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कौन कहता है कि बढ़ती उम्र काम के आड़े आती है। छत्तीसगढ़ के रायपुर ज़िले में 61 साल के मनमोहन नायक ऊर्जा से लबरेज़ केसर की खेती (Saffron Farming) कर रहे हैं। मूल तौर पर सरायपाली ज़िले के निवासी मनमोहन ने केवल 9वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले मनमोहन बचपन से ही खेती करते आये हैं। मनमोहन धान के साथ सब्जी और फूलों की खेती भी करते हैं।
केसर की खेती (Saffron Farming) चुनी
मनमोहन बताते हैं कि केसर की खेती (Saffron farming) करने का आइडिया किसान साथियों से ही मिला। सभी ने प्रेरित किया कि आपके पास पर्याप्त जगह है। आपको परंपरागत खेती से हटकर भी कुछ अलग करना चाहिए। शुरुआत में काफ़ी परेशानी हुई, पता ही नहीं था कहां से शुरू करना है? कितना खर्च आएगा? ट्रेनिंग कहां से करनी है? बीज कहां से लेने है? पर केसर की खेती करने का दृढ निश्चय तो कर लिया था अब पीछे मुड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता था।
केसर की खेती (Saffron Farming) में ट्रेनिंग
मनमोहन ने बताया कि उन्होंने शुरुआत में जानकारी जुटाई और फिर ट्रेनिंग के लिए पुणे गए। कुछ सप्ताह की ट्रेनिंग में बीज से लेकर मशीनरी तक सारी जानकारी दी गई। तापमान नियंत्रण के बारे में सिखाया गया। एरोपोनिक तकनीक की जानकारी दी गई।
केसर की खेती में एरोपोनिक तकनीक (Aeroponic Technique)
मनमोहन एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती करते हैं। एरोपोनिक तकनीक एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें पौधों की जड़ें हवा में लटकती रहती हैं। स्प्रे के माध्यम से पोषक तत्वों का छिड़काव किया जाता है। इसमें पौधों को नम वातावरण में रखते हैं। एरोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल घर के अंदर कमरे में या कंटेनर में किया जाता है। तापमान की आर्द्रता और ठंडक को कंट्रोल करना पड़ता है। इसमें फसलों का उत्पादन अच्छा होता है। इस विधि से केसर का उत्पादन कहीं भी किया जा सकता है। एरोपोनिक तकनीक से खेती करने का सबसे बड़ा फ़ायदा है कि इसे आप छोटी से छोटी जगह या बहुत ही सीमित स्थान में भी कर सकते हैं।
घर में केसर की खेती कैसे करें?
बातचीत में मनमोहन नायक ने आगे बताया कि उनके रायपुर भाटागांव स्थित फ़ार्म हाउस में लगभग 200 स्क्वायर फ़ीट का एक रूम तैयार किया गया है। इस रूम में फ्रीज़र जैसी ठंडक रहती है। कश्मीर जैसी ठंडक को इस रूम में मेंटेन किया जाता है। कमरे में केसर की पैदावार के लिए ज़रूरत के हिसाब से हवा और रोशनी का इंतज़ाम किया गया है। रूम में कई रैक हैं जिसमें 500 से ज़्यादा लकड़ी के ट्रे हैं। ट्रे में 100 से 150 केसर के बीज हैं। बीज दिखने में प्याज की तरह ही लगता है।
केसर की खेती के लिए ज़रूरी चीज़ें
- बंद वातावरण वाला कमरा या फिर कंटेनर
- थर्माकोल शीट (जिससे कमरे का तापमान नियंत्रित रहे)
- कूलर या एयर कंडीशनर
- आर्द्रता और तापमान मापन केंद्र
- ह्यूमिडिफायर
- LED लाइट सफेद रंग
- लकड़ी या प्लास्टिक से बनी ट्रे या फिर अलमारियां
- चीलर प्लांट
केसर उत्पादन: खाद और पानी की ज़रूरत नहीं
केसर के बीजों को उगाने के लिए न तो मिट्टी की ज़रूरत होती है और न ही खाद पानी की। कहा जा सकता है कि हवा में ही केसर की खेती होती है। बीज में ही केसर का फूल आता है। उसे तोड़कर उसमें से केसर को अलग करते हैं। केसर का फूल साल में एक बार ही आता है।
केसर की प्रमुख किस्म
केसर की खेती (Saffron Farming) के लिए भारत में मुख्य तौर दो प्रकार की किस्म ही उत्तम मानी जाती हैं, कश्मीरी केसर या मोगरा केसर और अमेरिकन केसर। कश्मीरी केसर बाज़ार में लगभग 2 लाख से 5 लाख रुपये प्रति किलोग्राम के दर से बिकता है। वहीं अमेरिकन केसर की बात की जाए तो ये 50 हज़ार से 85 हज़ार रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है।
केसर के बीज के रेट क्या हैं?
मनमोहन बताते हैं कि ऑनलाइन भी कई कंपनियां हैं, जो केसर के बीज बेच रहीं हैं, लेकिन फ्रॉड से बचना है तो केसर के बल्ब केवल कश्मीर से ही लें। उन्होंने भी कश्मीर जाकर वहां केसर की खेती करने वाले किसानों से अच्छी किस्म के केसर के बल्ब की जानकारी हासिल की। उन्होंने कश्मीर से ही अच्छी क्वालिटी के बल्ब ख़रीदे, जिसकी लागत तक़रीबन 6 लाख रही।
केसर के बीजों का संरक्षण
केसर के बीजों को संरक्षित करने का तरीका थोड़ा अलग है। इसे खुले आसमान के नीचे मिट्टी की क्यारी बनाकर संरक्षित करते हैं। मनमोहन नायक ने फ़ार्म हाउस में एक जगह कुछ मिट्टी की क्यारी बनाई है। क्यारी में खाद रसायन को मिलाया है, जो केसर की पैदावार और बीच को संरक्षित करने के लिए ज़रूरी है। केसर के बीजों को मिट्टी में गाड़ दिया जाता है। फिर अगले सीज़न में इस बीज को निकालकर कोल्ड रूम में रखा जाता है। इसमें दो बार फूल आते हैं। बीजों का इस्तेमाल 5 से 6 बार तक किया जा सकता है।
केसर की खेती के लिए उपयुक्त महीना
केसर की खेती के लिए जून,जुलाई, अगस्त और सितंबर महीने सबसे अच्छे माने जाते हैं। अक्टूबर में केसर के पौधे फूल देना शुरू कर देते हैं।
केसर की हार्वेस्टिंग कब और कैसे करें?
केसर 3 महीने में पूरी तरह से हार्वेस्टिंग के लिए तैयार हो जाता है। केसर के फूलों से केसर निकालना बहुत ही नाजुक और मेहनत वाला काम होता है। केसर की हार्वेस्टिंग करने के लिए केसर के बारे में जानना बहुत ज़रूरी होता है।
केसर की मुख्य तौर तीन भाग होते हैं- केसर की पंखुड़िया, केसर, पुंकेसर। विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च गुणवत्ता का केसर पाने के लिए केसर के फूल खिलने के अगले दिन ही उसे हार्वेस्ट कर लेना चाहिए। केसर की हार्वेस्टिंग करते समय केसर के तीनों भागों को अलग करना होता है, जिसकी बाज़ार में बहुत ज़्यादा मांग रहती है। केसर की इन तीनों भागों को ध्यान पूर्वक अलग-अलग संरक्षित करना होता है। हार्वेस्टिंग के बाद केसर को हल्की धूप या छायादार स्थान पर रखा जाता है।
असली केसर की पहचान कैसे करें?
स्वाद: असली केसर को स्वाद, रंग और रेशों से पहचान जाता है। असली केसर का स्वाद थोड़ा कड़वा होता है, वहीं नकली केसर में कड़वाहट नहीं होती है।
रंग: असली केसर पानी में डालेंगे तो वो तुरंत रंग नहीं छोड़ेगा। वहीं नकली केसर पानी में डालते ही तुरंत रंग छोड़ देता है।
रेशे: असली केसर के आखिरी छोर पर हल्का सफ़ेद रंग देखा जा सकता है। हलाकि, कई बार अलग किस्म होने से सिर्फ़ रेशे से पहचान करना थोड़ा मुश्किल होता है।
केसर के गुण
केसर में पाए जाने वाले तत्व हमारे शरीर से लिए फ़ायदेमंद माने जाते हैं-
- केसर के सेवन से शरीर में होने वाले दर्द में राहत मिलती है।
- याददाश्त को बेहतर रखने में मदद करता है।
- शरीर में उत्पन्न होने वाले सूजन को कम करने में सहायता करता है।
- शरीर की ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में मदद करता है।
- शरीर में होने वाले पाचन को सही करने में मदद करता है।
- त्वचा को निखारने और सुंदरता को बनाए रखना मदद करता है।
केसर का दाम
मनमोहन नायक ने बताया कि वो प्रति ग्राम 500 से लेकर 700 रुपये तक उत्पादित केसर लोगों को उपलब्ध करा रहे हैं।
किसानों को देंगे ट्रेनिंग
मनमोहन नायक ने 200 स्क्वायर फ़ीट के रूम में करीब 2 किलो केसर का उत्पादन इस साल किया है। अगर पहली बार में उम्मीद से ज़्यादा सफलता मिलेगी तो इस खेती को वो और विस्तार देंगे। साथ ही दूसरे किसानों को भी केसर की खेती करने के लिए प्रेरित करेंगे।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।