‘रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस’ तकनीक- पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी में फसलों को पूरी तरह से नियंत्रित जलवायु परिस्थितियों में उगाया जाता है। इसका ढांचा एक ख़ास तरह की पॉलिथीन शीट का उपयोग कर तैयार किया जाता है। पारंपरिक पॉलीहाउस में किसी भी मौसम में सीज़न की मांग के अनुसार खेती की जाती है, जिससे उत्पादन तो अच्छा होता ही है साथ ही मुनाफ़ा भी होता है। किसी जलवायु क्षेत्र में अगर किसी विशेष फसल की खेती करना असंभव हो तो उन पौधों को पॉलीहाउस परिस्थितियों में उगाया जा सकता है।
पारंपरिक पॉलीहाउस खेती के फ़ायदों के बीच मौसम की समस्याओं और कीटों के प्रभाव को कम करने के लिए छत पर लगाई गई शीट के नुकसान भी हैं। छत ढकी होने की वजह से कभी-कभी अत्यधिक गर्मी और अपर्याप्त प्रकाश होता है। इस समस्या का समाधान है रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी (स्वचालित रूप से खुलने-बंद होने वाली छत), जिसे वैज्ञानिक विकसित कर रहे हैं।
कैसे काम करेगी रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी
रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी के अंतर्गत इसकी छत को जब चाहे खोला और बंद किया जा सकता है। इस रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी’ को पंजाब के एक्सटेंशन सेंटर लुधियाना में लगाया जा रहा है। हर मौसम में काम करने के लिहाज़ से उपयुक्त रिट्रैक्टेबल रूफ़ पॉलीहाउस, पीएलसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए कंडीशनल डेटाबेस से मौसम की स्थिति और फसल की ज़रूरतों के आधार पर संचालित होगा।
मौसमी और गैर-मौसमी, दोनों फसलों की खेती
इस तकनीक की मदद से किसान मौसमी और गैर-मौसमी फसल दोनों की खेती कर सकते हैं। जिस फसल को जैसा मौसम और जलवायु परिस्थिति चाहिए, इस तकनीक के ज़रिए वैसा ही वातावरण निर्मित किया जा सकता है। रिट्रैक्टेबल रूफ का इस्तेमाल सूर्य के प्रकाश की मात्रा, गुणवत्ता एवं अवधि, जल तनाव, आर्द्रता, कार्बन डाई-ऑक्साइड और फसल एवं मिट्टी के तापमान के स्तर को बदलने के लिए किया जाएगा।
यह तकनीक जैविक खेती के लिए भी अनुकूल है। देश के सभी 15 विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में ये तकनीक उपयोगी होगी, जो किसानों को गैर-मौसमी फसलों की खेती करने में मदद करेगा, जिससे व उच्च मूल्य और आय प्राप्त कर सकेंगे। पंजाब के एक्सटेंशन सेंटर लुधियाना में इस तकनीक का छह महीने तक परीक्षण किया जाएगा। अगले छह महीनों में ये तकनीक किसानों तक पहुंचाने का लक्ष्य है। ये तकनीक वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर (CSIR-IHBT) के सहयोग से विकसित की जा रही है।
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