अनाज और फल-सब्जी उत्पादन में सुधार के लिए कई कदम उठाए गए हैं। गुणवत्ता के साथ-साथ उत्पादकता कैसे बढ़ाई जाए, इसको लेकर कई उन्नत कृषि तकनीकें विकसित होती रही हैं। इन्हीं तकनीकों में से एक है, टिश्यू कल्चर। ये तकनीक अपनाकर आप अपने उत्पादन को बढ़ा सकते हैं, साथ ही अपने उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार लाकर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। केले की खेती में कैसे ये तकनीक काम करती है? किस तरह से फ़ायदेमंद है? इस तकनीक के इस्तेमाल में कितनी लागत आती है? कितना मुनाफ़ा किसान कमा सकते हैं? इन सब के बारे में जानिए इस लेख में।
पारंपरिक तरीके के बजाय टिश्यू कल्चर तकनीक अपनाई
मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले के रहने वाले उपेन्द्र गद्रे टिश्यू कल्चर से ही केले की खेती करते हैं। पहले उनको इस तकनीक के बारे में जानकारी नहीं थी। जब उन्हें इस तकनीक के फ़ायदों और ख़ासियतों के बारे में पता चला तो उन्होंने पारंपरिक प्रकन्दों के बजाय टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों से केले की खेती करने का फैसला किया।
टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार पौधे बेहतर
उपेन्द्र गद्रे हरदा ज़िले के तिमरनी क्षेत्र से आते हैं। यहाँ के ज़्यादातर किसान सोयाबीन और गेहूं की फसल पर निर्भर थे। यही इन किसानों की चिंता भी थी कि सिर्फ़ इन दो फसलों पर निर्भर रहना फ़ायदेमंद नहीं है। इस समस्या के हल के लिए एग्रीकल्चर विषय में ग्रेजुएट उपेन्द्र विकल्पों की तलाश में लग गए। टिश्यू कल्चर तकनीक के रूप में उन्हें ये वैकल्पिक हल दिखा। उन्होंने जब टिश्यू कल्चर तकनीक से केले की खेती शुरू की तो इसके अच्छे नतीजे आए। पौधे आकार, गुणवत्ता और अन्य आनुवंशिक लक्षणों में बेहतर पाए गए। हालांकि, प्रकन्दों द्वारा की गई खेती की तुलना में इसकी लागत थोड़ी ज़्यादा होती है, लेकिन ये मुनाफ़ा ज़्यादा देती हैं।
जानिए कितनी है लागत और मुनाफ़ा?
उपेंद्र गद्रे ने प्रति हेक्टेयर में 1.5×1.5 मीटर की दूरी पर 4 हज़ार केले के पौधे लगाए। पहले दो साल में खेती की लागत करीबन दो लाख 40 हज़ार रुपये आयी । पहले साल प्रति हेक्टेयर 650 क्विंटल और दूसरे साल 600 क्विंटल की पैदावार हुई। इससे उन्हें करीबन 6 लाख 25 हज़ार रुपये की आमदनी हुई। इस तरह उन्हें प्रति साल करीबन एक लाख 92 हज़ार की बचत हुई।
टिश्यू कल्चर से केले की खेती करने के कई फ़ायदे
उन्होंने केले की खेती में फ्लड इरिगेशन के बजाय ड्रिप इरिगेशन मेथड का इस्तेमाल किया। इससे पैसे की बचत के साथ-साथ श्रम की बचत भी की। उपेन्द्र गद्रे ने टिश्यू कल्चर के कई फ़ायदे भी बताए। उन्होंने बताया कि टिश्यू कल्चर से की गई केले की खेती ने मिट्टी को भुरभुरा बना दिया। इसके अलावा, मिट्टी की जल सोखने की क्षमता में भी सुधार हुआ। उपेन्द्र ने बताया कि केले की खेती के चार साल बाद उन्होंने केले के एक खेत में गेहूं और सोयाबीन की फसल लगाई। इसका भी उन्हें अच्छा परिणाम मिला। उपेन्द्र कहते हैं कि केले की खेती में टिश्यू कल्चर तकनीक उनके क्षेत्र की आजीविका में सुधार करने के लिए अहम है।
- टिश्यू कल्चर से तैयार किये गए पौधे स्वस्थ और रोग रहित होते हैं
- सभी पौधों में एक ही तरह का विकास होता है, यानी कि सभी पौधों का आकार एक समान होता है।
- प्रकन्दों की तुलना में टिश्यू कल्चर विधि से तैयार पौधों में 60 दिन पहले ही फल लगने शुरू हो जाते हैं।
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ हॉर्टिकल्चर रिसर्च के मुताबिक, टिश्यू कल्चर तकनीक से केले के उत्पादन में 18 फ़ीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- इस विधि में 13-15 महीने में ही केले की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जबकि पारंपरिक प्रकन्दों से तैयार पौधों से पहली फसल 16 से 17 महीने बाद मिलती है।
- पहली फसल कटाई के बाद दूसरी फसल 8 से 10 महीने में आ जाती है। इस तरह से 24 महीने के भीतर केले की दो उपज प्राप्त होती हैं।
- टिश्यू कल्चर में केले के एक पौधे से औसतन 13 किलो उपज मिलती है।
क्या है टिश्यू कल्चर विधि?
टिश्यू कल्चर विधि में किसी भी पौधे की जड़, पत्ती या तने का छोटा सा टुकड़ा लेकर कांच की बोतल में रखा जाता है। फिर कई तरह के हार्मोन के प्रभाव से ये पौधे तैयार किए जाते हैं। इस विधि की शुरुआत में पौधे बोतल के अंदर ही रखे जाते हैं। फिर पॉलीहाउस में इन्हें तैयार किया जाता है। उसके बाद ही इनका रोपण किया जाता है।
इस तकनीक की मदद से अच्छी प्रजाति के पौधों के अस्तित्व को बचाया जा सकता है, साथ ही सीमित समय में उसके हज़ारों पौधे बनाए भी जा सकते हैं। इस विधि की मदद से बिना सीज़न के पौधों को भी तैयार किया जा सकता है।
इस तकनीक का इस्तेमाल कई तरह की बागवानी फसलें लेने के लिए किया जा सकता है। इस तकनीक के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप अपने नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं।
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