अरहर, भारत का प्रमुख दलहन है। भारत ही इसकी मातृभूमि है। यहीं इसकी सबसे ज़्यादा किस्में मिलती हैं। यहीं से ये अन्य देशों में फैली। वैसे पूर्वी अफ्रीका को अरहर का दूसरा जन्मस्थान माना गया है। भारत ही अरहर का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक भी है। देश में अरहर की सालाना पैदावार 38.8 लाख टन है तो आयात 4.4 लाख टन। ज़ाहिर है, अरहर की घरेलू पैदावार से हमारी माँग पूरी नहीं होती। हालाँकि, देश में दलहनों के रक़बे और पैदावार के लिहाज़ से चने के बाद अरहर का स्थान है।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु, प्रमुख अरहर उत्पादक राज्य हैं। अरहर की खेती के कई तरीके हैं। उत्तरी और पूर्वी राज्यों में लम्बी अवधि की अरहर की खेती प्रचलित है तो मध्य भारत और दक्षिणी राज्यों मध्यम अवधि की अरहर उगायी जाती है। जबकि उत्तर भारत में सिंचित दशा में कम अवधि वाली द्वि-फसली अरहर की खेती प्रचलित है। दाल और सब्जी के अलावा अरहर, उत्तम पशु चारा भी है।
अरहर के 10 दुश्मन
अरहर के 10 प्रमुख दुश्मन हैं। इनमें से 6 बैक्टीरिया, वायरस और फंगस (कवक) जनित रोग हैं तो 4 बीमारियाँ ऐसी हैं जो अपने कीटों के ज़रिये अरहर की फसल को भारी नुकसान पहुँचाती हैं। ये नुकसान इतना ज़्यादा होता है कि पैदावार गिरकर आधी रह जाती है। इससे किसान को भारी नुकसान होता है और वो उस अरहर की खेती से कतराते लगते हैं जो न सिर्फ़ सबसे महँगा दलहन है, बल्कि सबसे महँगा अनाज भी है। इसीलिए ज़रूरत अरहर के दुश्मनों के डर से मैदान छोड़ने जाने की नहीं बल्कि ऐसे जतन करने की है जिससे अरहर के दुश्मनों का वक़्त रहते सफ़ाया हो सके और अरहर के ऊँची पौधों की तरह किसान की आमदनी भी ऊँची हो सके।
अरहर के दुश्मनों की चुनौतियों को देखते हुए कानपुर स्थित भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान (ICAR-Indian Institute of Pulses Research) ने अरहर को नुकसान पहुँचाने वाले हरेक रोग और कीट के रोकथाम की वैज्ञानिक प्रक्रिया तय की है। इसके बारे में ‘किसान ऑफ़ इंडिया’ आपको विस्तार से जानकारी देगा और हरेक बारीक से बारीक पहलू या सावधानी के बारे में बताएगा। अरहर की खेती से जुड़ी ऐसी व्यापक जानकारियाँ हम आप तक तीन स्पेशल स्टोरीज़ (Parts) के ज़रिये पहुँचाएँगे। मौजूदा पहले स्टोरी, जहाँ अरहर की खेती के ‘कीट प्रबन्धन’ पर केन्द्रित है तो दूसरी ‘रोग प्रबन्धन’ पर। तीसरी स्टोरी में बात होगी कि अरहर की खेती की ‘सही वैज्ञानिक प्रक्रिया’ क्या है और इसकी उन्नत किस्में कौन सी हैं?
अरहर की फसल के कीट और उनका इलाज़
प्राणि जगत के कम से कम चार ऐसे कीट हैं जिन्हें अरहर की फसल का बेहद ख़तरनाक दुश्मन कहा जा सकता है। इसने हमलों से अरहर की पैदावार बुरी तरह से प्रभावित होती है। कई बार तो ये कीट पूरी की पूरी फसल को ही तबाह कर देते हैं। ये कीट हैं – फली भेदक सूंड़ी, फली मक्खी, ब्लिस्टर बीटल और चित्तीदार फली भेदक। कृषि वैज्ञानिकों ने इन सभी से बचाव के उपाय बताये हैं।
1. फली भेदक (Pod borer)
हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा (Helicoverpa armigera) नामक फली भेदक (Pod borer), अरहर का प्रमुख हानिकारक कीट है। इससे किसानों को भारी नुकसान पहुँचाता है। ये इतना ख़तरनाक है कि हर साल 20 से 30 फ़ीसदी पैदावार का नुकसान करता है। अत्यधिक प्रजनन और पलायन क्षमता वाला ये बहुभक्षी कीट अनुकूल माहौल में ऐसा कहर ढाता है कि देखते ही देखते पूरी फसल नष्ट हो जाती है। फरवरी-मार्च के बाद जब गर्मी बढ़ती है, तब फली भेदक कीट का प्रकोप बढ़ने लगता है। इस कीट की वयस्क सूंड़ियाँ अरहर की फलियों में छेद करके उसके दानों को खाने लगते हैं। इस कीट का हमला इतना तेज़ होता है कि जब तक किसान को इसकी भनक लगती है तब तक ये 5-7 प्रतिशत फसल को बर्बाद कर चुके होते हैं। इसके बाद फली भेदक पर काबू पाना बेहद कठिन हो जाता है।
फली भेदक कीट का जीवन चक्र 30 से 37 दिन का होता है। इसकी चार अवस्थाएँ हैं – अंडा, सूंड़ी, कोषक और पतंगा। मादा पतंगा अपने जीवन काल में 500 से 1700 अंडे देती है। अंडों से 5-7 दिनों में सूंड़ी निकलते हैं जो अगले 12-14 दिनों में 5-6 बार अपना केचुल बदलते हुए बड़े होते हैं। यही सूंड़ियाँ फसल को नुकसान पहुँचाते हुए धीरे-धीरे कोषक का रूप लेने लगती हैं और मिट्टी में पहुँचकर सुप्त अवस्था धारण कर लेती हैं। इन्हीं कोषकों से अगले 8-10 दिनों में ऐसे पतंगे निकलते हैं, जो फिर से अपने जीवन और प्रजनन चक्र को चलाने लगते हैं।
फली भेदक कीट से कैसे करें बचाव?
फली भेदक कीट के हमले से बचाव की तरीकों को किसानों को गर्मियों में ही अपनाना चाहिए। जिस खेत में वो अरहर की खेती करना चाहते हैं उसमें गर्मियों में ही खेतों की गहरी जुताई करें। इसके बाद अगेती अरहर की बुआई 15 से 20 जून के आसपसा और पिछेती अरहर की बुवाई 15 से 20 जुलाई के आसपास करनी चाहिए। अरहर की फसल के साथ ही ज्वार की अन्तः फसल लेने से भी फली भेदक कीट का प्रकोप कम हो जाता है। इसके अलावा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 5 फिरोमोन ट्रैप को भी खेत में लगाना चाहिए।
क्या हैं फेरोमोन ट्रैप?
फेरोमोन ट्रैप (Pheromone Trap) के ज़रिये किसान न सिर्फ़ कीटों पर काबू पा सकते हैं, बल्कि अपनी फसलों को भी जहरीले कीटनाशकों से मुक्त बना सकते हैं। सब्जियों की खेती में इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है क्योंकि सब्जियों को तरह-तरह के कीट ही सबसे अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। दरअसल, मादा कीटों को आकर्षित करने के लिए नर कीट फेरोमोन नामक एक ख़ास केमिकल या हार्मोन को छोड़ते हैं। हरियाणा सरकार का बाग़वानी विभाग फेरोमोन ट्रैप की खरीदारी पर 75% अनुदान देता है। सब्जियों की खेती में प्रति एकड़ में 10 से 20 ट्रैप लगाने पर करीब 1600 रुपये खर्च होते हैं।
फेरोमोन ट्रैप भी अलग-अलग किस्म के होते हैं और इसमें अलग-अलग तरह के ल्युर (lure) यानी आकर्षक पदार्थ का इस्तेमाल करते हैं। फेरोमान ट्रैप के इस्तेमाल से खेतों में ज़्यादा कीटनाशक की ज़रूरत नहीं पड़ती और फसल की गुणवत्ता और पैदावार अच्छी होती है। फेरोमोन ट्रैप लगाने से पहले किसानों को कृषि विशेषज्ञों से सलाह भी लेनी चाहिए क्योंकि कीट-नियंत्रण के लिए फेरो-टी ट्रैप, फ्लाई-टी ट्रैप, वोटा-टी ट्रैप, डेल-टा ट्रैप तथा कोको ट्रैप जैसे उपकरण प्रयोग में लाये जाते हैं। इनमें अलग-अलग ल्युर यानी कैप्सूल का इस्तेमाल होता है, जो मादा कीटों को आकर्षित करने के लिए कैमिकल छोड़ते हैं। मादा कीट इनके आते ही इनमें फँस जाते हैं। जहाँ से किसान इन्हें निकालकर नष्ट कर देते हैं।
फली भेदक से निपटने वाले कीटनाशक
अरहर की खड़ी फसल में जैसे ही फली भेदक कीट की सूड़ी नज़र आये वैसे ही कीटनाशकों का छिड़काव करना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए कीटनाशकों के निम्न विकल्पों का इस्तेमाल करना चाहिए।
(i) प्रति हेक्टेयर के लिए एक से डेढ़ किग्रा बेसिलस थूरिंजिएंसिस कुर्सटा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर तैयार किया गया घोल।
(ii) ईमामेक्टीन बेन्जोएट 5 SG (3 ग्राम प्रति 10 लीटर) की दर से या इन्डेक्सोकार्ब 15.8 EC (5 मिली प्रति 10 लीटर) या स्पाईनोसाड 45% SC (2 मिली प्रति 10 लीटर) का घोल।
(iii) HA (2%AS) NPV 1 मिली प्रति लीटर या नीम का तेल (0.03 %) प्रति लीटर में 5 मिलीलीटर मिलाकर बनाया गया घोल।
2. फली मक्खी (Pod fly)
उत्तर भारत में देर से पकने वाली अरहर की फसल का दूसरे नम्बर का मुख्य दुश्मन फली मक्खी (Pod fly) यानी मेलनोगरोमैजा अटुयसा (Melanagromyza obtuse) हैं। इस हानिकारक कीट की सभी अवयस्क अवस्थाएँ जैसे अंडा, सूंडी और कोषक, अरहर की फलियों में भी विकसित होती हैं। इसीलिए फसल की कटाई और मड़ाई के वक़्त फली मक्खी से हुए नुकसान का पता चल पाता है। यही वजह है कि फली मक्खी के प्रकोप पर काबू पाने को मुश्किल माना गया है। दरअसल, प्रौढ़ फली मक्खी देखने में घरेलू मक्खी की तरह छोटी, काली और चमकदार होती है। अरहर की नयी और अवयस्क फलियों में जब दाना सरसों से थोड़ा बड़ा बन जाता है तो मादा फली मक्खी उसमें छेद करके अंडे दे देती है। ये अंडे और इसकी सूंडियाँ अरहर की फलियों के नाज़ुक दानों से ही अपना पोषण लेती हैं।
दूसरी और तीसरी अवस्था की सूंडियाँ अरहर के दानों में गहरा छेद करते हुए उसे खोखला कर देती हैं। फिर इन छेदों में अपना मल भरकर परिपक्व सूंडियाँ अरहर की फलियों में छोटा सा छेद इस तरह बनाती हैं कि ऊपर सिर्फ़ झिल्ली लगी रहती है और सूंडी धीरे-धीरे फली के अन्दर ही कोषक में परिवर्तित हो जाती है। कोषक से वयस्क मक्खी इसी झिल्ली को फाड़कर बाहर निकलती है। इसीलिए फली मक्खी से पीड़ित अरहर की फलियों को खोलने पर इसकी दीवार या दानों पर कीट की अपरिपक्व अवस्थाएँ चिपकी हुई मिलती हैं। फली मक्खी के ग्रसित दानों में फफूँद का संक्रमण भी हो जाता है। इससे इस अरहर के दाने, खाने और बुवाई के लिए इस्तेमाल नहीं हो पाते।
फली मक्खी से कैसे करें बचाव?
फली मक्खी के उपचार के लिए निम्न विकल्पों के अनुसार छिड़काव करना चाहिए।
(i) नीम आधारित दवाईयाँ जैसे लेम्बडा साइहेलोथ्रिन 5 EC की 8 मिलीलीटर मात्रा को 10 लीटर पानी में घोलकर या लूफेनुरोन 5.4 EC की 6 मिली मात्रा का 10 लीटर पानी में बनाया गया घोल।
(ii) एसेफेट 75 SP की 10 ग्राम मात्रा और 100 ग्राम गुड़ का 10 लीटर पानी में बनाया गया घोल।
(iii) इमेडाक्लोपिड 17.5 SL की 20 मिली मात्रा और 100 ग्राम गुड़ का 10 लीटर पानी में बनाया गया घोल।
(iv) थाइमेथेक्सन 25 WG की 30 मिली मात्रा और 100 ग्राम गुड़ का 10 लीटर पानी में बनाया गया घोल।
3. ब्लिस्टर बीटल (Mylabris pustulata)
ब्लिस्टर बीटल (Blister beetle) या फफोला बीटल कीट अरहर के फूलों को खाकर उनके फलियाँ बनने की प्रक्रिया को रोक देता है। इसके वयस्क कीट नारंगी और काले रंग के होते हैं। इनकी लम्बाई करीब एक इंच होती है। एक मादा ब्लिस्टर बीटल ज़मीन पर 60 से 70 अंडे देती है। चूँकि इस कीट की वजह से अरहर के फूल पनप नहीं पाते, इसलिए इससे हुए नुकसान का अनुमान लगाना मुश्किल होता है। एक व्यस्क ब्लिस्टर बीटल एक दिन में 20 से 30 फूलों को सफ़ाचट कर सकती है। हाथ से छूने पर यह कीट पीला अम्लीय द्रव छोड़ते हैं। इससे शरीर पर फफोले पड़ जाते हैं। इसीलिए इसे फफोला बीटल भी कहते हैं।
ब्लिस्टर बीटल का इलाज़
ब्लिस्टर बीटल का झुँड शाम को खेत के आसपास की झाड़ियों और पेड़ों पर इकट्ठा हो जाते हैं। इस समय हाथों में दस्ताने पहनकर इन कीटों को पकड़-पकड़कर मिट्टी के तेल में डालकर मार देना चाहिए। इसके अलावा, एसेफेट 75 SP की 10 ग्राम मात्रा का 10 लीटर पानी में बनाया गया घोल या फिर क्लोरपाइरीफास 20 EC की 25 मिली की मात्रा का 10 लीटर पानी में बनाये गये घोल का छिड़काव करना चाहिए।
4. चित्तीदार फली भेदक (Maruca vitrata)
चित्तीदार फली भेदक (मारुका विटराटा) की सूंडी अरहर की कलियों, फूलों व फलियों एवं पत्तियों को मिलकर गुच्छा सा बना लेती हैं और अन्दर ही अन्दर पौधे के भागों को खाती रहती हैं। ये कीट अगेती अरहर का प्रमुख दुश्मन है। ज़्यादा नमी वाले इलाकों में अरहर की फसल में जब फूल निकलने का वक़्त आता है तब चित्तीदार फली भेदक कीटों का हमला अधिक होता है। 130 से 140 दिनों में यानी अरहर की जल्दी पकने वाली प्रजातियों की चौड़ी पत्तियाँ और फूलों के गुच्छे इन कीटों के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। इस कीट का प्रकोप देश में लगातार बढ़ रहा है और सभी अरहर उत्पादक क्षेत्रों तथा इसकी खेती की सभी विधियों में देखा गया है। कीटों के हमले से फूल रंगहीन होकर खेतों में झड़ने लगते हैं।
कैसे करें चित्तीदार फली भेदक की रोकथाम?
ICAR-IIPR की ओर से चित्तीदार फली भेदक कीट की रोकथाम के लिए सबसे पहले तो 15 मई से 15 जून के दौरान अरहर की बुवाई जल्दी करने की सलाह दी जाती है। इससे फली भेदक कीट का प्रकोप कम होता है। फिर भी यदि फली भेदक कीटों का प्रकोप नज़र आये तो रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए।
फली भेदक कीटों की सूंडियों को मारने के लिए प्राफीनोफॉस 50 EC (20 मिली प्रति 10 लीटर पानी) या मीथोमाइल 40 SP (6 मिली प्रति 10 लीटर पानी) या DDVP 76 EC (5 मिली प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करना चाहिए। DDVP के प्रयोग से जाल में छिपी सूंडियाँ बाहर आ जाती हैं। आवश्यकतानुसार इण्डोक्साकार्ब 14.5 SC (4 मिली प्रति 10 लीटर पानी) या स्पाइनोसाड 45 SC (2 मिली प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करने से भी फली भेदक कीटों से छुटकारा मिल जाता है। इसके अलावा, यदि अरहर की कलियाँ खिलते वक़्त ही कोराजेन 18.5 SC की 10 मिलीलीटर मात्रा का 10 लीटर पानी में घोल बनाकर इसका छिड़काव किया जाए तो फली भेदक कीट का नियंत्रण हो जाता है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।