डिजिटलाइजेशन के इस दौर में खेती को भी डिजिटल करने की कोशिश जारी है। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) की ओर से दिल्ली में पूसा कृषि विज्ञान मेले का आयोजिन किया गया। जिसमें खेती में ड्रोन के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया गया। साथ ही मेले में मौजूद विशेषज्ञों ने बताया कि कैसे ड्रोन के इस्तेमाल से कीट नियंत्रण, सिंचाई करने के साथ ही खाद की ज़रूरत, कीटनाशकों का स्प्रे किया जा सकता है।
खेती में ड्रोन के इस्तेमाल के फ़ायदे
ड्रोन का इस्तेमाल खेती के साथ ही उससे जुड़ी अन्य गतिविधियों जैसे पशु पालन, मछली पालन आदि में भी किया जा सकता है। इससे लागत कम करके मुनाफा बढ़ाने में मदद मिलेगी। मेले में मौजूद विशेषज्ञों ने किसानों को ड्रोन के फायदे गिनाए, जिससे वह इसे अपनाने के लिए प्रेरित हों। ड्रोन में कई सेंसर लगे होते हैं, जिनकी मदद से वह काम करता है।
कैसे काम करता है ड्रोन?
मेले में मौजूद कई विशेषज्ञों ने किसानों को ड्रोन के काम करने की प्रणाली भी समझाई। यह डिजिटल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से काम करता है। सबसे पहले ड्रोन में लगा सेंसर मिट्टी कैसी है, पौधे किस तरह के हैं और उनकी क्या ज़रूरत है, उनकी आंतरिक संरचना के साथ ही यदि किसी तरह की समस्या हैं, तो उसके बारे में भी जानकारी जुटाता है। फिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) की मदद से इस डेटा का विश्लेषण करके समाधान करता है। मान लीजिये, अंगूर की फसल में किसी तरह की बीमारी लग गई, तो यह अचानक से पूरी फसल में नहीं होती है। शुरुआत किसी एक जगह से होती है। ऐसे में ड्रोन की मदद से उस जगह की पहचान करके सिर्फ उसी जगह और उसके आसपास कीटनाशकों का छिड़काव किया जाए। पूरे खेत में इसे छिड़कने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। इसी तरह ड्रोन में लगा सेंसर उपज और मिट्टी के हिसाब से काम करता है। मान लीजिये, आपने कई एकड़ में खेती की हुई है तो हर एकड़ की उपज क्षमता अलग-अलग होती है। ऐसे में पूरे खेत में एक समान खाद डालने की ज़रूरत नहीं है। अगर मैन्युअली काम करेंगे, तो पूरे खेत में एक समान ही खाद डालेंगे। इसके विपरीत ड्रोन पता लगा लेता है कि किस जगह की उपज क्षमता कितनी है और और इसके आधार पर ही वो खाद का छिड़काव करेगा।
खेती की पूरी प्रक्रिया में ड्रोन का इस्तेमाल
ड्रोन का इस्तेमाल बुवाई से पहले मिट्टी की क्षमता और गुणवत्ता का पता लगाने के लिए किया जाता है। बीज बोने के साथ – साथ, ये खाद और कीटनाशकों के छिड़काव में भी यह मदद करता है। पौधों में किसी तरह का रोग या कीट लग जाए तो ड्रोन तुरंत पहचान करके उपचार करता है। इससे बीमारी का प्रबंधन जल्दी हो जाता है और फसल बर्बाद होने से बच जाती है। इसके साथ ही यह फसल की कटाई का सही समय भी बताता है। यही नहीं, यह पॉलिनेशन की प्रक्रिया में भी सुधार लाने में मदद करता है। यानी ड्रोन किसानों का सच्चा साथी साबित हो सकता है।
लागत कम होने से बढ़ेगी आमदनी
ड्रोन के इस्तेमाल से कृषि लागत में कमी आएगी और पानी की भी बचत होगी। मेले में मौजूद विशेषज्ञों का कहना है कि ड्रोन के इस्तेमाल से कीटनाशकों का छिड़काव सिर्फ प्रभावित पौधों पर ही किया जाता है। इससे कीटनाशक की खपत कम होगी और कीटनाशकों के अतिरिक्त अवशेष फसल में नहीं बचेंगे। दरअसल, कीटनाशकों का अधिक इस्तेमाल फसल और इंसान दोनों की सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है और ड्रोन इससे बचाव में सहायक होंगे। इसके अलावा समय की भी बचत होगी। एक एकड़ भूमि में सिर्फ 5 मिनट में ही ड्रोन कीटनाशक का छिड़काव कर सकता है। मैन्युअली एक एकड़ में कीटनाशक डालने के लिए करीब 200 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है, जबकि ड्रोन में सिर्फ 6-8 लीटर ही पानी लगता है। यही नहीं, यह अधिक प्रभावी तरीके से पौधों में कीटनाशकों का छिड़काव करता है ताकि वह सिर्फ ऊपरी भाग तक ही सीमित न रहें, बल्कि अंदर तक जाकर कीटों का खात्मा करें।
एक्सपोर्ट में होगा सुधार
कई बार फसलों में कीटनाशकों के अवशेष होने की वजह से एक्सपोर्ट के समय दिक्कत आती है, लेकिन ड्रोन के इस्तेमाल से यह समस्या भी हल हो जाएगी। यह कीटनाशकों का कम लेकिन प्रभावी इस्तेमाल करके, फसलों को कीट/रोगों से बचाता है और उत्पादन भी अधिक होता है। यानी एक्सपोर्ट के लिए मिलता है साफ़ सुथरा और ज़्यादा मात्रा में अनाज।
मिट्टी की नमी और सिंचाई में मदद
ड्रोन में लगा सेंसर मिट्टी की नमी मापने में भी मदद करता है, जिससे आप पता लगा सकते हैं कि किसी फसल को कितनी सिंचाई की ज़रूरत है। हर फसल की पानी की ज़रूरत अलग-अलग होती है, साथ ही यह बहुत हद तक मिट्टी की नमी पर भी निर्भर करती है। ड्रोन नमी का पता लगाता है जिससे आपको नम मिट्टी में ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होगी। इस तरह से पानी की भी बचत होगी।
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