केन्द्रीय खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय से सम्बन्धित संसद की स्थायी समिति ने सर्वसम्मत्ति से पारित अपनी रिपोर्ट के ज़रिये नरेन्द्र मोदी सरकार से कहा कि वो विवादित तीन कृषि क़ानूनों में से एक ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020’ को लागू करने के उपाय अपनाये।
लोकसभा और राज्यसभा के 30 सदस्यों वाली इस संसदीय समिति के अध्यक्ष तृणमूल काँग्रेस के सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय हैं। इसमें BJP, TMC, AAP, NCP, DMK, JD (U), PMK, YSRCP, नागा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अलावा काँग्रेस, शिवसेना और समाजवादी पार्टी जैसे 13 राजनीतिक दलों के सदस्य हैं।
सड़क पर विरोध संसद में समर्थन
इस संसदीय रिपोर्ट का सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि तृणमूल काँग्रेस, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, शिवसेना और काँग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियाँ एक ओर तो तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने को लेकर चल रहे किसानों के आन्दोलन का समर्थन कर रही हैं और दूसरी ओर, इन्हीं पार्टियों के सदस्यों से बनी संसदीय समिति की रिपोर्ट के ज़रिये तीनों में से एक क़ानून को अक्षरशः और उसकी मंशा के अनुरूप यानी ‘in letter and spirit’ लागू किये जाने पर भी ज़ोर दे रही हैं। फ़िलहाल, इस क़ानून को 12 जनवरी से सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी रूप से निलम्बित रखा है।
संसदीय समिति और सरकार के रुख़ में समानता
लोकसभा में 19 मार्च 2021 को पेश हुई संसदीय रिपोर्ट का शीर्षक है ‘कमोडिटी ऑफ एसेंशियल कमोडिटीज – कॉज एंड इफेक्ट्स ऑफ़ प्राइस राइज’। रिपोर्ट में उम्मीद जतायी गयी है कि आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 से कृषि क्षेत्र से जुड़े ऐसे अपार संसाधनों के इस्तेमाल की सम्भावना बढ़ सकती है जो अभी निवेश की कमी की वजह से बर्बाद हो जाती है।
ये भी पढ़ें: कैसे झुलसाने वाली गर्मी से भी जूझेंगे किसान? आन्दोलन के लम्बा खिंचने के आसार
बम्पर फसल से किसानों को ज़्यादा नुकसान
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में आज ज़्यादातर उपज का माँग से अधिक उत्पादन हो रहा है, लेकिन कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, फूड प्रोसेसिंग (प्रसंस्करण) और कृषि सम्बन्धी निर्यात गतिविधियों के लिए आवश्यक निवेश की कमी रहने की वजह से किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत नहीं मिल पाती है। पुराने क़ानून यानी ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955’ के कुछ प्रावधान नये निवेशकों हतोत्साहित करने वाले थे, इसीलिए सरकार ने पिछले साल क़ानून में संशोधन किया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब बम्पर फसलें होती हैं तो किसानों को भारी नुकसान होता है। ख़ासतौर पर जल्दी सड़ जाने वाली उपज के मामलों में। हालाँकि, इस बर्बादी को फूड प्रोसेसिंग सुविधाओं की बदौलत काफ़ी घटाया जा सकता है।
ये भी पढ़ें: किसान आंदोलन के दौरान एक लाख करोड़ रुपए का हुआ नुकसान, दिल्ली पर पड़ा सबसे ज्यादा असर
सुप्रीम कोर्ट को जल्द सिफ़ारिशें मिलने के संकेत
आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने ‘किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020’ और ‘मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अधिनियम, 2020’ को भी अस्थायी रूप से स्थगित करके इसके जुड़े विवादों को लेकर सलाह देने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनायी थी।
उम्मीद है कि जल्द ही इसकी सिफ़ारिशें सुप्रीम कोर्ट को दे दी जाएँगी। इससे पहले केन्द्र सरकार और आन्दोलनकारी किसानों के बीच हुई कई दौर की बातचीत भी गतिरोध को खत्म करने में नाकाम रही।