हार न मानने का जज़्बा, कठिन परिस्थितियों से लड़कर खेती से अपनी पहचान बनाने वाले शिव कुमार मौर्य के बारे में आज हम आपको बताएंगे। एक वक़्त पर सरकारी विभाग में कॉन्ट्रेक्ट पर काम करने वाले शिव कुमार मौर्य की जब नौकरी चली गई तो वो डिप्रेशन में चले गए थे। ये वो दौर था, जब पूरे घर की ज़िम्मेदारी भी उनके कंधों पर ही थी। उन्होंने हार नहीं मानी और खेती को अपनी कर्मभूमि चुना। आज वो एक सफल एग्री-बिज़नेस चला रहे हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से ख़ास बातचीत में उन्होंने अपने खेती के अनुभवों पर खुलकर बात की।
उत्तर प्रदेश में गोंडा ज़िले के ब्लॉक वज़ीरगंज के रायपुर गांव के रहने वाले शिव कुमार मौर्य आज एक प्रगतिशील किसान हैं। उन्हें कई अवॉर्डस से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके पीछे उनकी कई सालों की अथक मेहनत और दृढ संकल्प है।
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले शिवकुमार ने एमकॉम की डिग्री ली हुई है। वो किसान परिवार से ही ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता पेशे से अकाउंटेंट थे। कुछ परिस्थितियों की वजह से उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। शिव कुमार मौर्य ने बताया कि उनके पिता को खेती से लगाव था और भूगोल विषय पसंद था। उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में पौधों का विकास करने में रुचि थी। इसी लगाव के चलते उन्होंने अपनी एक एकड़ ज़मीन पर नारियल, लौंग, इलायची, हींग, तेज पत्ता जैसे 250 तरह के अलग-अलग पेड़-पौधे लगाए। शिव कुमार मौर्य ने बताया कि लोग कहते थे कि यहां नारियल नहीं हो सकता, लेकिन उनके पिता को नए-नए प्रयोग करते रहना पसंद था। 20 साल के इंतजार के बाद पेड़ में नारियल के फल दिखने लगे।
संघर्ष ने और मजबूत किया
2007 में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद वो दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, कानपुर जैसे कई बड़े शहरों में नौकरी की तलाश में गए, लेकिन कहीं भी ढंग की जॉब नहीं मिल पाई। 2010 में न्यूज़पेपर में श्रम विभाग में भर्ती को लेकर एक ऐड छपा था। उन्होंने ऑनलाइन आवेदन कर दिया और उनका सिलेक्शन भी हो गया। वो जॉब करने लगे। इसके बाद भारतीय सर्वेक्षण विभाग में भी भर्ती के लिए ऐड निकला हुआ था। यहाँ पर भी उनका सिलेक्शन हो गया। पहले मेरठ, पुणे और फिर फ़ैज़ाबाद उनका ट्रांसफर हुआ। लेकिन फ़ैज़ाबाद में जॉइनिंग के वक़्त उन्हें मना कर दिया गया। उनकी जॉब छूट गई। इससे शिव कुमार मौर्य आहत हुए। डिप्रेशन से जूझे। कोलकाता में एक प्राइवेट कंपनी में उनकी जॉब तो लग गई, लेकिन वो उससे खुश नहीं थे। फिर उन्होंने वापस अपने गाँव जाने का फैसला किया। परिवार खेती से जुड़ा था, तो खेती को ही अपनी आजीविका बनाने के सफर पर वो निकल पड़े।
कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आए
उन्होंने गोंडा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र जाना शुरू किया। खेती की उन्नत तकनीकों और प्रयोगों के बारे में जानकारी ली। कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से उन्हें मोबाइल पर भी नयी जानकारियां मैसेज के ज़रिए मिलतीं। यहीं से उन्हें कृषि निवेश मेले के आयोजन के बारे में पता चला। यहाँ शिवकुमार को सरकार की फ़ार्म मशीनरी बैंक योजना के बारे में पता चला। इस योजना के तहत किसानों को 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी पर कृषि यंत्र दिए जाते हैं। शिव कुमार मौर्य ने इस योजना के बारे में और जानकारी इकट्ठा करने के बाद आवेदन कर दिया। इससे उन्हें काफ़ी मदद मिली।
इसी दौरान उन्हें कृषि वैज्ञानिक धर्मवीर कंबोज के बारे में पता चला। हरियाणा के रहने वाले धर्मवीर कांबोज एक प्रगतिशील किसान हैं। उन्होंने अपनी बनाई जुगाड़ की कई मशीनों से हज़ारों किसानों की मुश्किलें हल की हैं। उनका खुद का कारोबार आज लाखों में है और वो सफल उद्यमी और किसान ट्रेनर हैं। शिव कुमार मौर्य उनसे मिलने के लिए उनके गांव दामला, हरियाणा पहुंचे। उन्होंने वहाँ पहुंचकर उनकी आधुनिक तकनीकों के बारे में जाना।
मल्टी-पर्पज फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन लगाई
धर्मवीर कंबोज ने एक मल्टी-पर्पज फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन भी बनाई हुई है। इस मशीन की मदद से फूल, सब्जियां और औषधि को प्रोसेस करके जूस, जैल जैसे उत्पाद तैयार किये जा सकते हैं। धर्मवीर कांबोज से मिलने के बाद शिव कुमार ने आधुनिक खेती शुरू की। उन्होंने अपने खेत में परवल, पपीता, सहजन, एलोवेरा आदि के साथ-साथ करीब 250 तरह के पेड़-पौधे लगाए हुए हैं। इसके साथ ही उन्होंने मल्टी पर्पज फ़ूड प्रोसेसिंग की मशीन भी लगाई है, जिससे वो तरह-तरह के उत्पाद तैयार करते हैं।
एलोवेरा से पल्प, जूस, जैल और साबुन जैसे प्रॉडक्ट्स बनाते हैं। इसके अलावा अचार, मुरब्बा, जैम जैसे खाद्य उत्पाद भी वह तैयार करते हैं और बाज़ार तक पहुंचाते हैं। मोरिंगा पाउडर और सहजन का साबुन, उनके इन प्रॉडक्ट्स की भी अच्छी डिमांड है।
खेती ने बहुत कुछ दिया
शिवकुमार ने फ़ूड प्रोसेसिंग के अलावा नर्सरी भी बना रखी है। इस नर्सरी में वो आम, नींबू, परवल और पपीते के पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध करवाते हैं। शिव कुमार मौर्य कहते हैं कि उन्हें खेती ने बहुत कुछ दिया है। अगर सालाना कमाई की बात करें तो उन्हें 5 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है।
शिव कुमार मौर्य ने बताया कि उनके क्षेत्र में आवारा पशुओं की समस्या है। इसके लिए उन्होंने अपने 4 एकड़ के खेत के चारों तरफ बाड़ लगा रखी है। वो सब्जी, फल और औषधीय पौधों की खेती करते हैं। परवल, कुंदरू, बीन्स, लोबिया, आलू, चुकंदर, गाजर, लहसुन, टमाटर, नींबू, पपीता, एलोवेरा मुख्य उपज हैं।
रेड लेडी पपीते की खेती
शिव कुमार मौर्य पपीते की रेड लेडी किस्म की खेती करते हैं। इसके एक पौधे से 100 किलोग्राम तक पपीता पैदा होता है। शिव कुमार मौर्य ने बताया कि इसमें नर पौधों की संख्या नहीं होती। इसे 7 से 10 दिन भी रखें तो इसका फल जल्दी खराब नहीं होता।
इस वैरायटी में नर (मेल) व मादा (फीमेल) के गुण एक ही पौधे में होते हैं। इससे पौधे से पूरी तरह उत्पादन मिलने की संभावना होती है। पपीते की अन्य किस्मों में नर व मादा अलग-अलग होते हैं और कौन सा पौधा नर है और कौन सा पौधा मादा है, इसकी पहचान कर पाना तब तक संभव नहीं, जब तक पौधे पर फूल न लग जाए।
आज की तारीख में शिव कुमार की मेहनत इतनी रंग लाई है कि दूर-दूर से किसान उनका फ़ार्म देखने आते हैं। उन्हें कई कार्यक्रमों में उनके अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इसके साथ ही शिवकुमार लोगों को ट्रेनिंग भी दे रहे हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
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