जैविक खेती (Organic Farming) का एक प्रमुख कारक है जैविक खाद। वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) से बढ़िया जैविक खाद (Organic Fertilizer) भला और क्या हो सकती है। तभी तो कई लोग सीधे तौर पर खेती से न जु़ड़कर खाद बनाने का काम करके जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं और ऐसे ही एक शख्स हैं नोएडा के राम पांडे। जो पिछले 2 सालों से वर्मीकम्पोस्ट यूनिट चला रहे हैं।
वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) के बिज़नेस से मुनाफ़ा कमाने के लिए किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है और अच्छी क्वालिटी की खाद कैसे बना सकते हैं, इन ज़रूरी मुद्दों पर राम पांडे ने विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।
60 बेड से की शुरुआत
राम पांडे नोएडा के पास मोहियापुर गांव में अपनी वर्मीकम्पोस्ट यूनिट चला रहे हैं, वो कहते हैं कि उनका लॉजिस्टिक का बिज़नेस हैं, जो आज भी चला रहे हैं। हालांकि, 2 साल पहले उन्होंने सोचा कि कुछ अलग बिज़नेस शुरू किया जाए ताकि एक में अगर नुकसान होता भी है तो दूसरे से उसकी भरपाई कर सके। उन्होंने श्री साकेत वर्मीकम्पोस्ट नाम से वर्मीकम्पोस्ट का बिज़नेस शुरू किया। शुरुआत उन्होंने सिर्फ़ 60 बेड से अपना व्यवसाय शुरू किया और आज उनकी यूनिट में 200 से भी ज़्यादा बेड हैं।
व्यवसाय को चुनने का मकसद
इस बिज़नेस को चुनने के पीछे की वजह बताते हुए राम पांडे कहते हैं कि इससे एक तो किसानों की मदद हो जाएगी और दूसरा पर्यावरण को भी फ़ायदा होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि जैविक खेती आज के समय की ज़रूरत है और जैविक खेती के लिए वर्मीकम्पोस्ट बहुत ज़रूरी है। वर्मीकम्पोस्ट में गोबर का इस्तेमाल होता है, तो डेयरी वाले ये किसान जिनके लिए गोबर का निपटान एक बड़ी समस्या होती है उनसे जब खाद के लिए गोबर खरीद लिया जाता है, तो उनकी समस्या हल हो जाती है और एक पौष्टिक खाद बनकर तैयार होती है।
क्या वर्मीकम्पोस्ट बनाने की ट्रेनिंग ज़रूरी है?
राम पांडे का कहना है कि इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए किसी ख़ास ट्रेनिंग की ज़रूरत नहीं होती। बस आपको थोड़ा सतर्क रहने और खुद को अपडेट रखने की ज़रूरत है। उनका कहना है कि उन्होंने खुद ये बिज़नेस शुरू करने से पहले कुछ वर्मीकम्पोस्ट यूनिट्स में जाकर लोगों से बात की और बिज़नेस को समझा। आज भी वो इस व्यवसाय से जुड़े लोगों से बात करते हैं, जिससे उन्हें नई-नई जानकारी मिलती रहती है।
उनका कहना है कि इस बिज़नेस को करने के लिए बस ये पता होना चाहिए कि कितनी नमी होनी चाहिए और केंचुए का रखरखाव कैसे करना है, क्योंकि केंचुआ इस व्यवसाय में बहुत ज़रूरी है। मान लीजिए 10 लाख का केंचुआ है, तो बाकी चीज़ें सिर्फ 2 लाख में हो जाएगी, इसलिए किसानों का मकसद केंचुओं को बचाने का होना चाहिए।
क्यों ज़रूरी है प्लास्टिक शीट?
इस बारे में राम पांडे कहते हैं कि पहले प्लास्टिक शीट इसलिए बिछाई जाती है ताकि केंचुआ मिट्टी में न चला जाए और प्लास्टिक के चारों ओर ईंटे इसलिए लगाई जाती है कि केंचुआ साइड से बाहर न निकल जाए। उनका कहना है कि अगर कोई किसान वर्मीकम्पोस्ट का बिज़नेस शुरू करना चाहता है तो अपने आसपास इस व्यवसाय से जु़ड़े लोगों से मिलकर बात करे। उन्हें पता चल जाएगा कि इससे जुड़ी सामग्री जैसे ईंटे, प्लास्टिक शीट, पराली आदि कहां से मिलती है।
कैसे बनती है जैविक खाद?
वर्मीकम्पोस्ट बनने की प्रक्रिया समझाते हुए राम पांडे बताते हैं कि पहले गोबर को एक जगह इकट्ठा किया जाता है। फिर उसमें पानी डाला जाता है ताकि उसकी गर्मी निकल जाए। फिर उसका बेड बनाया जाता है।
राम पांडे कहते हैं कि आमतौर पर लोग 30 फीट का बेड बनाते हैं, लेकिन किसी के पास अगर ज़्यादा जगह है तो 40 या 50 फ़ीट का भी बेड बनाया जा सकता है। अगर जगह कम है तो 20 फीट का भी बेड बनाया जा सकता है। बेड बनाने के बाद उसमें केंचुए डाले जाते हैं। केंचुए की मात्रा एक किलो प्रति स्क्वायर फ़ीट के हिसाब से डाली जाती है यानी 30 फीट के बेड के लिए 30 किलो केंचुए चाहिए।
इसके बाद ऊपर से बेड को पराली से ढक दिया जाता है और पानी डाला जाता है ताकि नमी बनी रहे। 30 दिन बाद पराली को हटाकर बेड को कुरेदा जाता है और धीरे-धीरे इसे हटाकर मशीन से छाना जाता है। दरअसल, पानी डालने के बाद जब गोबर गलने लगता है तो केंचुआ इसे खाता है और उसके बाद इसमें केंचुए के मल की परत जमने लगती है और वर्मीकंपोस्ट दरअसल में केंचुए का मल ही है। खाद 60 से 80 दिनों में बन जाती है और ये समय इस बात पर निर्भर करता है कि बेड में नमी कितनी है।
कम नमी होने पर समय ज़्यादा लगता है और केंचुए के मरने का भी खतरा रहता है। राम पांडे का कहना है कि खाद बनाने के लिए एसिना फेटिडा प्रजाति के केंचुए का इस्तेमाल किया जाता है।
मुनाफ़े के लिए किन बातों का रखें ध्यान
राम पांडे का कहना है कि खाद के लिए गोबर अच्छा इस्तेमाल करें। ये बहुत पुराना न हो और साथ ही उसमें बाकी कचरा मिला हुआ नहीं होना चाहिए। गोबर अच्छा होने पर खाद जल्दी और अच्छी बनती है।
इसके साथ ही बाकी चीज़ों का भी ध्यान रखना होगा जैसे कि बेड को अच्छी तरह से पराली से ढकना ज़रूरी है। गर्मियों में मोटा ढकना पड़ता है, जबकि सर्दियों में पराली से ज़्यादा मोटा ढकने की ज़रूरत नहीं है। इसके बाद नमी बनाए रखना भी ज़रूरी है। गर्मियों में दो बार और सर्दियों के मौसम में एक दिन छोड़कर भी पानी डाला जा सकता है।
राम पांडे का कहना है कि मौसम के हिसाब से ये सारी चीज़ें तय होती है इसका कोई एक नियम नहीं है। इसके साथ ही उनका कहना है कि इस वर्मीकम्पोस्ट व्यवसाय में सफल होने के लिए लेबर मैनेजमेंट भी बहुत ज़रूरी है।
वर्मीकम्पोस्ट खाद पौधों के विकास में मदद करती है और इसके इस्तेमाल से फसल में कीट और रोगों की संभावना भी कम हो जाती है। इसलिए इसकी मांग लगातार बढ़ रही है, ऐसे में वर्मीकम्पोस्ट बिज़नेस से अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।