इस वर्ष कई बार हुई बेमियादी मौसम की मार के बाद अब पंप सेटों की कीमत भी किसानों के लिए आर्थिक परेशानियों का कारण बनने वाली है। पहले लॉकडाउन, फिर बारिश और अब कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी ने पंप सेट निर्माताओं की कमर तोड़ दी है।
पंप सेट उद्योग का सीजन गर्मी का मौसम होता है जब पूरे सालभर का बिजनेस एक साथ कर लेते हैं। बड़े पैमाने पर बोरवेल कराए जाते हैं, पर कोरोना की मार ठीक गर्मी से पहले शुरू हुई और बाद में बारिश शुरु हो गई।
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16 हजार करोड़ का है मार्केट
कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि से पंप मैन्यूफैक्चरर्स प्रभावित हो रहे हैं। भारतीय पंप उद्योग का बाजार करीब 16,000 करोड़ रुपए का है। इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से 20 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। वैश्विक बाजार में भारतीय पंप एवं मोटर का शेयर करीब दो प्रतिशत है।
किसान सिंचाई के लिए पंप सेट पर हैं निर्भर
भारतीय किसान सिंचाई के लिए पूरी तरह से पंप सेट पर निर्भर हैं। कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि से नए पंप सेट लगाने का खर्च 20 प्रतिशत बढ़ जाएगा। तमिलनाडु में 18 लाख पंप सेट का उपयोग किया जाता है। इनमें से 15 प्रतिशत को हर साल बदल दिया जाता है। देश के अन्य राज्य यथा हरियाणा, पंजाब, गुजरात, कर्नाटक में इसका प्रतिशत और भी अधिक है।
नहीं मिला सरकार का साथ
पंप उद्योग से जुड़े कारोबारियों के अनुसार कोरोना काल में सरकार ने इंडस्ट्री का साथ नहीं दिया। इंडस्ट्री को बचाने के लिए सरकार को ऋण वसूली, करों तथा बिजली के बिलों में मोहलत देनी चाहिए। ऐसा होने पर ही इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों तथा किसानों के हित सुरक्षित रह सकेंगे।