कुसुम की खेती: क्यों फसल चक्र में बेजोड़ है कुसुम (Safflower)?

देश के उन इलाकों के लिए कुसुम की खेती बहुत उपयोगी है जहाँ सूखा पड़ने की आशंका ज़्यादा रहती है। गर्मी को सहने की बेजोड़ क्षमता की वजह से कुसुम की खेती वहाँ भी आसानी से हो सकती है जहाँ सिंचाई की सुविधा बहुत सीमित है।

कुसुम की खेती safflower cultivation

कुसुम की बुआई के लिए आमतौर पर सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह तक का वक़्त सबसे उपयुक्त होता है। कुसुम की बुआई के दिनों में तापमान 15 से 20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। खरीफ़ में मूँग, उड़द, मूँगफली या सोयाबीन की फसल लेने के बाद रबी में कुसुम की बुआई की जा सकती है। खरीफ़ में यदि खेत से कोई फसल नहीं ली हो तो अगेती कुसुम की बुआई सितम्बर के दूसरे हफ़्ते में भी कर सकते हैं। यदि ख़रीफ़ में मक्का या ज्वार की फसल ली जाए तो रबी में नवम्बर के पहले सप्ताह तक कुसुम की पछेती बुआई की जा सकती है।

कुसुम की खेती की उन्नत उत्पादन तकनीक

देश के उन इलाकों के लिए कुसुम की खेती बहुत उपयोगी है जहां सूखा पड़ने की आशंका ज़्यादा रहती है। गर्मी को सहने की बेजोड़ क्षमता की वजह से कुसुम की खेती वहाँ भी आसानी से हो सकती है जहाँ सिंचाई की सुविधा बहुत सीमित है। कुसुम को सूखाग्रस्त इलाकों या किसी आपदा की वजह से बारानी (वर्षा आधारित) खेती में खरीफ़ की फसलों के ख़राब होने के बाद आपात दशा में या परती खेतों में शुरुआती सिंचाई करके आसानी से उगाया जा सकता है। वैसे काली मिट्टी में कुसुम की पैदावार सबसे अच्छी मिलती है। चूँकि कुसुम की जड़ें ज़मीन में ज़्यादा गहरी जाती हैं इसीलिए बुआई से पहले खेतों की दो बार कल्टीवेटर से गहरी जुताई करके तथा रोटावेटर चलाकर ज़मीन को समतल कर लेना चाहिए।

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कुसुम की बीजों की उन्नत प्रजातियाँ

कुसुम की विभिन्न प्रजातियों की परिपक्वता अवधि 117 दिन से लेकर 180 दिनों के बीच रहती है। कम अवधि वाली प्रजातियों की तुलना में ज़्यादा अवधि वाली प्रजातियाँ अधिक पैदावार देती हैं। इनसे 8.5 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है। इन प्रजातियों में तेल की मात्रा 28 से 36 प्रतिशत तक पायी जाती है। तेल निकालने के बाद अन्य तिलहनों की तरह कुसुम की खली का भी इस्तेमाल पशुओं के चारे में किया जाता है। कुसुम के बीजों की उन्नत किस्में हैं – मालवीय कुसुम 305, JSF-73, JSF-07, JSF-01, NARI-06, K-65, DSH-129, MKH-11, प्रभनी, कुसुमा (PVNS-12), PH-06 और H-15.

NARI-06 की पकने की अवधि 117 से 137 दिन है। इसकी पैदावार 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। ये रोंया रहित किस्म है। इसमें तेल अधिक होता है। JSF-01 के फूल सफ़ेद रंग के तथा पौधे काँटेदार होते हैं। इसका दाना बड़ा और सफ़ेद होता है। इसकी पैदावार 1700 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। इससे 30 प्रतिशत तेल मिलता है। JSF-07 काँटा रहित किस्म है। इसके फूल खिलते तो पीले रंग के हैं लेकिन सूखने वक़्त नारंगी या लाल रंग के हो जाते हैं। इसके दाने छोटे और सफ़ेद होते हैं। इसकी पैदावार 1300 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। इससे 32 प्रतिशत तेल मिलता है। JSF-73 भी बिना काँटें वाली प्रजाति है। इसके भी फूल खिलते तो पीले रंग के हैं लेकिन सूखते वक़्त नारंगी या लाल रंग के हो जाते हैं। इसकी पैदावार 1450 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। इसमें 31 प्रतिशत तेल मिलता है। इसका दाना JSF-07 किस्म से ज़रा बड़ा और सफ़ेद होता है।

कुसुम की खेती safflower cultivation
तस्वीर साभार: ICAR-Indian Institute Of Oilseeds Research

कुसुम की बुआई की विधि

बुआई से पहले कुसुम के बीज को 12 घंटे तक पानी में भिगोना चाहिए और इसे मिट्टी में दो-तीन इंच नीचे बोना चाहिए। बुआई में दो पौधों के बीच करीब 6 इंच तथा दो पंक्तियों के बीच करीब डेढ़ फ़ीट की दूरी रखने से पैदावार अच्छी मिलती है। बुआई के लिए 15 से 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की ज़रूरत पड़ती है। बीजों को जैविक या रासायनिक फफूँद नाशक से उपचारित करके बोने से पौधों का जमाव 5-7 प्रतिशत ज़्यादा होता है। फफूँदनाशक दवा थायरम या ब्रासीकाल की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज के लिए उपचार के लिए पर्याप्त है।

खाद की मात्रा और देने की विधि

असिंचित खेतों में नाइट्रोजन 40 किग्रा, फॉस्फोरस 40 किग्रा और पोटाश 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। जबकि  सिंचित खेतों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा का अनुपात 60:40:20 होना चाहिए। इसके अलावा खेत में हरेक तीसरे साल 4 से 5 टन सड़ी गोबर की खाद और 25 किग्रा गन्धक की मात्रा प्रति हेक्टेयर बुआई से पहले देने से कुसुम में तेल की मात्रा में इज़ाफ़ा होता है। सिंचित दशा में नाइट्रोजन की कुल मात्रा में से एक तिहाई को फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा के साथ बुआई के समय देना चाहिए और बाक़ी बचे नाइट्रोजन दो तिहाई मात्रा को आधा-आधा करके दो बार में सिंचाई के बाद खेत में डालना चाहिए।

कुसुम की खेती में सिंचाई

कुसुम की एक फसल को 60 से 90 सेमी पानी की ज़रूरत पड़ती है। असिंचित खेतों में कुसुम को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन यदि सिंचाई उपलब्ध है तो दो बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के 50 से 55 दिनों पर और दूसरी सिंचाई 80 से 85 दिनों पर करनी चाहिए। सिंचाई स्प्रिंक्लर या बूँद-बूँद विधि से होनी चाहिए। कुसुम के पौधों में फूल निकलने पर सिंचाई कतई नहीं करनी चाहिए।

कुसुम की खेती safflower cultivation
तस्वीर साभार: Nimbkar Agricultural Research Institute

कुसुम की खेती में निराई-गुड़ाई

कुसुम की फसल में अच्छी पैदावार लेने के लिए पौधों के अंकुरित होने के करीब 20 दिनों बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। ताकि ऊपर से कठोर मिट्टी की पपड़ी टूट जाए और ज़मीन में फटी दरारें भर जाएँ। निराई के वक़्त स्वस्थ पौधों के बीच के फ़ासलों को भी सही कर लेना चाहिए।

कुसुम की फसल की कटाई

कुसुम की फसल की कटाई के समय तापमान 32 से 35 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। फसल पकने पर काँटेदार प्रजातियों की हाथ से कटाई करने में कठिनाई होती है, क्योंकि इनके पत्तों पर काँटें होते हैं, जबकि तना काँटा रहित होता है। इसीलिए एक हाथ में दस्ताना पहनकर या कपड़ा लपेटकर हँसिया या दराँती से कटाई करनी चाहिए। काँटे रहित प्रजातियों की कटाई में कोई ख़ास अहतियात की ज़रूरत नहीं पड़ती। यदि कुसुम की खेती का रकबा बड़ा हो तो कम्बाइन हार्वेस्टर से भी कटाई कर सकते हैं।

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