पंजाब के एसबीएस नगर ज़िले के पठलावा गाँव की रहने वाली गुरमीत कौर के पास कुल 8 एकड़ ज़मीन है। कृषि परिवार से ताल्लुक रखने वाली गुरमीत अपने पिता का खेती-बाड़ी में हाथ बंटाया करती थीं। खेती से लगाव पहले से था तो शादी के बाद भी उन्होंने कृषि के कार्यों को ही अपना व्यवसाय बना लिया। गुरमीत को नए-नए प्रयोग करना पसंद है। कृषि और बागवानी विभाग के कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर वो अक्सर खेती में प्रयोग करती रहती हैं। उन्होंने अपने फ़ार्म में आधुनिक खेती के कई तरीकों को अपनाया हुआ है। गुरमीत अपने क्षेत्र की ग्राम सहकारी समिति, ग्राम पंचायत की पूर्व सदस्य रह चुकी हैं। साथ ही ग्राम महिला मंडल की पूर्व अध्यक्ष का कार्यभार भी संभाल चुकी हैं।
कृषि विविधीकरण: आधुनिक खेती की ज़रूरत
गुरमीत ने कृषि विविधीकरण पद्धति (Agricultural Diversification Method) को अपनाया हुआ है। कृषि विविधीकरण आधुनिक खेती के प्रमुख घटक के तौर पर भी देखा जा रहा है। ये एक ऐसी पद्धति है, जिसमें किसान किसी एक फसल पर निर्भर न होकर, कई फसलें उगाते हैं और खेती से जुड़े अन्य सेक्टर्स को अपनाते हैं। कृषि विविधीकरण के ज़रिए लघु और सीमांत श्रेणी के किसानों को मधुमक्खी पालन, बकरी पालन, मुर्गीपालन सहित सब्जी की खेती से जोड़कर उन्हें आमदनी के स्थाई स्रोत उपलब्ध कराए जाते हैं।
चिनार के साथ अन्य फसलों की खेती
गुरमीत ने सब्जियों की खेती (Vegetable Farming), डेयरी फ़ार्मिंग (Dairy Farming) की एक छोटी यूनिट और बैकयार्ड मुर्गी पालन (Backyard Poultry Farming) जैसे सहायक व्यवसायों को भी अपनाया हुआ है। उनके पास 6 दुधारू मवेशीऔर 8 छोटे बछड़े हैं। वो अपने गांव में रोज़ का 15 से 16 लीटर दूध बेचती हैं। इससे उन्हें प्रति दिन 700 रुपये की कमाई होती है। आठ एकड़ की ज़मीन में से 4 एकड़ में उन्होंने चिनार के पेड़ और कई फसलें लगाई हुई हैं। 2 एकड़ में सब्जियां, 1.5 एकड़ में मक्का और आधे एकड़ में पशु चारा उगा रही हैं। उन्हें 4 एकड़ में चिनार उगाकर 9 लाख की कमाई भी अर्जित हुई। गुरमीत के काम में उनका परिवार भी हाथ बंटाता है।
गुरमीत रबी सीज़न के दौरान गेहूं के साथ फूलगोभी और चिनार के खेत में सरसों की फसल लगाती हैं। खरीफ सीज़न में चिनार के साथ लौकी की इंटरक्रॉपिंग करती हैं। इंटरक्रॉपिंग तकनीक से वो अच्छी आय अर्जित कर रही हैं। इसके अलावा, 4 कैनाल क्षेत्र में भिंडी उगाकर करीब 30 हज़ार की कमाई होती है। गुरमीत भिंडी की खेती के लिए नई और उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाती हैं, जिससे फसल की उपज में सुधार होता है।
कृषि कचरे से तैयार करती हैं खाद
गुरमीत मिट्टी परीक्षण (Soil Testing) करने के बाद ही खेतों में खाद डालती हैं। वो कृषि से निकलने वाले कचरे को जलाती नहीं, बल्कि उसे ज़मीन में मिला देती हैं। इससे मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ को बनाए रखने में मदद मिलती है। फसलों को संतुलित पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिए वो फ़ार्म यार्ड खाद (Farm Yard Manure) का इस्तेमाल करती हैं। फ़ार्म यार्ड खाद को मवेशियों के गोबर, मूत्र, व्यर्थ चारे और अन्य डेयरी कचरे का उपयोग करके तैयार किया जाता है। इसके अलावा, वैज्ञानिकों की सलाह पर रसायनों और उर्वरकों का इस्तेमाल करती हैं। गुरमीत को कृषि एवं बागवानी विभाग से प्राप्त बीज, कीटनाशकों, स्प्रे पंपों और कृषि उपकरणों पर सब्सिडी की सुविधा भी मिली है।
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ट्रेनिंग ने की मदद
गुरमीत, आत्मा योजना के तहत आयोजित सेमीनार और फ़ार्म ट्रेनिंग कैंपों में भाग लेती रहती हैं। आत्मा योजना के तहत उनके फ़ार्म में खेती की नवीनतम तकनीकों पर प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं। उन्होंने पशुपालन विभाग से डेयरी पर ट्रेनिंग ली हुई है। इसके अलावा, लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से मधुमक्खी पालन में भी प्रशिक्षण लिया हुआ है।
भंडारण की है व्यवस्था
उनका फ़ार्म स्थानीय बाज़ार से सीधा जुड़ा हुआ है। उनके पास अनाज के भंडारण के लिए गोदाम की व्यवस्था है। जब बाज़ार में पहले से ही किसी उपज का उत्पादन ज़्यादा हो जाता है तो वो उस दौरान अपनी उस उपज को स्टोर करके रख लेती हैं। मांग बढ़ने पर फिर वो अपनी उपज बेचती हैं। वो सेल्फ मार्केटिंग में विश्वास रखती हैं। उनकी अच्छी उपज के कारण उन्हें बाज़ार में अच्छा दाम भी मिलता है।
बाज़ार की नहीं आई समस्या
उन्होंने अपने बेटे को 300 देसी पक्षियों के साथ बैकयार्ड मुर्गी पालन शुरू करने के लिए प्रेरित भी किया। सेल्फ मार्केटिंग के माध्यम से देसी अंडे बेचकर परिवार को अच्छी आमदनी होती है। आज कई किसान उनसे प्रेरणा ले रहे हैं और उनसे टिप्स लेने के लिए उनके फ़ार्म पर आते हैं।
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