गन्ने का कैंसर कही जाने वाली रेड रॉट बीमारी गन्ने की फ़सल को पूरी तरह से बर्बाद कर देती है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश के कई ज़िलों में इस रोग से गन्ने की फसल ग्रसित को रही है। इस बीमारी से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने कुछ तरीके बताए हैं ।आइये इन तरीकों के बारे में जानते हैं।
क्या है रेड रॉट बीमारी? (Red Rot Disease)
गन्ने की फसल में लगने वाली रेड रॉट बीमारी उपयुक्त जल निकासी नहीं होने के कारण पूरी फसल में लग जाती है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के कई ज़िलों में इस बीमारी का प्रकोप पिछले कई सालों में बढ़ा है। इस बीमारी में गन्ने की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और उन पर लाल रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। अगर गन्ने का गूदा लाल रंग का दिखाई दे, उसमें से सिरके की तरह सुगंध आ रही हो, तो समझ जाइए कि गन्ने की फसल में रेड रॉट बीमारी का प्रकोप लग चुका है। ये बीमारी पौधे के ऊपरी सिरे से शुरू होती है। इस रोग के चलते गन्ने की मिठास, उत्पादन और बिक्री पर असर पड़ता है। इसका प्रकोप गन्ने की जड़ से लेकर ऊपरी भाग तक रहता है।
हाल ही में किसान ऑफ़ इंडिया की टीम मध्य प्रदेश के दतिया ज़िले पहुंची। ज़िले के कई गाँवों पचोखरा, गोरा घाट, कोटरा, एरई, हिड़ोरा आदि के गन्ना किसानों से हमारी टीम की मुलाक़ात हुई। इन गाँवों के किसान रेड रॉट बीमारी से बहुत परेशान हैं। उन्होंने बताया कि इस बीमारी की वजह से गन्ने की पूरी फसल खराब होने लगी है और वो इसका समाधान चाहते हैं।
मध्य प्रदेश के दतिया ज़िले में कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार सिंह ने रेड रॉट बीमारी से बचने के तरीकों के बारे में किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत की। उन्होंने बताया कि किसान 3 से 4 साल के लिए गन्ने की पेड़ी लेते हैं, जिससे ये बीमारी गन्ने की फ़सल में फैल जाती है। (एक बार बोए गये गन्ने की फसल काट लेने के उपरान्त, उसी गन्ने से दूसरी फसल लेने की प्रक्रिया को पेड़ी कहते हैं)। उन्होंने बताया कि पांच साल पहले तक उनके क्षेत्र में इस बीमारी के कारण पूरे गन्ने के खेत खत्म हो चुके थे। अब इसका प्रकोप कम हुआ है।
उन्होंने रेड रॉट बीमारी से गन्ने की फसल को बचाने के लिए ये सुझाव दिये:
- अगले साल गन्ने की फसल लगाते समय बीज को बदलना ज़रूरी है। ऐसा बीज चुनें जो रेड रॉट से प्रभावित न हों।
- गन्ने की फसल में 20 प्रतिशत से ज़्यादा रेड रॉट की बीमारी फैल गई हो तो पेड़ी खत्म कर देनी चाहिए।
- फसल चक्र अपनाना चाहिए। गन्ने की जगह गेहूं, धान लगाने से बीमारी का प्रभाव कम होगा।
- हर 2 साल में गन्ने की पेड़ी बदलनी चाहिए।
- केन ट्रीटमेंट (Ken Treatment) यानि टॉप शूट बोरर मेनेजमेंट (Top Shoot Borer Management) करने के बाद गन्ने की पेड़ी लगानी चाहिए।
ट्रीटमेंट की ये है प्रक्रिया:
- एक बड़ी कड़ाही लेनी है जिसमें 700 से 800 लीटर तक पानी आ सके।
- कार्बेंडाजिम (Carbendazim) 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी ( W P ) की 1 ग्राम मात्रा को 2 लीटर पानी में घोलें।
- गन्ने की पेड़ी को 15 मिनट तक घोल में डुबायें।
- इसे सुखाने के बाद फिर रोपण करना चाहिए।
गन्ने की इस नई किस्म पर नहीं लगती रेड रॉट बीमारी
उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर के वैज्ञानिकों ने गन्ने की नई किस्म ‘को. शा. 13235’ विकसित की है। इसमें ‘को’ का मतलब कोयंबटूर और ‘शा’ का मतलब शाहजहांपुर है। ये किस्म रेड रॉट बीमारी से रहित है।
उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद की वेबसाइट के मुताबिक, गन्ना विकास परिषद के वैज्ञानिक डॉ अनिल सिंह ने बताया कि को. शा. 13235 किस्म के एक गन्ने का वजन लगभग 1 किलो से डेढ़ किलो के बीच होता है। अगर इस किस्म की पैदावार की बात की जाए तो 1000 से 1200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर इसकी उपज है। इसके साथ ही ये किस्म कीट और रोग रोधी है। विकसित की गई नई गन्ना किस्मों के बीज, टिशू कल्चर विधि से तैयार करने का कार्य शोध परिषद द्वारा किया जा रहा है।
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शाहजहांपुर गन्ना शोध परिषद और उसके नौ उपकेंद्रों ने मिलकर एक करोड़ से अधिक सिंगल बड यानी एक आंख की गांठ से पौध तैयार कर ली है। प्रदेश के 42 गन्ना उत्पादक ज़िलों के किसानों को इन पौधों का आवंटन भी कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश में 1918 से अब तक गन्ने की कुल 216 प्रजातियां खेती हेतु स्वीकृत की जा चुकी हैं।
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