किसानों का रुझान मशरूम की खेती की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रहा है। कम जगह और कम समय के साथ ही इसकी खेती में लागत बहुत कम लगती है। दूसरी ओर मुनाफ़ा लागत से कई गुना ज़्यादा मिल जाता है। मशरूम की अलग-अलग किस्में हैं और इनमें से एक किस्म का नाम है ढिंगरी मशरूम, जिसे अंग्रेजी में ऑएस्टर मशरूम भी कहा जाता है।
इसकी खेती करने के लिए बड़ी जगह की ज़रूरत नहीं होती। कम लागत में छोटे से क्षेत्र में भी इसे उगाया जा सकता हैं। इसकी खेती कच्चे व पक्के मकान में छोटे से छोटे कमरे में आसानी से की जा सकती है।
किसानाें को भा रही ढिंगरी मशरूम की खेती
फरवरी-मार्च में पैदा होने वाली मशरूम की यह किस्म 40-45 दिन में अपना फसल चक्र पूरा कर लेती है। इस तरह से पूरे साल में इसकी खेती 5 से 6 बार की जा सकती है। ढिंगरी मशरूम की फसल विशेष नमी और ज़्यादा तापमान पर ज़्यादा अच्छी होती है। इसके उत्पादन की गुणवत्ता के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 80 से 90 प्रतिशत आर्द्रता की ज़रूरत होती है। इसके एक फल का 100 ग्राम 200 ग्राम का वजन होता है। किसानों के घर में भूसा आसानी से उपलब्ध रहता है, उसकी भूसे का इस्तेमाल इसकी खेती में किया जाता है।
लागत कम मुनाफ़ा ज़्यादा
10 क्विंटल भूसे में ढिंगरी मशरूम की उत्पादन लागत करीब 25 हज़ार रुपये आती है। इसमें करीबन 48 हज़ार रुपये की मशरूम हो सकती है यानि किसान 40 से 45 दिन में बनकर तैयार हो जाने वाली इस फसल से लगभग 23 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा कमा सकते हैं। वर्तमान में ऑयस्टर मशरूम 120 रुपए प्रति किलोग्राम से लेकर एक हज़ार रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में बिक जाता है। मूल्य उत्पाद की गुणवत्ता पर भी निर्भर करता है।
कई उत्पाद बनाकर आमदनी में इज़ाफ़ा
ढिंगरी मशरूम को सुखाकर अधिक समय तक इसका भंडारण भी किया जा सकता है। मशरूम से अचार, पाउडर, शूप, भूजिया सहित कई और उत्पाद बनाए जाते हैं। किसान घरों में ही मशरूम से अलग-अलग उत्पाद बनाकर अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं।