कृषि क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं और अपनी आय बढ़ाने के लिए किसान लगातार पारंपरिक फसलों के विकल्पों को आजमाते रहे हैं। बागवानी फसलों में पपीते की खेती भी किसानों की आय बढ़ाने का अच्छा स्रोत है। एक आंकड़े के मुताबिक़, विश्व में हर साल 6 मिलियन टन पपीते का उत्पादन होता है, जिसमें से अकेले भारत की हिस्सेदारी आधी यानी 3 मिलियन टन की है।
ऐसे में इसके उत्पादन को बढ़ावा और किसानों को अधिक मुनाफ़ा देने की दृष्टि से कृषि वैज्ञानिक पपीते की उन्नत खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके तहत कृषि विज्ञान केंद्रों की तरफ से झारखंड के आदिवासी इलाकों में किसानों को पपीते की उन्नत खेती की बारीकियों को सिखाया गया और आज इससे वो अच्छी कमाई कर रहे हैं।
पपीते की उन्नत खेती ने बढ़ाया उत्पादन
पपीता झारखंड के प्रमुखों फलों में से एक है। यहां के आदिवासी इलाके के किसान ज़्यादातर अपने घरों के पीछे ही इसकी पारंपरिक तरीके से खेती करते हैं। पिछले कुछ समय से वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर गया है और अब वे आदिवासी किसानों को वैज्ञानिक तरीकों से पपीता बोना सिखा रहे हैं।
इस पहल का श्रेय रांची के कृषि प्रणाली अनुसंधान केंद्र को जाता है। पपीते की उन्नत खेती की शुरुआत राज्य के गुमला, रांची और लोहरदगा जिलों से की गई। इसके तहत 8 व्यापक प्रशिक्षण किए गए। इस परीक्षण के लिए रेड लेडी, एनएसी 902 और रांची की स्थानीय किस्मों को प्रशिक्षण के लिए चुना गया। 600 से अधिक किसानों के खेतों में 30 हज़ार से ज़्यादा पौधे लगाए गए।
पारंपरिक खेती में जहां सिर्फ़ 50 से 60 प्रतिशत पौधे ही फल दे पाते थे, उन्नत खेती के ज़रिए 90 प्रतिशत तक पौधे फल देने लगे हैं। इस उन्नत खेती प्रणाली के तहत प्रत्येक किसान के खेत में प्रत्येक गड्ढे में 3 पौधे लगाए गए और फूल आने के बाद नर पौधों को हटा दिया गया। इस तरह से पपीते की उन्नत खेती अपनाने से उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई।
1200 रुपये से सीधा एक लाख 75 हज़ार रुपये पहुंची कमाई
यह पहल किसानों की आय को बढ़ाने में मददगार साबित हुई। इस तरीके से किसानों की आमदनी 1200 रुपये से बढ़कर सीधा 1 लाख 75 हज़ार रुपये तक पहुंच गई। इस पहल ने आसपास के गांवों के अन्य किसानों को भी पपीते की खेती के लिए प्रेरित किया।
उन्नत पपीते की खेती की रोपण सामग्री की मांग में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ। कुछ किसानों ने नर्सरी में पौधे उगाने शुरू कर दिए और इससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी हुई। सरकार को उम्मीद है कि पपीते की उन्नत खेती झारखंड क्षेत्र से बड़ी संख्या में पलायन करने वाले लोगों को रोजगार का बेहतर अवसर प्रदान करेगी।
पपीता का बाज़ार स्थानीय तौर पर हर जगह उपलब्ध है। पपीते में भरपूर मात्रा में विटामिन ए पाया जाता है। जिन लोगों को अपच की समस्या है उनके लिए तो पपीता किसी रामबाण इलाज से कम नहीं माना जाता। इस वजह से लोगों में इस फल की मांग काफी ज़्यादा रहती है, जिस वजह से ये हाथों-हाथ बिक जाता है।
वहीं पपीते का महत्व ताज़े फलों के अलावा पपेन के कारण भी है, जिसका उद्योग जगत में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि हरे और कच्चे पपीते के फलों से सफेद रस या दूध निकालकर सुखाए गए पदार्थ को पपेन कहते हैं। पपेन का उपयोग मुख्य रूप से चिवंगम बनाने, पेपर कारखाने में, दवाओं के निर्माण में, कॉस्मेटिक के सामान बनाने आदि में किया जाता है।
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