बाजरे की खेती ने ओडिशा के कई किसानों की किस्मत बदल दी। जिन्हें दो वक़्त की रोटी भी मुश्किल से नसीब हो पाती थी, अब रागी की खेती की बदौलत न सिर्फ़ वह अच्छी आजीविका कमा रहे हैं, बल्कि उनकी पोषण की ज़रूरत भी पूरी हो जाती है। दरअसल, रागी बहुत ही पौष्टिक अनाज है, मगर इसे लेकर जागरुकता की कमी है। इसकी वजह से आज भी बहुत से लोग इसे गरीबों का भोजन समझते हैं, जबकि यह सेहत का खज़ाना है। बाजरे की खेती ने ओडिशा की एक महिला किसान की ज़िंदगी बदल दी।
मिलेट ने बनाया आत्मनिर्भर
ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के गोइली गांव की रहने वाली 50 साल की महिला किसान सुबासा मोहन्ता खेतिहर मज़दूर थी। निर्माण स्थलों पर भी मज़दूरी का काम करती थीं। 16 घंटों की कड़ी मेहनत के बाद भी वह अपने परिवार को दो वक्त की रोटी मुश्किल से दे पाती थी। 2018 में सरकार की ओर से मिले बीज के छोटे से पैकेटउनकी ज़िंदगी बड़ा बदलाव लेकर आए। यह बीज थे मिलेट यानी रागी के। सुबासा ने इन बीज़ों को अपने घर के आसपास की करीब 0.6 हेक्टेयर भूमि में लगाया। दो महीने बाद फसल तैयार हो गई। रागी या बाजरा को उड़िया में मांडिया कहा जाता है।
सुबासा ने तैयार फसल में से 500 किलो 40 रुपये प्रति किलो की दर से बेची। कुछ हिस्सा परिवार के खाने के लिए रखा। थोड़ा मिलेट दोस्त और रिश्तेदारों के बीच बांट दिया। पहली फसल के बाद उन्होंने दोबारा मिलेट के बीज बोए और नतीजे फिर से अच्छे रहे। अब लगातार 3 साल से वह बाजरे की खेती कर रही हैं। दरअसल, सुबासा को ओडिशा सरकार के ओडिशा मिलेट्स मिशन (OMM) योजना, के तहत बीज का वितरण किया गया था। ये योजना विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) द्वारा समर्थित है।
अब सुबासा मोहन्ता अपनी ज़मीन के साथ ही 3.2 हेक्टेयर ज़मीन पट्टे पर लेकर रागी/बाजरे की खेती कर रही हैं। अन्य महिला किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रही हैं। मिलेट की सफल खेती के कारण ही वह इलाके में ‘मांडिया मां’ के नाम से लोकप्रिय हैं। मिलेट अब उनके भोजन का भी हिस्सा बन चुका है। गरीब ग्रामीण इलाकों में कुपोषण की समस्या दूर करने में मिलेट बहुत कारगर साबित हो सकता है।
बहुत मज़बूत होता है मिलेट का पौधा
मिलेट के पौधे बहुत ही सहनशील होते हैं, जो 65 डिग्री तक के गर्म तापमान में भी जीवित रह सकते हैं। इनमें सूखा व बाढ़ सहने की भी शक्ति होती है। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के इस दौर में जहां मौसम में ज़बर्दस्त बदलाव आ रहे हैं, मिलेट की खेती किसानों के लिए अच्छा विकल्प है। मिलेट में धान और गेहूं के मुकाबले पानी की भी कम ज़रूरत होती है। यह छोटी अवधि में बिना खाद के आसानी से उग जाता है, जो सेहत और मिट्टी दोनों के लिए फ़ायदेमंद है।
महिलाएं कर रहीं नेतृत्व
क्षेत्र की महिलाएं रागी और बाजरे की प्रोसेसिंग कर इन्हें आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के साथ ही कमाई का ज़रिया भी तलाश रही हैं। उड़िसा के पारंपरिक भोजन में भी बाजरा अपना स्थान बना चुका है। महिलाओं के कई स्वयं सहायता समूह सरकार के ओडिशा मिलेट्स मिशन को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।
ट्रेनिंग प्रोग्राम्स में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं बाजरा और रागी के नए-नए व्यंजन जैसे रागी मोमोज़, रागी चिकन पकोड़े और रागी बिरयानी परोस रही हैं। बाजरे के व्यंजन परोसने वाले कई महिलाएं कैफे भी चला रही हैं। अक्टूबर 2021 में क्योंझर के कलैक्ट्रेट परिसर में पहला ‘मिलेट शक्ति कैफे’ में खोला गया। इस कैफे की पूरी बागडोर महिलाओं के हाथ में है।
ओडिशा मिलेट्स मिशन की ख़ासियत
2017 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य बाजरा और रागी जैसे पौष्टिक अनाज की खेती को बढ़ावा देना है। ओडिशा की जनजातीय आबादी के भोजन में इसे दोबारा शामिल करने के साथ ही छोटे किसानों की आजीविका सुनिश्चित करने का भी लक्ष्य है। खाद्य सुरक्षा प्रदान करना ताकि ग्रामीण भुखमरी का शिकार न हों। इसने महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ ही छोटे किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने में मदद की है।
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