लेमनग्रास से निकलने वाले तेल की बाजार में बहुत मांग है। इससे निकलने वाले तेल का इस्तेमाल कॉस्मेटिक्स, साबुन, तेल और दवा बनाने के काम आता है। इसकी वजह से इसके उत्पादन में शामिल कंपनियां इसकी अच्छी कीमत देती है।
इसकी वजह से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, असम, उत्तराखंड और झारखंड में किसानों की रुचि लेमन ग्रास की खेती की ओर बढ़ा है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में लगाया जा सकता है।
भारत में प्रतिवर्ष करीब 1000 मीट्रिक टन लेमन ग्रास का उत्पादन होता है, जबकि दुनिया में इसकी मांग इससे कहीं ज्यादा है। वर्तमान में भारत केवल 5 करोड़ रुपये का लेमन ग्रास तेल निर्यात कर रहा है। ऐसे में किसान इसकी खेती बड़े पैमाने पर कर मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।
जानवर फसल नहीं कर पाते बर्बाद
लेमनग्रास का एक पौधा करीब 75 पैसे में मिलता है। ऐसे में छोटे किसानों को इसे उगाने के लिए ज्यादा लागत की जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा अन्य फसलों की अपेक्षा लेमनग्रास में बीमारियां भी कम लगती हैं।
पत्तियां कड़वी होने की वजह से जानवर भी इसे नहीं खाते, जिससे फसल के रखरखाव पर ज्यादा ध्यान नहीं देना पड़ता।
एक साल में छह कटाई
लेमनग्रास का पौधा लगाने के बाद छह महीने में इससे फसल तैयार हो जाती है। इसके बाद हर 70 से 80 दिनों पर किसान इसकी कटाई कर सकते हैं। सालभर में इस पौधे की पांच से छह कटाई की जा सकती है।
एक बार लगाने के बाद किसानों को लगभग सात साल तक दोबारा पौधा लगाने से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए इसे बारहमासी मुनाफा देने वाली फसल भी कहा जाता है।
इस तरह करें खेती
लेमनग्रास की नर्सरी बेड तैयार करने का सबसे अच्छा समय मार्च-अप्रैल का महीना है। लेमनग्रास का फैलाव इसके बढ़ने की प्रकृति पर निर्भर करता है।
लेमनग्रास को जमीन में 2-3 सेंटीमीटर गहराई में बोना चाहिए। बुवाई से पहले बीज का रासायनिक उपचार करने से परिणाम अच्छे मिलते हैं।
सरकार से मिलती है मदद
लेमनग्रास की खेती के लिए आम तौर पर राज्य सरकार प्रति एकड़ 2,000 रुपये की सब्सिडी देती है। साथ ही डिस्टीलेशन यूनिट लगाने के लिए 50 फीसदी तक सब्सिडी अलग से मिल सकती है।
इसके अलावा लेमनग्रास की खेती के लिए नाबार्ड की तरफ से कई प्रकार के लोन दिए जाते हैं।