देश का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक राज्य है राजस्थान, जहां देश के कुल बाजरा उत्पादन का क़रीब पचास फीसदी होता है। बाजरा कम बारिश वाले इलाकों यानी शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र की फसल है, जो राजस्थान के मौसम के अनुकूल है। राजस्थान का पश्चिमी हिस्सा बाजरा का गढ़ माना जाता है। बाजरा अपने गुणों के कारण सर्दियों में यहां ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है साथ ही मवेशियों के चारा में भी काम आता है, ऐसे में बाकी हिस्सों में भी बाजरा की खेती छिटपुट तरीके से किसान करते हैं।
जयपुर ज़िले में राज्य में सबसे ज्यादा बाजरा उत्पादन होता है। राजस्थान के किसान बाजरा की कीमतें कम मिलने को लेकर वर्षों से परेशान हैं और सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की, इस समस्या से किसानों को राहत नहीं मिल पाती। इस साल भी वही स्थिति दोहराई जाने से राजस्थान के किसानों की परेशानी बढ़ गई है।
बाजरा के सबसे बड़े उत्पादक राज्य की ऐसी हालत
बाजरा का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी 2250 रुपये प्रति क्विंटल है। किसानों को बाजरा की खेती में औसत लागत 1500 रुपये से लेकर 1600 रुपये प्रति क्विंटल तक की आती है। प्रति एकड़ बाजरा उत्पादन की बात करें तो अलग-अलग किस्मों के मुताबिक औसतन 18 क्विंटल से लेकर 28 क्विंटल तक की पैदावार हो सकती है।
एमएसपी पर सरकारी खरीद अगर हो तो बाजरा उत्पादक किसानों को लागत मूल्य से करीब 700 रुपये प्रति क्विंटल तक ज़्यादा मिल सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बाजरा शामिल नहीं है।
कम भाव में बेचनी पड़ रही है फसल
राजस्थान के किसान पहले हरियाणा जाकर अपनी बाजरा की फ़सल बेच लेते थे, लेकिन हरियाणा सरकार ने खरीद नीति बदल दी है, अब वहां एमएसपी और बाज़ार मूल्य के बीच का अंतर मूल्य राज्य सरकार अपने पंजीकृत किसानों को दे रही है। इसके कारण राजस्थान के किसान हरियाणा जाकर अपनी फ़सल नहीं बेच पा रहे हैं। अब स्थिति ये है कि राजस्थान के किसानों को स्थानीय बाज़ारों में स्थानीय व्यापारियों के हाथों ही फ़सल बेचनी पड़ रही है, जहां उन्हें औसतन 1300 रुपये प्रति क्विंटल का ही भाव मिल पा रहा है। ये भाव औसत लागत से भी कम है।
बाजरा को पीडीएस में शामिल करने की मांग
राजस्थान के किसान मांग कर रहे हैं कि राज्य सरकार बाजरा को पीडीएस में शामिल करे, एमएसपी पर बाजरा की खरीद सुनिश्चित करे और जब तक ये कदम नहीं उठाया जाता, तब तक एमएसपी और बाज़ार मूल्य की अंतर राशि का भुगतान की व्यवस्था करे। स्थानीय किसान संगठन और विपक्षी पार्टी के नेताओं की ओर से भी राजस्थान के बाजरा किसानों की इस मांग का समर्थन किया जा रहा है।