खाद्य तेलों (edible oils) के लिहाज़ से भारत आयात पर अत्यधिक निर्भर है। देश में खाद्य तेलों की खपत के मुकाबले इसका बमुश्किल एक-तिहाई उत्पादन होता है। बाक़ी दो-तिहाई माँग की भरपाई के लिए हमें सालाना करीब 150 लाख टन खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है।
इन्हीं तथ्यों को देखते हुए देश को तिलहन उत्पादन में आत्म-निर्भर बनाने के लिए बनायी गयी बहुआयामी रणनीति के तहत, आगामी खरीफ सीज़न के लिए किसानों को ज़्यादा उपज देने वाली तिलहन की फसल के उन्नत किस्म के बीज मुफ़्त बाँटे जाएँगे। इन्हें प्राप्त करने के लिए किसानों को अपने नज़दीकी सरकारी बीज वितरण केन्द्र से सम्पर्क करना चाहिए।
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का इरादा तिलहनी फसलों के कुल राष्ट्रीय रक़बे में भी करीब 6.37 लाख हेक्टेयर का इज़ाफ़ा लाकर कुल उत्पादन को 120.26 लाख क्विंटल तक पहुँचाने का भी है। सरकारी अनुमान है कि इससे देश में खाद्य तेलों का उत्पादन 24.36 लाख टन हो जाएगा।
खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने को लेकर अप्रैल में केन्द्र सरकार और राज्यों के बीच हुई चर्चा के बाद अब 253.6 करोड़ रुपये के खर्च से तिलहन की उन्नत किस्म के बीजों को मुफ़्त बाँटा जाएगा।
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क्या है मुफ़्त बीज बाँटने का लक्ष्य?
केन्द्र सरकार ने तय किया है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत तिलहन और ताड़ के तेल (oil seed and palm oil) की पैदावार को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ में 304 ज़िलों की 15.43 लाख हेक्टेयर ज़मीन तक सोयाबीन और मूँगफली का रक़बा बढ़ाया जाएगा। इसके लिए 116.03 करोड़ रुपये की लागत वाले 8.16 लाख बीजों की किट्स किसानों को मुफ़्त बाँटे जाएँगे।
सोयाबीन और मूँगफली को बढ़ावा
किसानों को मुफ़्त दिये जाने वाले सोयाबीन के सहरोपण और ज़्यादा सम्भावनाओं वाले बीज इतने उन्नत होंगे कि उनसे कम से कम 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार हासिल हो सके। इन बीजों का वितरण केन्द्रीय और प्रान्तीय बीज उत्पादक एजेंसियों के माध्यम से किया जाएगा।
इसी तरह, मूँगफली के उन्नत बीजों की 74,000 मिनी किट्स का वितरण 7 राज्यों – गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु के किसानों को किया जाएगा। इन बीजों की पैदावार भी 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से कम नहीं होगी। ऐसे बीजों के वितरण पर 13.03 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
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क्या है तिलहन के लिए बहुआयामी रणनीति?
तिलहन और ताड़ के तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए जो बहुआयामी रणनीति पहले से मौजूद है, उसमें निम्न बातें प्रमुख हैं:
- बीजों की किस्मों में बदलाव के ज़रिये उन्नत किस्मों पर जोर
- तिलहन के लिए सिंचित खेतों का रक़बा बढ़ाना
- बेहतर पैदावार के लिए मिट्टी में पोषक तत्वों की समुचित व्यवस्था
- अनाज/दालें/गन्ने के साथ तिलहनी फसलों का सहरोपण
- उत्पादकता बढ़ाने के लिए जलवायु के अनुरूप लचीली तकनीकों को अपनाना
- कम उपज वाले खाद्यान्न का विविधीकरण के माध्यम से रक़बा बढ़ाना
- धान के परती इलाकों और ज़्यादा सम्भावनाओं वाले ज़िलों की पहचान करना
- गैर-पारम्परिक राज्यों में तिहलान की खेती को प्रोत्साहित करना
- तिलहन की पैदावार में मशीनों के उपयोग को बढ़ावा देना
- किसानों और कृषि अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण और शोध परियोजनाओं को बढ़ाना
- खेती की अच्छी विधियों को अपनाने के लिए क्लस्टर प्रदर्शन को समर्थन देना
- गुणवत्तापूर्ण बीजों की व्यापक उपलब्धता के लिए क्षेत्रीय रणनीति पर केन्द्रित 36 तिलहन हब का निर्माण करना
- कटाई के बाद खेत और गाँवों के स्तर पर ही मार्केटिंग को बढ़ावा
- कृषक उत्पादक संगठनों का गठन करके तिहलन की खेती को प्रोत्साहित करना
बहुआयामी रणनीति का नतीज़ा
कृषि मंत्रालय का कहना है कि उपरोक्त कोशिशों की बदौलत साल 2020-21 में तिलहनों का उत्पादन 3.731 करोड़ टन होने की उम्मीद है। जबकि 2014-15 में इसकी मात्रा 2.751 करोड़ टन थी। इसी तरह, इसी अवधि में, तिलहनी फसलों का रक़बा 2.599 से बढ़कर 2.882 करोड़ हेक्टेयर और प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1,075 किलो से बढ़कर 1,295 किलोग्राम दर्ज़ हुई है।