तीनों विवादित कृषि क़ानूनों को वापस लेने की माँग को लेकर 28 नवम्बर 2020 से आन्दोलन कर रहे किसान नेताओं को सरकार की ओर से तो अभी तक मायूसी ही मिली है। इसीलिए संयुक्त किसान मोर्चा ने अब विपक्ष का सहारा लेने की रणनीति बनायी है। किसान नेताओं ने तय किया कि 22 जुलाई से लेकर संसद के मॉनसून सत्र के जारी रहने तक रोज़ाना किसानों का एक जत्था संसद भवन पहुँचकर प्रदर्शन करेगा।
संसद का मॉनसून सत्र सोमवार, 19 जुलाई से 13 अगस्त तक चलेगा। 20 और 21 जुलाई को संसद में छुट्टी होगी। इसीलिए किसानों ने 22 जुलाई से संसद भवन पर प्रदर्शन करने और विपक्षी सांसदों पर दबाब बनाने की रणनीति बनायी है। किसानों की माँग है कि उनके प्रदर्शन के दौरान विपक्षी दल उनकी माँगों को लेकर सरकार पर दबाब बनाएँ और संसद को चलने नहीं दें। इसी माँग को लेकर किसानों की ओर से 17 जुलाई से सभी विपक्षी दलों को एक ‘चेतावनी पत्र’ भी भेजा जाएगा।
विपक्ष संसद ठप करे या इस्तीफ़ा दे
‘चेतावनी पत्र’ में संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की ओर से विपक्षी सांसदों से अपील की जाएगी कि या तो पूरी ताक़त से संसद के भीतर किसानों की माँग को बुलन्द कीजिए और सरकार पर दबाब बनाइए या फिर सांसद के पद से इस्तीफ़ा देकर किसानों के प्रति अपना समर्थन और एकजुटता ज़ाहिर कीजिए। SKM की ये रणनीति किसान आन्दोलन को नयी धार देने के लिए बनायी गयी है। इस आशय का फ़ैसला 4 जुलाई को हरियाणा के सोनीपत ज़िले के सिंघु बॉर्डर पर हुई 67 किसान संगठनों की बैठक में लिया गया। SKM की बैठक के बाद जारी हुई प्रेस विज्ञप्ति में दोहराया गया कि कृषि क़ानूनों को वापस लेने और सभी कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की माँग के पूरा होने तक किसानों का आन्दोलन न सिर्फ़ जारी रहेगा बल्कि इसे लगातार और तेज़ किया जाएगा।
8 जुलाई को देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन
इससे पहले 2 जुलाई को हुई अपनी पिछली बैठक में SKM ने घोषणा की थी कि पेट्रोलियम पर्दार्थों की बेतहाशा बढ़ रही कीमतों के ख़िलाफ़ गुरुवार 8 जुलाई को देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन किया जाएगा। इसी सिलसिले में तय किया गया कि 8 जुलाई को सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक स्टेट और नैशनल हाईवे पर वाहनों को पार्क किया जाएगा। इसकी पिछली रात यानी 7 और 8 जुलाई की दरम्यानी रात को 12 बजे से 8 मिनट तक किसानों से अपने वाहनों का हॉर्न बजाने को भी कहा गया है।
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SKM के नेताओं ने किसानों से कहा है कि उनके पास जो भी वाहन हो – ट्रैक्टर, ट्रॉली, कार, स्कूटर, बस उसे वो अपने नज़दीकी राज्य या राष्ट्रीय राजमार्ग पर लाएँ और सड़क के किनारे ऐसे पार्क करें, जिससे ट्रैफिक जाम नहीं हो। किसान नेताओं ने महिलाओं से अपने रसोई गैस सिलेंडर के साथ सड़कों पर इक्कठा होकर विरोध का हिस्सा बनने का भी अपील की है।
कोई पक्ष टस से मस को राज़ी नहीं
किसान आन्दोलन के प्रति कोई भी पक्ष नरमी दिखाने को तैयार नहीं है। सरकार की ओर से केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर बार-बार दोहरा चुके हैं कि कृषि क़ानून वापस नहीं लिये जाएँगे। अलबत्ता, क़ानून के जिन प्रावधानों पर किसानों को ख़ासा एतराज है, उसे संशोधित करने के लिए ज़रूर बातचीत हो सकती है। सरकार बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन ये शर्तों के साथ नहीं हो सकती।
उधर, किसानों नेताओं की ओर से बार-बार दोहराया जा रहा है कि पहले सरकार विवादित क़ानूनों को वापस ले, तभी बातचीत का वो सिलसिला बहाल हो सकता है, जो 11 दौर के बाद जनवरी से स्थगित है। किसान नेताओं का कहना है कि सरकार की ओर से जिन संशोधनों का वास्ता दिया जा रहा है, उससे बात नहीं बनेगी, क्योंकि सरकार की मंशा भरोसेमन्द नहीं है। इसीलिए हमारी माँग है कि पहले सरकार तीनों काले क़ानूनों को वापस ले और फिर बातचीत की दुहाई दे।
सरकार नहीं झुकेगी
बता दें कि कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने 1 जुलाई के अपने ताज़ा बयान में साफ़ किया था कि ‘तीनों कृषि क़ानून किसानों के जीवन में क्रान्तिकारी बदलाव लाएँगे। इसीलिए सरकार इन क़ानूनों को निरस्त करने की माँग को छोड़कर विरोध करने वाले किसानों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार है।’ दूसरी ओर SKM का कहना है कि किसान जानते हैं कि क़ानूनों को जीवित रखने से विभिन्न तरीकों से किसानों की कीमत पर कॉरपोरेट्स का समर्थन करने के लिए सरकारी अपनी कार्यकारी शक्ति का दुरुपयोग करेगी। क्योंकि जब क़ानून का उद्देश्य ही किसानों के ख़िलाफ़ है तो उसमें इधर-उधर की छेड़छाड़ करने से बात नहीं बनेगी।
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सरकार खेल रही है ‘अहंकार का खेल’
SKM का ये भी कहना है कि केन्द्र सरकार की ओर से कभी ये साफ़ नहीं किया गया कि किसान विरोधी क़ानूनों को निरस्त क्यों नहीं किया जा सकता? हम तो सिर्फ़ यही नतीज़ा निकाल पा रहे हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक निर्वाचित सरकार अपने नागरिकों के सबसे बड़े वर्ग यानी किसानों के साथ ‘अहंकार का खेल’ खेल रही है और देश के अन्नदाताओं की क़ीमत पर पूँजीपतियों के हितों को चुनना पसन्द कर रही है। इतना ही नहीं, तीनों क़ानूनों को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक तरीके से बनाया गया है। इसके लिए केन्द्र सरकार ने उन क्षेत्रों में क़दम रखा है जिसे लेकर उसके पास संवैधानिक अधिकार नहीं है।