परम्परागत तरीके से धान की खेती भले ही सदियों से होती चली आ रही है, लेकिन नयी तकनीकों और मशीनीकरण के मौजूदा दौर में सीधी बुआई की आधुनिक तकनीक का जबाब नहीं, क्योंकि इससे 20 प्रतिशत सिंचाई और श्रम की बचत होती है। इसका साफ़ मतलब है कि कम लागत में धान की ज़्यादा पैदावार और अधिक कमाई। धान की सीधी बुआई की तकनीक से मिट्टी की सेहत में भी सुधार होता। लेकिन सीधी बुआई तकनीक की सफलता के लिए इसकी सही विधियों को अपनाना और सही समय से बुआई करना बेहद ज़रूरी है।
धान की सीधी बुआई तकनीक की सिर्फ़ एक ही चुनौती है कि इसमें खेत में खरपतवारों की अधिकता होती है। इसलिए जब धान की सीधी बुआई में उपयोगी उन्नत मशीनें सुलभ नहीं थीं और खरपतवार प्रबन्धन की व्यापक तकनीकें भी मौजूद नहीं थीं, तब धान की सीधी बुआई तकनीक को अपनाना ख़ासा मुश्किल था। लेकिन अब उन्नत किस्म की सीड ड्रिल मशीनें और कारहर खरपतवारनाशी उपलब्ध हैं इसीलिए किसानों को इनका भरपूर फ़ायदा उठाना चाहिए।
धान की सीधी बुआई से लाभ
सीड ड्रिल के ज़रिये धान की सीधी बुआई करने पर पलेवा और खेत की तैयारी में लगने वाले समय और श्रम की बचत होती है। धान की फसल भी 10 से 15 दिन पहले ही पककर तैयार हो जाती है। इससे किसानों को अगली फसल की तैयारी के लिए ज़्यादा वक़्त मिल जाता है और फसल चक्र को अपनाने में आसानी होती है। सीड ड्रिल विधि से मिट्टी की उपजाऊ परत का क्षरण (erosion) कम होता है। इस तकनीक में अचानक पड़ने वाले सूखे को झेलने की क्षमता भी कहीं ज़्यादा होती है।
सीधी बुआई के लिए सही बीज ही चुनें
किसी भी उन्नत और वैज्ञानिक तकनीक की तरह सीधी बुआई से धान की खेती करने से पहले सही किस्म के बीजों का चुनाव करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए उपयुक्त बीजों में ऐसे गुण होने चाहिए जिसके पौधे बुआई के बाद शुरुआती दौर में तेज़ी से बढ़ने वाले हों और जिन्हें ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती हो। इसके अलावा धान की अच्छी फसल के लिए बीज दर, बीज के बोये जाने की गहराई, बुआई का समय, बीजोपचार और खरपतवार नियंत्रण जैसी हरेक गतिविधि को सही ढंग से करना बेहद ज़रूरी है। इसी से ज़्यादा उपज मिलने के साथ लागत, पानी और मज़दूरी पर होने वाले खर्च की बचत होगी।
धान की उन्नत किस्में: JR 201, पूसा सुगन्धा 3, पूसा सुगन्धा 5, क्रान्ति, सोनम, पूसा बासमती, MTU 1010, तुलसी, वन्दना, पन्त 4, MR 219, WGL 32100, JGL 3844, HMT, शबनम, गोविन्दा, दुबराज और विष्णुभोग।
धान की हाइब्रिड किस्में: NPH 567, NPH 207, SBH 999, बायर 6129 , बायर 158, JRH-5, प्रो एग्रो-6201, PA 6444 और PHB 711.
सीधी बुआई विधि के लिए खेत की तैयारी
धान की सीधी बुआई के लिए लेजर लेवलर से खेत का समतलीकरण करना चाहिए। इससे बीज की समान गहराई पर हुआई, फसल के अच्छे जमाव, विकास, खरपतवार नियंत्रण और एक-समान सिंचाई का लाभ मिलता है। बुआई से पहले खेत की सिंचाई करके पाटा चलाना चाहिए ताकि मिट्टी में नमी सुरक्षित रहे और बीजों का अच्छा जमाव हो। यदि खेत में खरपतवार हैं तो ग्लाइफोसेट खरपतवार नाशक का छिड़काव करें। इसकी 1.5 लीटर मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में इस्तेमाल करना चाहिए।
ध्यान रहे कि ग्लाइफोसेट के घोल बनाने में बिल्कुल साफ़ पानी का ही इस्तेमाल हो। छिड़काव के लिए फ्लैट-फैन नोजल का उपयोग करें। ग्लाइफोसेट के साथ 24-D की 2 मिलीलीटर मात्रा को भी प्रति लीटर पानी के हिसाब से मिलाकर इस्तेमाल करने पर खरपतवार पर अच्छा नियंत्रण प्राप्त होता है।
धान की सीधी बुआई का सही समय
खरीफ मौसम में धान की सीधी बुआई को मॉनसून के दस्तक देने से 10-12 दिन पहले करना बहुत उपयोगी साबित होता है, क्योंकि इस बीच पौधों का अंकुरण हो जाता है। अच्छे अंकुरण के लिए बुआई से पहले या बुआई के तुरन्त बाद खेत की सिंचाई करनी चाहिए। इससे मॉनसून के आने के बाद होने वाली ज़्यादा बारिश का सामना करने के लिए धान के पौधे पर्याप्त रूप से विकसित हो जाते हैं और यदि किसी वजह से मॉनसून के कमज़ोर पड़ने का दौर भी आये तो फसल के ख़राब होने का जोख़िम कम हो जाता है।
सीधी बुआई के लिए गहराई और बीज दर
धान की सीधी बुआई में बीज की गहराई बेहद महत्वपूर्ण होती है। इसे सतह से 2-3 सेंटीमीटर गहरा ही रखना चाहिए। इससे ज़्यादा या कम गहराई पर बुआई होने से बीजों का जमाव और अकुंरण प्रभावित होता है। ज़्यादातर सीड ड्रिल मशीनों या प्लान्टर में बुआई की गहराई को समायोजित (setting) करने का उपकरण होता है। बुआई के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए ताकि मिट्टी में नमी ज़्यादा वक़्त तक सुरक्षित रह सके और बीजों का अच्छा जमाव हो सके। बुआई के लिए यदि बीजों के दाने मध्यम आकार के हों तो प्रति हेक्टेयर के लिए 15-20 किलोग्राम बीज दर पर्याप्त होती है, जबकि बड़े दानों के लिए बीज दर 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए।
धान की सीधी बुआई में बीजोपचार
बीजोपचार से बीजों में ऐसे जैव-रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जो उसके अंकुरण और बढ़वार को आसान बनाते हैं। इसके लिए जीवाणुनाशक स्ट्रेप्ट्रोसाइक्लिन (0.25 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज), फफूँदनाशक कार्बेन्डाजिम या थीरम (2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) और कीट रोधी थायमेथोक्सम (1 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज) का इस्तेमाल करना चाहिए। बुआई के 10-12 घंटे पहले बीजों को पानी में भिगोने के बाद छायादार जगह में सुखा लेना चाहिए। इससे अंकुरण अच्छा होता है।
धान की सीधी बुआई की तकनीक और मशीनें
बुआई के लिए ऐसी सीड ड्रिल मशीनों का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे खेत में बीजों की एक समान और सटीक मात्रा उचित गहराई तक पहुँचायी जा सके। इसके लिए झुकी प्लेटें, कप नुमा मापक या खड़ी प्लेट वाली मशीनों का उपयोग करना चाहिए। खरपतवार रहित खेत में झुकी प्लेट या कप नुमा प्लेट वाली बीजारोपण मशीन ‘ज़ीरो टिल प्लान्टर’ का प्रयोग बहुत सफल पाया गया है। लेकिन यदि खेत में बिखरे हुए अवशेषों की मौजूदगी हो तो धान की सीधी बुआई के लिए निम्न मशीनें बेहतर रहती हैं।
- टर्बो सीडर: 8-10 टन प्रति हेक्टेयर अवशेषों वाले खेत में टर्बो सीडर सही ढंग से बुआई कर सकता है। इसे चलाने के लिए 50 हॉर्स पॉवर वाले ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है।
- पीसीआर प्लान्टर: इस मशीन में अलग-अलग फसलों के बीजों की निश्चित मात्रा के लिए ऊर्ध्वाधर प्लेटें लगी होती हैं। बुआई की कतार को संचालित करने के लिए भी उपकरण होता है। यह मशीन 8-10 टन प्रति हेक्टेयर तक के सभी किस्म के अवशेषों के बीच बुआई के लिए उपयुक्त है। इस मशीन को 35 हॉर्स पॉवर वाले छोटे ट्रैक्टर से भी चला सकते हैं।
- रोटरी डिस्क ड्रिल: इसे ट्रैक्टर की पॉवर टेक ऑफ़ शॉफ़्ट से चलाया जाता है। इसकी घूमती हुई डिस्क अवशेषों को समान रूप से काटती हुई मिट्टी के अन्दर छोटी सी नाली में बीज और उर्वरक को डालते चलती है। इस मशीन से 7-8 टन प्रति हेक्टेयर बिखरे हुए और खड़े अवशेषों वाले खेत में बीजों की बुआई की जा सकती है।
- डबल डिस्क कल्टर: इस मशीन की डिस्क का सिरा ज़मीन को छूते हुए खेत में ‘V’ आकार की नालियाँ बनाते हुए बीज डालते जाते हैं। लेकिन इस मशीन के कम वजन का होने की वजह से यह अवशेषों को काटती नहीं है। इससे कई बार अवशेषों के सतह पर ही बीज और उर्वरक रह जाते हैं। यह मशीन 3-4 टन प्रति हेक्टेयर अवशेषों की दशा में बुआई कर सकती है।
धान की सीधी बुआई में उर्वरक प्रबन्ध
खेती-किसानी में कार्बनिक खाद का इस्तेमाल बहुत घट चुका है। अब उर्वरक के ज़्यादा उपयोग से उपज ली जाती है। इससे मिट्टी के सूक्ष्म पोषक तत्वों में असंतुलन दिखायी देता है। इसीलिए यदि मिट्टी जाँच के आधार पर रासायनिक खाद के साथ कार्बनिक खाद का भी प्रयोग किया जाना चाहिए। बाक़ी धान की सीधी बुआई के लिए कृषि विशेषज्ञों ने प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की 150:60:40 किलोग्राम मात्रा को उचित पाया है।
बुआई के समय मशीन से प्रति एकड़ 50 किलोग्राम DAP और 30 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश का छिड़काव करें या 12:32:16 वाले अनुपात में बनाये गये NPK के मिश्रण को प्रति एकड़ 75 किलोग्राम डालें। बुआई के समय, कल्ले फूटते समय और बाली बनते समय 35 किलोग्राम प्रति एकड़ यूरिया का प्रयोग करें। धान के स्वस्थ पौधों के लिए ज़िंक या आयरन सल्फेट का प्रयोग भी फसल की माँग के अनुसार करना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
धान की सीधी बुआई वाली खेती में खरपतवार का नियंत्रण एक मुख्य चुनौती है। लेकिन सही फसल क्रम और बीज की किस्म को चुनने तथा खेत की कम जुताई करने और पिछली फसल के अवशेषों को खेत में छोड़ने से काफ़ी फ़ायदा होता है। बुआई के बाद और अंकुरण से पहले खरपतवारों की शुरुआती बढ़वार के दौर में निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं।
- पेन्डीमेथेलीन (स्टाम्प): 500 लीटर पानी में इसकी 1 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मौजूद नमी के अनुसार बुआई के बाद 3 दिन तक इस्तेमाल करना चाहिए।
- पायरेजोसल्फ्यू रॉन (साथी): बुआई के बाद 12 से 20 दिनों इसकी 20 ग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें। ये उपचार मोथा और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर ज़्यादा प्रभावी है।
- बिसपायरीबेकः 25 ग्राम सक्रिय तत्व/हेक्टेयर की दर से बुआई के 15-25 दिनों बाद (झुनखूना, सामी, मोथा तथा अन्य चौड़ी पत्ती खरपतवारों पर प्रभावी)।
- पिनोक्ससुलामः चिड़िया घास और मकड़ा घास से बचाव के लिए प्रति हेक्टेयर 22.5 ग्राम का इस्तेमाल बुआई के 15 से 25 दिनों बाद करना चाहिए।
- फनोक्सप्रोप इथॉक्सी सल्फ्यूरॉनः (60 ग्राम+18 ग्राम प्रति हेक्टेयर) बुआई के 25 दिनों बाद छिड़कें तथा निर्देशों का पालन करें। इस मिश्रण का देरी से प्रयोग करने पर धान की फसल को नुकसान हो सकता है। ये घास कुल के खरपतवारों के लिए बहुत प्रभावी है।
- एजिमसल्फ्यूरॉन या इथॉक्सी सल्फ्यू रॉन: बुआई के 12-20 दिनों बाद 20 से 25 ग्राम या 18 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। ये मोथा और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर ख़ूब प्रभावी है।
- बिस्पायरिबेक–एजिमसल्फ्यूरॉन: बुआई के 12-20 दिनों बाद 12.5 ग्राम+17.5 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर प्रयोग करें। यह मिश्रण सावाँ तथा मोथा प्रभावित खेतों में प्रभावी होता है।
- प्रोपेनिल–ट्राक्लोपायरः बुआई के 15-25 दिनों बाद इसकी 3 किलोग्राम+500 ग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। ये प्रोपेनिल कुल के घासों और चौड़ी पत्ती वाले ट्राक्लोपायर तथा मोथा कुल के खरपतवारों पर ख़ूब प्रभावी है।
- 24 डी: बुआई के 10-30 दिनों बाद इसकी 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा का इस्तेमाल एकवर्षीय चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर ख़ूब प्रभावी है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।