कहते हैं न कि दिल में कुछ करने का जज़्बा हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं, कुछ ऐसा ही दिल्ली की अतिथि पोपली के साथ हुआ। शहर में रहने के बावजूद जैविक खेती (Organic Farming) में उनकी बहुत दिलचस्पी है और इसलिए तो वो अपने पूरे परिवार को घर पर उगाई हुई ताज़ी और शुद्ध सब्ज़ियां खिला रही हैं।
अतिथि गमले और घर के पास की छोटी सी ज़मीन पर ही लगभर हर तरह की सब्ज़ियां और रोज़ाना इस्तेमाल में आने वाली जड़ी-बूटियां उगाती हैं। वैसे तो वो 25 सालों से किचन गार्डनिंग कर रही हैं, मगर पिछले सात सालों से पूरी तरह से ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग को उन्होंने अपनाया है। उन्होंने अपने इस सफ़र के बारे में बात की किसान ऑफ़ इंडिया की संवाददाता इंदु कश्यप से।
कौन-कौन सी सब्ज़ियां और जड़ी-बूटी उगा रही हैं?
अतिथि पोपली बताती हैं कि वो रोज़मर्रा में काम आने वाले एलोवेरा, ब्राह्मी, गिलोय, मोरिंगा जैसे कई हर्ब्स अपने किचन गार्डन में उगाती हैं। सब्ज़ियों में सीज़न के हिसाब से वो खेती करती हैं। गर्मियों में लौकी, तोरी, खीरा, टींडा, करेला। पालक, मेथी, धनिया, सरसों, चुकंदर जैसी सब्जियां उगाती हैं। ये सब वो गमले में या छोटी सी ज़मीन पर उगाती हैं। उनका कहना है कि इससे उनके घरवाले भी खुश रहते हैं, क्योंकि उन्हें स्वादिष्ट सब्ज़ियां मिलती हैं।
देसी खेती की शुरुआत कैसे की?
अतिथि बताती हैं कि वो आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था से जुड़ी हैं। जब वो योग के लिए संस्था से जुड़ी तब उन्हें एक ऑर्गेनिक फार्मिंग करने वाली संस्था के बारे पता चला। वहां से ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने जैविक खेती पद्धति को अपनाकर खेती करना शुरू किया। अब पिछले सात सालों से वो पूरे कुदरती तरीके से सब्जियां उगा रही हैं और साथ ही बीज भी तैयार करती हैं।
देसी बीज और खाद का इस्तेमाल?
अतिथि का मानना है कि देसी बीज के इस्तेमाल से किसी भी तरह की सब्ज़ियां आसानी से उगाई जा सकती हैं। उनका कहना है कि देसी गाय के गोबर से बनी खाद और गोमूत्र से तैयार दवाइयों के इस्तेमाल से खेती आसान हो जाती है। वो बताती हैं कि वो कोई भी खाद बाज़ार से नहीं खरीदती हैं, क्योंकि जैविक खेती में खाद घर पर ही तैयार की जाती है। जैसे किचन वेस्ट से कई खाद बनाई जा सकती हैं।
इसके अलावा, देसी गाय के गोबर से भी कई तरह की खाद बनाई जाती है। इन सबका इस्तेमाल थोड़े-थोड़े दिनों के अंतराल पर करना चाहिए। इसके अलावा गोमूत्र, बेसन, गुड़ से भी कई तरह की खाद बनाई जाती है। कुछ खाद जल्दी खराब हो जाते हैं, जबकि कुछ महीनों तक चलती हैं। इसके अलावा, गर्मियों के मौसम में छाछ से बनी खाद पौधों के लिए फ़ायदेमंद होती हैं। छाछ को मिट्टी के बर्तन में 15 से 20 दिनों के लिए रखा जाता है और फिर पौधों में डालते हैं।
अतिथि पोपली महिलाओं, युवाओं और बच्चों को कीचन गार्डन की ट्रेनिंग भी देती हैं। ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरीके से लोग उनके पास ट्रेनिंग के लिए आते हैं। कीचन गार्डन की इस ऑर्गेनिक खेती की ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि पौधों में सादा पानी नहीं डालना चाहिए। बल्कि कुदरती रूप से तैयार दवाएं डालनी चाहिए। इसे बनाने का तरीका ट्रेनिंग के दौरान बताया जाता है, जैसे जीवामृत, घनजीवामृत सूखी खाद होती है। इसे बरसात में पौधों में डाला जाता है, जब पानी डालने की ज़रूरत नहीं होती।
गोबर के गमले
अतिथि मिट्टी के बड़े गमलों के साथ ही गोबर के गमलों में भी सब्ज़ियां उगा रही हैं। इस बारे में वो कहती हैं कि ये गमले देसी गाय के गोबर और जड़ी-बूटियां मिलाकर बनाई जाती हैं। 3 साल तक इसमें कोई भी सब्ज़ी उगाई जा सकती है और जब ये टूट जाए तो खाद बन जाती है। यानी किसी तरह का कचरा भी नहीं होता, जो पर्यावरण के लिए भी फ़ायदेमंद है।
किसानों की मदद
किसानों से सीधे बीज खरीदकर उनकी मदद कर रही हैं। वो पहले पता लगाती हैं कि कौन से किसान ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग कर रहे हैं, फिर उनसे संपर्क करके सीधा खेत से ही बीज खरीद लेती हैं। यही नहीं, वो बाकी किसानों को कुदरती खेती की जानकारी देकर उन्हें प्रोत्साहित भी करती हैं।
बहुत से लोगों को लगता है कि जड़ी-बूटियों को घर में उगाना आसान नहीं है, मगर अतिथि पोपली का कहना है कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। तुलसी, बेसिल, एलोवेरा, गिलोय और मोरिंगा जैसी जड़ी बूटियां आसानी से छोटी सी जगह में भी उगाई जा सकती हैं। मोरिंगा से कई तरह की दवाएं भी बनती हैं और ये बहुत महंगी होती हैं, तो किसान एक बिज़नेस मॉडल के रूप में भी इसे अपना सकते हैं।