वैसे तो सभी लोगों की ज़िन्दगी में संघर्ष की कहानियाँ होती हैं। लेकिन यही कहानियाँ जब सामान्य से असाधारण बनती हैं तो मिसाल बन जाती हैं। खेती-किसानी की दुनिया में महिलाएँ शायद पुरुषों से ज़्यादा बड़ी भूमिकाएँ निभाती हैं, लेकिन भोपाल के बकनिया गाँव की रीना नागर ने ट्रैक्टर और हार्वेस्टर जैसी खेती की मशीनें चलाने का हुनर सीखकर और अपनाकर उस क्षेत्र में अपनी ख़ास पहचान बनायी जिसमें आम तौर पर मर्दों का दबदबा है।
रीना की कहानी का सबसे दर्दनाक मोड़ साल 2014 में उस वक़्त आया, जब उसके पिता जमुना प्रसाद की एक हादसे में मौत हो गयी। रीना तब 18-19 साल की थी। कम्प्यूटर साइंस में इंज़ीनियरिंग की पढ़ाई की पहले वर्ष की छात्रा थी। पिता का कृषि उपकरणों का कारोबार था और गाँव में खेती-किसानी भी वहीं सम्भालते थे। परिवार में माँ और दादी के अलावा चार छोटी बहनें और एक भाई भी था।
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परिवार पर 30 लाख का कर्ज़
अचानक परिवार के मुखिया और इकलौते कमाने वाले का साया परिवार से उठ जाने का सबसे ज़्यादा असर प्रतिभावान रीना नागर पर पड़ा। पिता के निधन के बाद दो-चार महीने तक तो परिवार का गुज़र-बसर उनकी बचत और कर्ज़ों से हुआ लेकिन अब तक रीना जान चुकी थी कि कारोबार वग़ैरह की वजह से परिवार पर 30 लाख रुपये का कर्ज़ है। ऐसे हालात ने रीना को ‘करो या मरो’ की उस दशा में पहुँचा दिया, जिससे देखते ही देखते रीना एक कोमलांगी युवती से तब्दील होकर एक मेहनतकश और जुनूनी ‘कमाऊ पूत’ बनती चली गयी।
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खेती-किसानी से बदली परिवार की तस्वीर
रीना ने ना सिर्फ़ पिता के कारोबार को बल्कि परिवार की खेती-किसानी को भी बख़ूबी सम्भाला। छोटे-भाई बहन की पढ़ाई-लिखाई का ज़िम्मा उठाया तो माँ और दादी की ताक़त बनी। इसी दौरान रीना ने ट्रैक्टर और हार्वेस्टर चलाना सीखा। खेती-किसानी की बारीकियाँ सीखीं। आज उसके पास पिता की विरासत से मिली करीब 7 एकड़ ज़मीन के अलावा 15 एकड़ का बटाई का भी रक़बा है। शिक्षित रीना नागर इस ज़मीन पर मौसमी खेती करने पर अपना पूरा ज़ोर लगाती है, क्योंकि इसमें कमाई अच्छी होती है।
अब भाई का भी साथ
अब रीना 25 साल की हो चुकी है। अब उसका भाई वीरेन्द्र नागर भी स्नातक हो चुका है और वो भी दीदी की ज़िम्मेदारियों में जमकर हाथ बँटाता है। पिता के ज़माने का 30 लाख रुपये का कर्ज़ अब तक चुकाया जा चुका है। खेती-किसानी के अलावा पिता का कारोबार-व्यावसाय भी पटरी पर है। रीना की दूरदर्शिता, मेहनत, निष्ठा और समर्पण की वजह से अब सारा परिवार ख़ुशहाल ज़िन्दगी जी रहा है। ज़ाहिर है, रीना की इस कहानी पर, उसके अथक संघर्ष पर अब न सिर्फ़ परिवार गर्व करता है, बल्कि पूरे गाँव और ज़िले में उसकी तारीफ़ होती है, उसकी मिसाल दी जाती है।