छत्तीसगढ़ के इन्दिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय (IGAU), रायपुर और भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र (BARC), ट्राम्बे के वैज्ञानिकों ने ख़ुशबूदार विष्णुभोग चावल की ऐसी उन्नत किस्म विकसित की है जिसके पौधों की ऊँचाई 110-115 सेंटीमीटर और पैदावार 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसे ‘ट्राम्बे छत्तीसगढ़ विष्णुभोग म्यूटेंट’ का नाम दिया गया है। आमतौर पर धान की नयी किस्म को विकसित करने में करीब 12 साल लगते हैं, लेकिन IGAU के धान अनुसन्धान केन्द्र ने इसे 5 साल में विकसित करके दिखाया है।
विष्णुभोग की ऊँचाई थी मुसीबत
वैसे तो ख़ुशबूदार विष्णुभोग चावल देश की परम्परागत किस्म है, लेकिन किसान इसे पैदा करने से इतना डरने लगे कि ये विलुप्त होने के कग़ार पा जा पहुँची। इसकी मुख्य वजह थी कि परम्परागत विष्णुभोग धान का पौधा तक़रीबन पौने दो मीटर (175 सेंटीमीटर) ऊँचा होता है और तेज़ हवा की मार से खड़ी फसल बर्बाद हो जाती है। इससे पैदावार गिर जाती है और किसानों को भारी नुकसान होता है।
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पैदावार होगी दोगुनी
IGAU के कुलपति डॉ एस के पाटिल का कहना है कि विष्णुभोग धान की नयी किस्म से अब धान के किसानों की आमदनी भी काफ़ी बढ़ जाएगी, क्योंकि इसकी पैदावार परम्परागत किस्म के मुक़ाबले दोगुनी से भी ज़्यादा है। क्योंकि परम्परागत किस्म की पैदावार जहाँ 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, वहीं नयी किस्म की पैदावार 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
रायपुर और धमतरी में सुलभ हैं बीज
डॉ पाटिल ने बताया कि IGAU की ओर से छत्तीसगढ़ के रायपुर और धमतरी इलाकों में किसानों को नयी किस्म का बीज उपलब्ध कराया गया है। जल्द ही अन्य राज्यों के किसानों को भी विष्णुभोग का बीज मुहैया करवाने की योजना पर तेज़ी से काम हो रहा है।
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उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के धान अनुसन्धान केन्द्र ने ज़्यादा पैदावार देने वाली धान की तीन अन्य किस्में भी विकसित की हैं। इनके नाम हैं – ट्राम्बे छत्तीसगढ़ सोनागाठी म्यूटेंट, छत्तीसगढ़ धान 1919 और CG तेजस्वी। इसके अलावा, मक्का की भी एक अगेती किस्म ‘CG अगेती संकर मक्का-1’ को विकसित करने का श्रेय विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों के नाम है।