उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव 2022 (UP Election 2022) में कुल वोटर 15.02 करोड़ हैं। एक अनुमान के मुताबिक देश के इस सबसे बड़े राज्य में मोटे तौर पर किसान परिवारों की कुल संख्या 2.38 करोड़ है, जिनमें छोटी जोत के किसान परिवार 2.22 करोड़ हैं। इन परिवारों के कुल 9.20 करोड़ वोटर्स किसान हैं। इस तरह राज्य के कुल मतदाताओं में 60 फीसदी से ज़्यादा किसान हैं। वोटरों की इतनी बड़ी तादाद अब तक असंगठित होने के कारण अब तक एक वोट बैंक का रूप नहीं ले सका है, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में पिछले साल तक चले किसान आंदोलन का भी असर माना जा रहा है।
उत्तर प्रदेश चुनाव में किसानों के लिए वादे
उत्तर प्रदेश में चुनाव मैदान में उतरे सभी राजनीतिक दलों ने किसानों के लिए कई वादे किए हैं। सत्तारुढ़ बीजेपी ने कृषि कानूनों को बिना शर्त वापस लेने के साथ-साथ किसान सम्मान निधि का लाभ सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश के किसानों को मिलने की बात कही है। गन्ना मूल्य का बकाया भुगतान और नियमित भुगतान के साथ-साथ गन्ना कीमतों में 25 रुपये प्रति क्विंटल वृद्धि, गन्ना किसानों के लिए ऑनलाइन पर्ची, गेहूं और धान की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अधिकतम खरीदारी, निजी नलकूपों के बिजली बिल की दरें आधी करने जैसे कदमों को उत्तर प्रदेश बीजेपी अपनी उपलब्धियों में गिनाती है।
समाजवादी पार्टी ने सत्ता में आने के 15 दिन बाद गन्ना मूल्य भुगतान, लखीमपुर केस में किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने, किसान आंदोलन के दौरान मृतक किसानों को शहीद का दर्जा और उनके परिवारों को 25-25 लाख रुपये देने, स्मारक बनवाने के अलावा मुफ्त सिंचाई, मुफ्त बिजली का वादा किया है। इस पार्टी ने आवारा पशुओं की समस्या के समाधान का भी भरोसा दिलाया है।
इसी तरह कांग्रेस ने किसानों का पूरा कर्ज माफ करने, बिजली बिल आधा करने और मछली पालन को कृषि का दर्जा देने का वादा किया है। राष्ट्रीय लोक दल ने किसान सम्मान निधि की राशि दोगुनी करने और किसान आंदोलन में शहीद किसानों के स्मारक बनाने और आप ने एमएसपी गारंटी लागू करने के साथ-साथ 300 यूनिट बिजली मुफ्त करने और पुराने बिल माफ करने का वादा किया है।
पूर्वांचल की खेती-किसानी की ये हैं बड़ी चुनौतियां
खेती-किसानी के परम सत्य डिज़िटल संवाद में पूर्वांचल यानी पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर के किसान परिवार के युवा सदस्य मनोज कुमार का कहना है कि चुनाव में किसानों से बड़े-बड़े वादे तो सभी दल करते ही हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद उन वादों पर अमल नहीं करते, जिससे किसानों की मुश्किलें बनी की बनी रह जाती हैं। मनोज कुमार का कहना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर किसानों के पास छोटी जोत की ज़मीनें हैं। यहां बीघे-दो बीघे से लेकर चार-पांच बीघे ज़मीन पर खेती-किसानी से इतनी कमाई नहीं हो पाती कि किसान परिवार कुछ अलग करने की सोच सके। गाज़ीपुर जैसे इलाके में किसी विकसित मंडी का न होना, जागरुकता की कमी और प्रगतिशील खेती की ओर किसानों का रुख न होने को खेती के पिछड़ेपन की बड़ी वजह बताते हैं। उनका कहना है कि जब खेती से पेट भरने लायक भी नहीं आमदनी हो पाती तो फिर पलायन ही करेंगे लोग और जब युवाओं का पलायन लगातार हो रहा है तो फिर खेती बुजुर्गों और महिलाओं के सहारे ही चल रही है।
आवारा पशुओं से खेतों की रखवाली बहुत बड़ी समस्या
मनोज कुमार का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या आवारा पशुओं से खेतों की रखवाली करनी होती है और इन दिनों सर्दियों के मौसम में ये बेहद मुश्किल भरा काम है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत के किसान विनीत चौहान के मुताबिक निश्चित रूप से आवारा पशुओं की समस्या विकराल है, लेकिन इसे सिर्फ़ सरकार के भरोसे छोड़ने से कभी समाधान नहीं मिल सकता। विनीत चौहान का कहना है कि इसके लिए हर गांव को पहल करनी होगी, किसानों को पहल करनी होगी और सरकार, सिस्टम के साथ सहयोग से गौशालाएं बनानी होंगी, उनका रख-रखाव करना होगा।
विनीत चौहान ने खेती-किसानी का परम सत्य डिज़िटल संवाद में बताया कि एक ही फसल पर बहुत ज़्यादा निर्भरता से किसानों की आय नहीं बढ़ेगी क्योंकि मांग से ज़्यादा आपूर्ति होने पर कीमत नहीं बढ़ सकती। खपत के मुताबिक फसल लगाने की ओर किसानों को सोचना होगा। विनीत चौहान खुद एमबीए हैं और बताते हैं कि जब उन्होंने खेती में हाथ आजमाने की सोची तो सबको हैरानी होती थी। उनका कहना है कि शिक्षितों को, युवाओं को ये शुरुआत तो करनी ही होगी। परिवार की 14 बीघे की ज़मीन में 7 बीघे में उन्होंने बागवानी की है और बाकी में अलग-अलग फसल लगाते हैं, जबकि उनके इलाके में ज़्यादातर किसान गन्ना लगाते हैं।
विनीत चौहान का कहना है कि सहकारी कृषि की ओर किसानों को बढ़ना होगा और नए तरीके अपनाने होंगे, जैसे सरसों तेल की कीमत ज़्यादा है तो कच्ची घानी कोल्हू जैसी कम लागत के उद्यम लगाने से किसानों की आय बढ़ सकती है।