कई बार फसल की अच्छी कीमत न मिलने से किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। उनकी सालभर की मेहनत पर पानी फिर जाता है। ऐसे में एग्रो प्रोसेसिंग यूनिट यानी कृषि प्रसंस्करण ईकाई उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकती हैं। इसके ज़रिए वह अपने कृषि उत्पादों से मूल्यवर्धित उत्पाद बनाकर मुनाफ़ा कमा सकते हैं। एग्रो प्रोसेसिंग कॉम्प्लेक्स बनाकर 34 साल के रणधीर सिंह धानीवल अपने गांव के लिए एक उदाहरण बनकर सामने आए हैं। इस लेख में आप जानेंगे कि अपने क्षेत्र में इसे कैसे लगा सकते हैं?
एग्रो प्रोसेसिंग सेंटर क्या है?
सिर्फ़ खेती से किसानों को पर्याप्त आय नहीं हो पाती है, ऐसे में उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए एग्रो प्रोसेसिंग सेंटर एक अच्छा विकल्प बनकर सामने आया है। एग्रो प्रोसेसिंग सेंटर में अनाज को संसाधित करने का काम किया जाता है। इसमें ग्राम स्तर पर प्रोसेसिंग यानी प्रसंस्करण के लिए दो या अधिक मशीनें लगाई जाती हैं। इन मशीनों में मिनी राइस मिल, बेबी ऑयल एक्सपेलर (baby oil expeller) के साथ छानने के लिए सिस्टम और स्कोअरिंग मशीन (scouring machine) शामिल है। इसके साथ ही छोटी आटा चक्की और बड़ी आटा चक्की, मसाला ग्राइंडर, पेन्जा (penja), क्लीनर और फीड मिल भी शामिल है।
मशीनों के साथ कंस्ट्रक्शन और इन्हें स्थापित करने में कुल 25-30 लाख रुपए की लागत आती है। साथ ही इनके लिए करीब 200-300 स्क्वायर यार्ड (वर्ग गज) जगह की ज़रूरत होती है। एग्रो प्रोसेसिंग कॉम्पलेक्स तकनीकी और आर्थिक रूप दोनों में ही मददगार है। पोस्ट-हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (Post-Harvesting Engineering and Technology) और अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (All India Coordinated Research Project) ग्रामीण स्तर पर इसके लिए तकनीकी जानकारी और सलाह देता है।
रणधीर सिंह धालीवल ने गांव में बनाई कृषि प्रसंस्करण ईकाई
रणधीर सिंह धालीवल को मोगा जिले के लांडे गांव का दौरा करने के दौरान एग्रो प्रोसेसिंग सेंटर के बारे में पता चला। यह इकाई पंजाब कृषि विश्वविद्यालय पर एआईसीआरपी केंद्र (AICRP Centre) द्वारा स्थापित की गई थी। धालीवल ने इसी केंद्र पर प्रशिक्षण लिया और उन्होंने अपने गांव में इसे स्थापित करने का फैसला किया।
वैज्ञानिकों से ली मदद
यूनिट का लेआउट और डिज़ाइन को सेंटर के वैज्ञानिकों की सलाह पर बनाया गया। उन्होंने इसे ठीक तरह से काम करने, उत्पादों की मार्केटिंग और खाद्य सुरक्षा बनाए रखने के लिए भी विशेषज्ञों से सलाह और प्रेरणा मिली। उन्होंने जो मशीने स्थापित की उसमें शामिल हैं –
- फिल्ट्रेशन सिस्टम के साथ बेबी ऑयल एक्सपेलर
- आटा चक्की
- 150 किलोग्राम प्रति घंटा क्षमता की दाना चक्की
- दलिया बनाने की मशीन
- 700 किलोग्राम प्रति घंटा क्षमता की आटा चक्की
- ग्राइंडर
इसे स्थापित करने में उन्हें 6 महीने का समय लगा। उन्हें इसके लिए 10 लाख 14 हज़ार रुपए की लागत आई। इसके बदलें उन्हें 86,025 रुपए का मासिक लाभ हो रहा है। उन्होंने अपने कॉम्प्लेक्स में 6 लोगों को रोज़गार भी दिया है। उनके प्रोसेस्ड उत्पादों में गेहूं का आटा, फिल्टर किया हुआ तेल, दलिया, पिसी हल्दी, बेसन, गरम मसाला आदि शामिल है। वह सफलतापूर्वक अपना व्यवसाय चला रहे हैं और उनका ये केंद्र 15 गावों को कवर करता है। तीन सालों के अंदर ही उन्होंने अपने सारे लोन चुकता कर दिए और अब अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। पंजाब के बहुत से किसान एग्रो प्रोसेसिंग यूनिट को सफलतापूवर्क स्थापित करके लाभ कमा रहे हैं।
फसल को नुकसान से बचाता है
फसल कटने के बाद कई बार अच्छे दाम न मिलने से किसानों को नुकसान होता है, ऐसे में अनाज से मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने पर उन्हें नुकसान का डर नहीं रहेगा। इसके साथ ही फसल के लिए खरीदार ढूंढ़ने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इससे ग्रामीण स्तर पर रोज़गार भी बढ़ेगा।
सरकार की योजना
कृषि उपज की बर्बादी को कम करने, प्रोसेसिंग लेवल को बढ़ाने और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने प्रधान मंत्री किसान संपदा योजना (PradhanMantri Kisan Sampada Yojana) लागू की है। इसकी अवधि 2025-26 तक बढ़ा दी गई है। इस योजना के तहत किसानों की मदद के लिए सरकार ने 4,600 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है।
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