पिछले कुछ साल में किसानों का रुझान मशरूम की खेती की तरफ़ तेज़ी से बढ़ा है। इसका वाजिब कारण भी है। कम जगह के साथ ही इसकी खेती में लागत भी कम आती है। दूसरी ओर मुनाफ़ा लागत से कई गुना ज़्यादा मिल जाता है। इस खेती की ख़ास बात है कि इसकी अलग-अलग किस्मों की खेती किसान सालभर कर सकते हैं। इस कारण मशरूम की कई किस्मों की खेती साल भर कमाई का ज़रिया बनकर उभरी है। ऐसी ही एक किस्म का ज़िक्र हम इस लेख में करने जा रहे हैं। उस किस्म की नई तकनीक की मदद से कैसे उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है, उसके बारे में इस लेख में आगे आप जानेंगे।
मशरूम की कई किस्मों में एक है ढिंगरी मशरूम, जिसे अंग्रेजी में ऑयस्टर मशरूम भी कहा जाता है। इसकी खेती करने के लिए बड़ी जगह की ज़रूरत भी नहीं होती। कम लागत में छोटे से क्षेत्र में भी इसे उगाया जा सकता हैं। इसकी खेती कच्चे व पक्के मकान में छोटे से छोटे कमरे में आसानी से की जा सकती है।
मिलेगा ज़्यादा उत्पादन और पोषक तत्वों से भी भरपूर
आज देश के अलग-अलग राज्यों के किसान मशरूम की खेती से जुड़े हैं और अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। ऐसे में मशरूम की खेती से किसानों को अधिक से अधिक लाभ कैसे पहुंचाया जाए, इसको लेकर कृषि वैज्ञानिक आधुनिक तकनीकों पर काम करते रहते हैं। ऐसी ही दो तकनीक उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ईज़ाद की।
इन दो तकनीकों की मदद से ऑयस्टर मशरूम की खेती कर रहे किसानों की फसल वक़्त से पहले ही तैयार हो जाएगी और उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी। बता दें कि अन्य प्रकार के मशरूम की तुलना में ऑयस्टर मशरूम की खेती करना आसान और सस्ता है और ये पोषक तत्वों से भी भरपूर हैं।
जानिए दो नई तकनीकों के बारे में
आमतौर पर ऑयस्टर मशरूम उगाने वाले किसान भूसे को पहले 24 घंटे भिगोकर रखते हैं। उसके बाद पानी से भूसे को निकाल लिया जाता है और भूसे में लगभग 75 प्रतिशत की नमी हो, इसका खासतौर पर ख्याल रखा जाता है। फिर इस भूसे में स्पॉन को मिलाया जाता है। मशरूम के बीज को स्पॉन कहते हैं। फिर तैयार भूसे को प्लास्टिक की थैलियों में अच्छे से बांधकर अंधेरे कमरों में रख दिया जाता है।
चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय ने जो दो तकनीक विकसित की हैं उसमें भूसे में मिलाई जाने वाली चीजों को बदला गया है। इस प्रयोग का नतीजा अच्छा रहा। पहली तकनीक में भूसे के साथ गुड़ और चोकर मिलाया गया। इसमें पांच किलो भूसे में 400 ग्राम गुड़ का 20 फ़ीसदी सॉल्यूशन बनाकर उसमें 800 ग्राम गेहूं का चोकर डाला गया।
वहीं दूसरी तकनीक में भूसे के साथ एनपीके और कैल्शियम कॉर्बानेट मिलाया गया। इसमें पांच किलो भूसे में पांच मिली ग्राम एनपीके और 6 मिली ग्राम कैल्शियम कॉर्बोनेट की मात्रा मिलाई गई। दोनों ही तकनीक में मिश्रण तैयार करने के बाद बाकी आगे की प्रक्रिया आमतौर पर अपनाई जाने वाली विधि की तरह ही है।
वक़्त से पहले तैयार हो जाती है उपज
जब इन नई तकनीकों से मशरूम उगाए गए तो मशरूम का उत्पादन ज़्यादा देखा गया। साथ ही पौष्टिकता के लिहाज़ से ये ज़्यादा अच्छी हैं और इनका आकार भी सामान्य विधि की तुलना में ज़्यादा है। जहां आमतौर पर मशरूम की उपज को तैयार होने में लगभग 30 दिन का समय लग जाता है, वहीं इन दो तकनीकों से मशरूम की उपज 20 दिन में तैयार हो जाती है।
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