सफ़ेद मूसली या सतावर एक औषधीय फसल है। ये गर्म तथा आर्द्र जलवायु की फसल है। इसकी खेती पूरे भारत में होती है। इसे मानसून में लगाते हैं और 8-9 महीने बाद फरवरी-मार्च में फसल पाते हैं। सफ़ेद मूसली का इस्तेमाल डायबिटीज, खाँसी, दमा, बवासीर, त्वचा रोग, पीलिया, पेशाब सम्बन्धी तकलीफ़ों, ल्यूकोरिया, यौन शक्ति सम्बन्धी अनेक बीमारियों के इलाज़ में होता है।
सफ़ेद मूसली के लिए खेत की तैयारी
सफ़ेद मूसली की अच्छी उपज के लिए गर्मियों में खेतों की गहरी जुताई की जाती है। इसके बाद हरी खाद के लिए ढैंचा, सनई, ग्वारफली की बुआई करना फ़ायदेमन्द होता है। इनके फूलों को काटकर खेत में डालकर मिला देना चाहिए। वैसे 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़े गोबर की खाद का भी इस्तेमाल हो सकता है। आख़िरी जुताई के समय खेतों में एक मीटर चौड़ी तथा एक फ़ीट ऊँची मेढ़ बनाकर 30 सेमी की दूरी पर लाइनें बनाना चाहिए। इसी वक़्त 300-350 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से नीम या करंज की खली भी मिलानी चाहिए। इसके बाद 15 सेमी की दूरी पर सफ़ेद मूसली के कन्द की बुआई करनी चाहिए।
बीज का उपचार कैसे करें?
सफ़ेद मूसली की बुआई के पहले बीजों को रासायनिक या जैविक विधि से उपचारित ज़रूर करना चाहिए। रासायनिक उपचार के लिए वेविस्टीन के 0.1 प्रतिशत घोल में ट्यूबर्स (मूसली का कन्द) को रखना चाहिए, जबकि जैविक विधि में गौमूत्र और पानी का 1:10 का घोल बनाकर उसमें 1 से 2 घंटे तक ट्यूबर्स को डुबोकर रखना चाहिए। बुआई के लिए खोदे गये गड्ढों की गहराई बीजों (कन्द) की लम्बाई जितनी होनी चाहिए।
सफ़ेद मूसली की सिंचाई
मूसली की रोपाई बरसात में करते हैं। बारिश नियमित हो तो फसल को सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती। लेकिन यदि मॉनसून अनियमित हो तो 10-12 दिन में एक सिंचाई ज़रूरी है। अक्टूबर के बाद 20-21 दिनों पर हल्की सिंचाई करना चाहिए। साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि खेत में जलभराव या अधिक सिंचाई न हो, क्योंकि इससे मूसली की जड़ों के गलने का खतरा पैदा हो सकता है।
सिंचाई के लिए ड्रिप वाली व्यवस्था बेहतर है, क्योंकि इसमें पानी कम खर्च होता है। बुआई के 7 से 10 दिन के भीतर मूसली का पौधा ऊपर आने लगता है। और अगले 75 से 80 दिनों तक अच्छी बढ़वार के बाद सितम्बर के अन्त तक मूसली के पत्ते पीले पड़कर सूखने लगते हैं। करीब 100 दिन के बाद पीले पत्ते झड़ जाते हैं।
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मूसली खोदने का समय
मूसली की उपज पाने के लिए खेतों की खुदाई जनवरी-फरवरी तक की जाती है। उखाड़ते वक़्त खेत में नमी होना ज़रूरी है। खुदाई का वक़्त आने तक मूसली का छिलका कठोर हो जाता है और इसका रंग सफ़ेद से बदलकर गहरा भूरा हो जाता है।
बीज, लागत और पैदावार
सफ़ेद मूसली का बीज महँगा मिलता है। उत्पादन और गुणवत्ता के लिहाज़ से MDB-13 और MDB-14 अच्छी किस्में हैं क्योंकि इसकी जड़ों से छिलका उतारना आसान होता है। यदि 4 क्विंटल बीज प्रति एकड़ के हिसाब से इस्तेमाल करें तो करीब 20 से 24 क्विंटल गीली मूसली प्राप्त होती है। सूखने के बाद इसका वजन घटकर 15-16 क्विंटल रहा जाता है।
मूसली का कितना दाम और मुनाफ़ा?
मूसली की जड़ों की तीन श्रेणियाँ हैं – लम्बी, मोटी, कड़क और सफ़ेद मूसली। इसे दाँतों से दबाने पर ये दाँतों में चिपक जाती है। बाज़ार में उम्दा मूसली का दाम 1000-1500 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिल सकता है। मझोले किस्म की फसल का दाम 700-800 रुपये प्रति किलो और हल्की किस्म का दाम 200-300 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिलता है। लिहाज़ा, किसानों की कोशिश होनी चाहिए कि वो बेहतर कमाई के लिए उम्दा किस्म वाली सफ़ेद मूसली को ही उपजाएँ ताकि मुनाफ़ा ज़्यादा हो।
सफ़ेद मूसली की उन्नत खेती पर प्रति एकड़ लागत करीब 5-6 लाख रुपये बैठती है और यदि उपज का दाम औसतन 1.2 लाख रुपये प्रति क्विंटल भी मिला और यदि प्रति एकड़ औसत उपज करीब 15 क्लिंटल भी रही तो उपज का दाम करीब 18 लाख रुपये बैठेगा। इसमें से लागत घटा दें तो किसान को प्रति एकड़ 10-12 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफ़ा मिलेगा। इसीलिए, यदि सूझबूझ के साथ और वैज्ञानिक तरीके से सफ़ेद मूसली या सतावर की खेती की जाए तो ये फसल किसान को खुशहाल बना सकती है।
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