बाँस के माध्यम से व्यापार के अवसरों का पता लगाने के लिए जम्मू और जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में तीन बाँस क्लस्टर स्थापित किये जाएँगे। इनमें बाँस से बनने वाले अगरबत्ती, टोकरी और चारकोल वगैरह का उत्पादन किया जाएगा।
उत्तर-पूर्व बेंत और बाँस विकास परिषद (NECBCDC) के तकनीकी सहयोग से इन बाँस क्लस्टरों का निर्माण किया जाएगा। सरकारी विज्ञप्ति में साफ़ नहीं है कि प्रस्तावित क्लस्टर कहाँ बनाये जाएँगे? उम्मीद है, इसकी घोषणा जल्द होगी।
उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय के राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने 25 फरवरी को उत्तर-पूर्व बेंत और बाँस विकास परिषद के परिसर में निर्मित नये बाँस उपचार संयंत्र का उद्घाटन करने के बाद बाँस क्लस्टरों की स्थापना के बारे में बताया। इस मौके पर परिसर में बाँस के अनेक उत्पाद भी प्रदर्शित किये गये। इसका जायज़ा लेने के बाद डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र में बाँस का विशाल भंडार है। इसका अभी तक बहुत कम इस्तेमाल हुआ है। जबकि इसमें अपार सम्भावनाएँ हैं।
उन्होंने कहा कि कोविड के बाद के हालात में बाँस और बेंत के उत्पादों की भूमिका न सिर्फ़ पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के लिए बल्कि पूरे भारत के लिए ख़ासी महत्वपूर्ण हो सकती है, क्योंकि अभी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ग़ैर पारम्परिक उपायों को बढ़ावा देना होगा। इस मौके पर पूर्वोत्तर भारत में बाँस से जुड़ी गतिविधियों के अध्ययन के लिए गये जम्मू और कश्मीर के अफ़सरों का एक समूह से भी मौजूद था।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि बाँस के उत्पादों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए पूर्वोत्तर परिषद और उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास (DONER) मंत्रालय ने देशव्यापी अभियान शुरू किया है। इसके तहत नये उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके तहत केन्द्र सरकार ने घरों में उगाये जाने वाले बाँस को 100 साल पुराने वन क़ानून के प्रावधानों से छूट दी है। इससे युवा उद्यमियों को बाँस से जुड़े कारोबार करने में आसानी होगी। इसी तरह, कोविड के दौरान विदेशी अगरबत्ती पर 35 फ़ीसदी आयात शुल्क लगाकर घरेलू उत्पादन की मदद की गयी है।