्ज़न भर ज़िलों के उन मंडी प्रभारियों से जवाब तलब किया है जहाँ अनुमान से ख़ासे कम गेहूँ की खरीद-बिक्री हुई है।
रासायनिक खाद को लेकर निर्देश
उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्रालय के अपर मुख्य सचिव डॉ. देवेश चतुर्वेदी की ओर से सभी मंडलायुक्तों, ज़िलाधिकारियों, कृषि और सहकारिता विभाग तथा अन्य सम्बन्धित विभागों को हिदायत दी गयी है तो वो सभी आपसी तालमेल बनाकर ये सुनिश्चित करें कि किसानों को रासायनिक खाद सुलभ करवाने में कोई अड़चन नहीं आये। सरकारी निर्देश में कहा गया है कि प्वाइंट ऑफ़ सेल (POS) मशीन के ज़रिये उर्वरक बेचने के साथ ही सभी किसानों को कैश मेमो या खरीदारी की रसीद भी अवश्य दी जाए। साथ ही DAP और NPK खाद की बोरी पर दर्ज़ अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) से अधिक दाम पर खाद बेचने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
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नेपाल को खाद की तस्करी
अफ़सरों से ये भी सुनिश्चित करने को कहा गया है कि नेपाल के सीमावर्ती ज़िलों में 5 किमोमीटर के दायरे में कोई भी निजी उर्वरक विक्रय केन्द्र सक्रिय नहीं रहना चाहिए। ताकि वहाँ से नेपाल में रियायती खाद की तस्करी नहीं हो सके। क्योंकि ये किसी से छिपा नहीं है कि नेपाल में भारतीय रासायनिक खाद और यूरिया की जमकर तस्करी होती है। इससे खाद विक्रम केन्द्रों की भले ही खासी कमाई होती हो, लेकिन खाद के दाम पर केन्द्र सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी का फ़ायदा नेपाल के किसान को भी मिल जाता है, जबकि ये सब्सिडी भारतीय किसानों के लिए दी जाती है।