कपास, भारत की प्रमुख नकदी फसल है। इसे सफ़ेद सोना भी कहते हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं। देश के क़रीब 35 करोड़ लोगों की जीविका कपास से जुड़ी है। दुनिया का 38 फ़ीसदी कपास उत्पादक क्षेत्र भारत में है। भारत में अनेक कीट-पतंगों और रोगों से कपास की पैदावार काफ़ी कम मिलती है। कपास को अनेक किस्म की सुंडियों (पतंगों) से भी काफ़ी नुकसान होता है। सुंडियों का प्रकोप उस वक़्त ज़्यादा होता है जब कपास के पौधे 60 से 100 दिन के हो जाते हैं। इनसे बचाव का एकमात्र उपाय है फेरोमोन ट्रैप (Pheromone Trap), जबकि बाक़ी रोगों और कीटों के लिए अन्य उपचार मौजूद हैं।
फेरोमोन ट्रैप के इस्तेमाल से सुंडियों की रोकथाम करके कपास के प्रति हेक्टेयर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। देश में कपास की औसत पैदावार बेहद कम है। भारत में ये 454.4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है तो चीन में 1764 और अमेरिका में 955 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। भारत में कपास की खेती करने वाले 90 फ़ीसदी किसान छोटे और सीमान्त श्रेणी के हैं, जो 2 हेक्टेयर से कम ज़मीन में इसे उगाते हैं। देश में कपास का कुल रक़बा करीब 94 लाख हेक्टेयर है। कपास का वैश्विक उत्पादन करीब 2.5 करोड़ टन है। इसमें भारत की हिस्सेदारी करीब 62 लाख टन की है।
कपास का ज़िक्र ऋग्वेद में भी है। इससे पता चलता है कि कपास की खेती की परम्परा युगों पुरानी है। संसार में इसकी सिर्फ़ 2 किस्में हैं – देसी और अमेरिकन कपास। इसके झड़ीनुमा पौधे बहुवर्षीय होते हैं। इनकी ऊँचाई 2 से 7 फ़ीट तक होती है। कपास के फूलों का रंग सफ़ेद या हल्का पीला होता है। कपास के फल बॉल्स (balls) कहलाते हैं जो चिकने और हरे-पीले रंग के होते हैं। फल में ही सेल्यूलोस से बना कपास और उसका बीज होता है। गुजरात देश का सबसे बड़ा कपास उत्पादक राज्य है।
क्या है फेरोमोन ट्रैप?
फेरोमोन ऐसा रासायनिक पदार्थ या स्राव है जिसे नर सुंडियों को प्रजनन के लिए रिझाने के लिए मादा सुंडियाँ छोड़ती हैं। लेकिन इसकी गन्ध पाकर जब नर सुंडियाँ वहाँ पहुँचती हैं तो ट्रैप (जाल) में फँस जाती हैं। इससे सुंडियों का प्रजनन चक्र बाधित हो जाता है और उनसे छुटकारा मिल जाता है। दरअसल, ख़तरनाक कीटों के प्रजनन व्यवहार के बारे में वैज्ञानिक जानकारियाँ विकसित होने के बाद ही ‘फेरोमोन ट्रैप’ नामक उपकरण का आविष्कार और इस्तेमाल शुरू हुआ।
फेरोमोन ट्रैप एक प्रजाति विशेष के कीटों को आकर्षित करने के काम आते हैं। ये ट्रैप मुख्य रूप से लेपिडोप्टेरा औऱ कोलियोप्टेरा फैमिली के कीटों के निगरानी और नियंत्रण के काम में आते हैं। फेरोमोन ट्रैप में अलग-अलग प्रजातियों को नर सुंडियों को आकर्षित करने के लिए कृत्रिम रबर का ल्यूर (सेप्टा) लगाया जाता है। इसमें उसी प्रजाति के नर को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रसायन लगा होता है। आकर्षित नर पतंगे ट्रैप में लगी प्लास्टिक की थैली में आने के बाद वहाँ फँसकर मर जाते हैं। फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग सुंडियों को ग़ैर-रासायनिक तरीके से ख़त्म करने का इकलौता तरीका है।
फेरोमोन ट्रैप को खेत में लगाने का तरीका
सबसे पहले फेरोमोन ट्रैप के ढक्कन को हटाकर उसमें प्रजाति विशेष के कीट का ल्यूर (सेप्टा) अच्छी तरह से लगा दें। वैसे तो फेरोमोन ट्रैप की बनावट ऐसी होती है कि उसमें आकर्षित होकर पहुँचने वाले नर पतंगे बाहर नहीं निकल सकते। फिर भी नर पतंगों को मारने के फेरोमोन ट्रैप में लगी प्लास्टिक की थैली में नीचे की ओर किसी भी कीटनाशक से रूई को भिगोकर इसके टुकड़े को रस्सी की सहायता से रखा जा सकता है। इससे ट्रैप में फँसने वाले नर पतंगे मर जाएँगे। इसके बाद फेरोमोन ट्रैप को एक लकड़ी पर बाँधकर खेत में फसल से 1-1.5 फीट की ऊँचाई पर लटका दें। जैसे-जैसे फसल की ऊँचाई बढ़ती जाए वैसे-वैसे हरेक 15-20 दिनों बाद ट्रैप को भी ऊँचा करते रहें।
फेरोमोन ट्रैप से जुड़ी सावधानियाँ
फेरोमोन ट्रैप किस प्रजाति विशेष कीट के लिए लगाया गया है, उसका लेबल अवश्य लगाएँ। फेरोमोन ट्रैप में उपयोग होने वाले ल्यूर (सेप्टा) को 15 दिनों के बाद अवश्य ही बदलें। लिखकर रखें कि ल्यूर को किस दिन लगाया या बदला गया है? ल्यूर बदलने से पहले और बाद में हाथों को साबुन से अच्छी तरह अवश्य धो लें। ल्यूर और उसके पाउच को अच्छी तरह से नष्ट करें। हर रोज़ सुबह लगाये गये सभी ट्रैप का निरीक्षण करें और फँसे हुए पतंगों का ब्यौरा एक रजिस्टर में नोट करने के बाद ही उन्हें नष्ट करे।
ट्रैप में फँसे नर पतंगों की संख्या से खेत में मौजूद सुंडियों की सही जानकारी मिल जाती है। कुछ सुंडियों के लिए फेरोमोन ट्रैप में फँसे नर पतंगों के आधार पर ‘आर्थिक नुकसान स्तर’ निर्धारित किया गया है। गुलाबी सूंडी के मामले में यदि लगातार तीन दिनों तक फेरोमोन ट्रैप में 8-10 पतंगे फँस जाएँ तो अपने नज़दीकी कृषि अधिकारी, कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषि विशेषज्ञ से सम्पर्क करें और उनकी ओर से सुझाये गये कीटनाशक का छिड़काव करें।
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