पंडाल तकनीक से करेले की खेती (Bitter Gourd Farming), तमिलनाडु के एन. विजयकुमार ने किया उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल

किसान एन. विजयकुमार के पास 5 एकड़ भूमि है। उन्हें खेती में नुकसान उठाना पड़ता था। उन्नत तकनीकों की जानकारी का अभाव था। कैसे उन्होंने अपनी परिस्थिति बदली? पंडाल तकनीक के साथ क्या क्या तरीके अपनाए? जानिए इस लेख में।

करेले की खेती

सब्ज़ियों की खेती अगर सही और उन्नत तरीके से की जाए तो इससे अच्छा-ख़ासा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। बीमारियों और कीटों से नुकसान पहुंचने की संभावना भी कम रहती है। तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई ज़िले के किसान एन. विजयकुमार ने पंडाल तकनीक से करेले की खेती करके सफलता पाई है। उनकी देखा-देखी इलाके के अन्य किसान भी इसी तरीके से करेले की खेती करने लगे हैं। 

कीट और रोगों ने पहुंचाया फसल को नुकसान

तिरुवन्नामलाई ज़िले के पेरियाकुप्पम गांव के रहने वाले किसान एन. विजयकुमार के पास 5 एकड़ भूमि है। 3 एकड़ क्षेत्र में वो सब्ज़ियों की खेती करते हैं और 2 एकड़ में धान उगाते हैं। सब्ज़ियों में मुख्य रूप से चिचिंडा (स्नेक गोर्ड), करेला और तोरई की खेती करते हैं। परिवार की आमदनी के लिए वह मुख्य रूप से इन्हीं सब्जियों की खेती पर ही निर्भर थे। मगर धीरे-धीरे उत्पादन घटने लगा और लागत भी बढ़ने लगी। कीट और बीमारियों के प्रकोप से भारी नुकसान हुआ। 

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करेले पर लगने वाले रोग (तस्वीर साभार: tnau)

कृषि विज्ञान केंद्र से मिली मदद

विजयकुमार ने अपने ज़िले के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से संपर्क किया। KVK की टीम विजयकुमार के गांव पहुंची और उनके खेत का दौरा किया। इसके बाद उनके फ़ील्ड को फ्रंट लाइन प्रदर्शन के लिए चुना गया। उनके खेत में करेले की खेती की उन्नत तकनीकें प्रदर्शित करके दिखाई गईं। इसके अलावा, उन्होंने पंडाल सिस्टम से कद्दू की खेती पर केवीके द्वारा आयोजित एक ट्रेनिंग में भी हिस्सा लिया। उन्होंने कई बागवानी अनुसंधान केंद्रों का दौरा कर जानकारियां जुटाईं। 

करेले की उन्नत किस्म का पंडाल तकनीक से उत्पादन

ट्रेनिंग में मिली जानकारी और अपने आत्मविश्वास के बल पर उन्होंने करेले की हाइब्रिड किस्म अभिषेक की खेती करनी शुरू की। एक एकड़ में पंडाल सिस्टम से करेले की खेती की। उन्होंने एकीकृत पौध पोषण प्रणाली ( Integrated Plant Nutrition System) को अपनाया। इस प्रणाली में फॉइलर न्यूट्रीशन (foliar nutrition) पर अधिक फोकस किया जाता है। इसके अलावा, फेरोमोन ट्रैप, येलो स्टिकी ट्रैप, आदि के उपयोग पर विशेष जोर दिया। उन्नत तकनीक के इस्तेमाल का असर जल्द ही दिखने लगा। प्रति हेक्टेयर 452 क्विंटल करेले की उपज प्राप्त हुई, जो उसी इलाके के दूसरे किसानों की उपज से करीब 28.90 फ़ीसदी ज़्यादा थी। 

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पंडाल तकनीक से की हुई करेले की खेती (तस्वीर साभार: tnau)

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कितनी हुई आमदनी?

करेले की खेती से एन. विजयकुमार को प्रति हेक्टेयर लगभग 7 लाख 62 हज़ार की आमदनी हुई। इससे उन्हें प्रति हेक्टेयर तकरीबन 2 लाख 5 हज़ार का मुनाफ़ा हुआ। एन. विजयकुमार की सफलता को देखते हुए इलाके के अन्य किसानों ने भी करेले की खेती शुरू कर दी और इस तरह से स्वरोज़गार के अवसर खुले। 

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तस्वीर साभार: indianfarmingguide

क्या है पंडाल तकनीक? 

पंडाल तकनीक (Pandal System) में कंक्रीट के खंभों के सहारे लगी तारों के जाल पर बेलों को फैलाया जाता है। लता या बेल वाली सब्जियों को किसी सहारे की सहायता से ज़मीन से ऊपर तैयार संरचना पर फैला देते हैं। इसमें पौधों को लकड़ी, लोहे या सीमेंट के पोल पर तार अथवा प्लास्टिक जाल से तैयार संरचना पर फैला दिया जाता है। इस पंडाल तकनीकके कई फ़ायदे भी हैं। ज़मीन के संपर्क में नहीं आने से उपज आकार में लंबी और होती है। इससे उपज का बाज़ार मूल्य अधिक मिलता है। मचान विधि में पौधे भूमि से दूर रहने के कारण कीट व रोगों से कम प्रभावित होते हैं। 

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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