धीरे-धीरे ही सही अब किसान खेती के पारंपरिक तरीकों से हटकर प्रयोग करने लगे हैं। मिश्रित खेती भी उसी का एक रूप है। इसमें खेत में एक साथ कई फसलें लगाई जाती हैं। मान लीजिए आपने फलों की खेती की है तो साथ में सब्ज़ियाँ और मसाले भी उगा सकते हैं। किसान एक साथ, एक से अधिक ऐसे अनाज भी लगा सकते हैं, जिन्हें एक ही तरह की मिट्टी की ज़रूरत हो।
ऐसा करने से किसानों की भूमि का न सिर्फ़ सदुपयोग होता है, बल्कि किसी कारणवश अगर एक फसल खराब हो जाती है तो दूसरी से उसकी भरपाई की जा सकती है। इस तरह से किसानों को पूरे साल कुछ न कुछ आमदनी होती रहती है। केरल के किसान शाजी एनएम ने प्राकृतिक तरीके से मिश्रित खेती का मॉडल अपनाया और इससे उनका लाभ करीब दोगुना हो गया।
मिश्रित खेती का मॉडल
केरल के वायनाड ज़िले के इल्लाथुवायली गाँव के रहने वाले किसान शाजी एनएम ने 3 एकड़ ज़मीन से मिश्रित खेती (Mixed Farming) की शुरुआत की। इसमें से एक एकड़ में उन्होंने कंद वाली फसलें लगाईं। लीज़ पर ली गई 9 एकड़ भूमि पर अलग-अलग तरह की चावल की किस्में उगाईं। शाजी एनएम जैविक तरीके से ही मिश्रित खेती करते हैं और कंद फसलों के साथ ही अन्य सब्जियां और फल भी उगा रहे हैं।
‘ट्यूबर मैन ऑफ़ केरल’ बने
शाजी एनएम ‘ट्यूबर’ यानी ‘गांठ/कंद’ जैसी फसलों को सहेजने का काम कर रहे हैं। उन्होंने करीब 200 प्रकार की कंद फसलों का संरक्षण किया, जिनमें सूरन, शकरकंद, चाइनीज़ आलू, कोलोकेशिया, अरबी और कसावा जैसी फसलें शामील हैं। उन्होंने अपने खेत में हल्दी की 40 और अदरक की 30 किस्मों को बोने के साथ ही उनका संरक्षण भी किया है। इतना ही नहीं, वह औषधीय गुणों वाले कई पौधों का संरक्षण भी कर रहे हैं। शाजी एनएम को कंद फसलों की खेती में महारत हासिल है। उनके कार्यों के लिए उन्हें ‘ट्यूबर मैन ऑफ़ केरल’ भी कहा जाता है।
प्राकृतिक खेती का अभ्यास
शाजी एनएम ने केमिकल युक्त खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि पूरी तरह से प्राकृतिक कृषि की तकनीकों को अपनाया। वह शून्य जुताई, मल्चिंग, वर्मीकम्पोस्टिंग, खाद के लिए गाय के गोबर का इस्तेमाल, कीट प्रबंधन के लिए तंबाकू काढ़ा और नीम के तेल जैसी जैव वनस्पति का इस्तेमाल करते हैं।
कृषि विज्ञान केन्द्र की टीम की मदद से किसानों को प्राकृतिक खेती में उपयोग लाए जाने वाली सामग्रियों के बारे में जानकारी देते हैं। बाकायदा उसका परीक्षण भी आयोजित करते हैं। इसके अलावा, कंद की कई किस्मों को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रदर्शनियों और मेलों में हिस्सा लेते हैं। उन्होंने इस शर्त के साथ किसानों को 10 किलो बीज प्रदान किया कि अगले साल वह उन्हें बीज वापस करेंगे। इससे किसान खुद ही बीज बनाने के लिए प्रेरित हुए और बाज़ार पर निर्भरता कम होती चली गई।
प्राकृतिक व मिश्रित खेती के लाभ
कीट व रोगों से बचाव के लिए वानस्पतिक अर्क का छिड़काव करने से उनका प्रकोप कम हो गया। इनमें कंद की 200, हल्दी की 40 और अदरक की 30 किस्में शामिल हैं। प्राकृतिक कृषि तकनीकें जैसे पंचगव्य, जीवामृत आदि को लोकप्रिय भी बनाया। इन सब कोशिशों से खेती की लागत कम हुई।
उपलब्धियां
शाजी एनएम ने प्रशिक्षण के द्वारा हर साल करीब 800 किसानों को लाभ पहुंचाया। कृषि में उनके योगदान के लिए उन्हें 2021 में भारतीय जैव विविधता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इससे पहले 2015 में प्लांट जिनोम सेवियर पुरस्कार, राज्य अक्षयश्री पुरस्कार, राज्य कैराली पीपल टीवी कथिर पुरस्कार, राज्य जैव विविधता बोर्ड पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इनके अलावा, केरल कृषि विश्वविद्यालय पुरस्कार से भी उन्हें नवाज़ा गया है।
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कितना बढ़ा मुनाफ़ा?
पारंपरिक तरीके से कंद की खेती करने पर लागत करीबन 3 लाख रुपये आती थी, जबकि प्राकृतिक खेती में यही लागत 2,80,000 रुपये आई। पारंपरिक तरीके में शुद्ध आय मात्र 40,000 रुपये थी, जबकि प्राकृतिक तरीके में यह बढ़कर 90 हज़ार रुपये हो गई, यानी दोगुने से भी ज़्यादा।
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