छोटे और सीमान्त श्रेणी के ऐसे किसान जो नये खेत खरीदकर अपनी कृषि भूमि का रक़बा बढ़ाना चाहते हैं, उनके लिए कई बैकों की ओर से रियायती कर्ज़ की स्कीम मौजूद है। यदि किसान बैंकों की प्रक्रिया को झेलकर वहाँ से कर्ज़ हासिल करें तो उन्हें अपने गाँव के साहूकार या दोस्तों-रिश्तेदारों से ऊँची दर पर कर्ज़ लेने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
खेत खरीदने के इच्छुक किसानों को सबसे पहले अपने नज़दीकी बैंक से सम्पर्क करके कर्ज़ हासिल करने की शर्तों और प्रक्रिया की जानकारी लेकर इनका लाभ उठाना चाहिए।
किस्तें चुकाने में मिलती है सहूलियत
खेत खरीदने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र के सभी प्रमुख बैंक कर्ज़ देते हैं। आम तौर पर कर्ज़ की सीमा 5 लाख रुपये तक रहती है। इस पर 7.5 से लेकर 8.5 प्रतिशत का ब्याज़ चुकाना पड़ता है। किस्तों का भुगतान भी छमाही स्तर पर करने की सुविधा मिलती है। कुछ बैंक कर्ज़ देने के बाद साल भर तक, तो कुछ इससे ज़्यादा वक़्त के लिए किस्तें नहीं भरने की छूट भी देते हैं, क्योंकि ये माना जाता है कि किसान फसल तैयार होने के बाद ही किस्तें भरने की दशा में आएगा। सामान्यतः खेत खरीदने के लिए मिलने वाले कर्ज़ की मियाद दस साल की होती है।
मेहनती किसानों को मिलती है मदद
बैंकों की भूमि खरीद योजना (Land Purchase Scheme) का उद्देश्य ऐसे छोटे और सीमान्त किसानों तथा भूमिहीन खेतीहर मज़दूरों की मदद करना भी होता है जो बंजर और परती ज़मीन खरीदकर उन्हें उपजाऊ भूमि में परिवर्तन करके खुशहाल होने की ख़्वाहिश रखते हैं और इसके लिए भरपूर मेहनत करना चाहते हैं। खेती की ज़मीन खरीदने के लिए अक्सर बैकों की ओर से उन किसानों को वरीयता दी जाती है, जिनका खाता उनकी ही शाखा में होता है। लेकिन ये कोई अनिवार्य शर्त नहीं है।
85 फ़ीसदी तक मिलता है कर्ज़
खेत खरीदने के लिए बैंकों की ओर से ज़मीन के दाम की 85 फ़ीसदी रक़म तक का कर्ज़ मिल सकता है। बशर्ते किसान का कर्ज़ चुकाने का पिछला रिकॉर्ड अच्छा हो। यानी, उसने पुराने कर्ज़ों को तय वक़्त पर चुकाया हो। इसे CIBIL (Credit Information Bureau (India) Limited) स्कोर भी कहते हैं। ये कर्ज़ चुकाने के स्वभाव या प्रकृति का निर्धारण करने वाला एक तकनीकी आँकड़ा होता है और सभी तक की बैंकिंग और वित्तीय संस्थाएँ इसके आधार पर ही कर्ज़ देती हैं।
सिंचाई और खेती के उपकरणों में मदद
जिन किसानों के ख़ुद के नाम पर 2 हेक्टेयर या 5 एकड़ से कम असिंचित ज़मीन अछवा 1 हेक्टेयर या 2.5 एकड़ तक के सिंचित खेत हैं उनके लिए बैंकों की भूमि खरीद योजना से कर्ज़ लेना बहुत उपयोगी हो सकता है। यदि खरीदी जाने वाली ज़मीन पहले से विकसित है तो उस पर उत्पादन को लाभकारी बनाकर कर्ज़ उतारने की किस्तें भरने के लिए अधिकतम एक साल का वक़्त (gestation period) मिलता है।
लेकिन यदि ज़मीन बंजर या परती किस्म की है तो यही अवधि दो साल तक की हो सकती है। असिंचित ज़मीन के मामले में मिलने वाला कर्ज़ की आधी रक़म सिंचाई के साधन विकसित करने के लिए भी हो सकती है। ऐसे कर्ज़ में ज़मीन की कीमत के रूप में खेती के आवश्यक उपकरणों की खरीद और स्टाम्प ड्यूटी से सम्बन्धित खर्चों को भी शामिल किया जा सकता है। अलबत्ता, कर्ज़ के चुकाये जाने तक खरीदी गयी ज़मीन बैंक के पास गिरवी रहती है।