बायोगैस प्लांट (Biogas Plant): ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में मिलाकर आज भारत में लगभग 250 लाख पशुधन है। इस पशुधन से प्राप्त होने वाला अपशिष्ट लगभग 1200 लाख टन होता है। इस अपशिष्ट को कई कामों में लिया जा सकता है। लेकिन अभी तक इसका उपयोग खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है। इस कारण बड़ा हिस्सा बेकार हो जाता है। जिसे बायोगैस संयंत्र द्वारा प्रभावी रूप से संसाधित किया जा सकता है।
बायोगैस (Biogas) एक ऐसा संयंत्र है, जो पशुओं से प्राप्त होने वाले अपशिष्ट का सही तरीके से प्रबंधन करता है और ग्रामीण भारत के लिए ऊर्जा का उत्पादन करता है।
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क्या है बायो गैस
यह ऐसी गैस होती है, जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैविक सामग्री के विघटन से उत्पन्न होती है। इस पशुओं के अपशिष्ट पदार्थों से पैदा किया जा सकता है। बायोगैस प्लांट का उपयोग गांवों में खाना पकाने हेतु ईंधन और रोशनी की व्यवस्था करने के लिए किया जाता है। बायोगैस तकनीक के बाद अच्छी क्वालिटी की खाद प्राप्त होती है जो सामान्य खाद से ज्यादा बेहतर होती है।
इस गैस का उत्पादन जैविक प्रक्रिया (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) द्वारा किया जाता है, यही कारण है कि इसे जैविक गैस भी कहा जाता है। बायोगैस में मीथेन 55-75 प्रतिशत, कार्बनडाइऑक्साइड 25-50 प्रतिशत, हाइड्रोजन 0-3 प्रतिशत, नाइट्रोजन 1-5 प्रतिशत, हाइड्रोजन सल्फाइड 0.1-0.5 प्रतिशत, कार्बन मोनोऑक्साइड 0-0.3 प्रतिशत, आॉक्सीज 0.0 प्रतिशत तक पाई जाती है।
आइए जानते हैं बायोगैस प्लांट के प्रकार और फायदों के बारे में-
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बायोगैस संयंत्र के कई भाग होते हैं
बायोगैस डाइजेस्टर
यह जमीन के नीचे बनाया जाता है। इसे दो भागों में बांटा जाता है। इसमें गोबर व पानी के घोल का किण्वित होता है। यह बायोगैस का बेहद महत्त्वपूर्ण भाग है। फीडिंग के आधार पर इसे दो भागों में बांटा जाता है।
1. बैचडाइजेस्टर
इसको चलाने और स्लरी भरने के लिए ज्यादा मजदूरों की आवश्यकता होती है। एक बार स्लरी भरने के बाद इसे बंद कर देते हैं। फिर इसके खाली होने तक स्लरी का उपयोग किया जाता है।
2. प्रवाह-माध्यमडाइजेस्टर
इसमें स्लरी को लगातार डाइजेस्टर में मिलाना पड़ता है। खासकर जब मिथेन गैस का उत्पादन शुरू हो जाए। इसमें भी स्लरी और मजदूरों की ज्यादा तादाद में जरूरत होती है।
बायो गैस डाइजेस्टर दो प्रकार का होता है।
1. फिक्स डोम टाईप डाइजेस्टर
इसे धरती में स्थाई रूप से लगाया जाता है। इसके ऊपर के हिस्से में गैस एकत्रित होती है। डाइजेस्टर की क्षमता 20 घन मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
2. लोटिंग ड्रम टाईप डाजेस्टर
यह ड्रम स्लरी के ऊपर घूमता रहता है। गैस ऊपर के भाग में एकत्रित होती रहती है इससे ड्रम ऊपर की ओर उठने लगता है। गैस कम होने पर यह फिर से नीचे की तरफ आने लगता है।
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मिक्सिंग टैंक – इसका उपयोग गोबर को पानी के साथ अच्छी तरह घोलने के लिए किया जाता है।
गैस डोम – इसका आकार ड्रम जैसा होता है। इसे डाइजेस्टर पर उल्टा फिक्स किया जाता है। इसके ऊपर एक गैस होल्डर लगा होता है जो स्टोव में जुड़ा होता है। जब गैस बनना शुरू होती है तो वो डोम में एकत्रित हो जाती है। फिर स्टोव द्वरा होल्डर तक पहुंचती है।
ओवर लो टैंक – इसके द्वारा डाइजेस्टर में तैयार घोल को बाहर निकालने का काम किया जाता है।
पाइप लाइन – जहां जरूरत हो वहां गैस का वितरण करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
बायो गैस संयंत्र लगाने हेतु आवश्यक बातें
- संयंत्र के पास पानी की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए।
- निर्माण में लगने वाली सामग्री संयंत्र के पास उपलब्ध होनी चाहिए।
- अपशिष्ट के लिए पशुओं की उपलब्धता पर्याप्त होना आवश्यक है।
- बायोगैस संयंत्र वहां स्थापित किया जाना चाहिए जहां पशुओं के अपशिष्ट की पर्याप्त मात्रा प्राप्त हो सके।
- बायोगैस में होने वाला उत्पादन तापमान पर निर्भर करता है। जन क्षेत्रों की ऊंचाई समुद्र तल से 2,000 मीटर से अधिक हो वहां बायोगैस संयंत्र नहीं लगाना चाहिए।
बायोगैस प्लांट से होने वाले लाभ
- बायोगैस प्लांट से पर्यावरण को नुकसान नहीं होता।
- इससे खाना पकाने में उपयोग होने वाली लकड़ी की मात्रा को भी कम किया जा सकता है।
- बायोगैस प्लांट से खाना बनाते समय धुआं नहीं निकलता।
- इससे अच्छी क्वालिटी की खाद मिलती है, जो फसलों के लिए लाभदायक होती है।