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किसान भले ही ज़्यादा उत्पादन के लिए केमिकल युक्त खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इससे फसलों की सेहत पर काफ़ी दुष्प्रभाव होता है। साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता पर भी असर देखने को मिलता है। अब जागरुक किसान ऑर्गेनिक खेती पर ज़ोर दे रहे हैं। किसान जो सबसे अहम चीज़ इस्तेमाल कर रहे हैं वो है वर्मीकम्पोस्ट।
देहरादून से 20 किलोमीटर दूर झबरावाला गांव के रहने वाले युवा ताहिर हसन वर्मीकम्पोस्ट बनाने का बिज़नेस कर रहे हैं, इसके साथ ही ताहिर जैविक खेती भी करते हैं। वो किसानों से खासतौर पर छोटी फसलों में ऑर्गेनिक यानी जैविक खाद के इस्तेमाल पर जोर देकर अपील भी कर रहे हैं, क्योंकि केमिकल युक्त खाद सेहत पर बहुत बुरा असर डालती है। यही नहीं जैविक खाद से फसल का उत्पादन बढ़िया होता है। जैविक खेती की सबसे ज़रूरी चीज़ वर्मीकम्पोस्ट के उत्पादन से जुड़ी बहुत अहम जानकारी उन्होंने साझा कि किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली के साथ।
25 बेड से की वर्मीकम्पोस्ट व्यवसाय की शुरूआत
ताहिर हसन बताते हैं कि वो 13-14 महीने से वर्मीकम्पोस्ट बनाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने 25 बेड से इस काम को शुरू किया था। अब उनके पास 250-300 बेड हैं। ताहिर हसन ने बताया कि इतने कम समय में भी उनके काम का अनुभव अच्छा रहा, वर्मीकम्पोस्ट की मांग भी अच्छी है, इसलिए किसी तरह की समस्या उन्हें अब तक सामने नहीं आई है। इसकी शुरूआत के बारे में वो बताते हैं कि वो पहले ठेकेदारी का काम कर रहे थे और गांव के पंचायत सदस्य भी हैं, फिर उन्होंने सोचा कि इसके साथ कुछ और काम किया जाए। इसके लिए पहले तो उन्होंने डेयरी खोलने की सोची, मगर दोस्तों ने कहा कि इसमें रिस्क ज़्यादा है, तो फिर इस काम को छोड़ दिया। फिर किसी ने उन्हें जब वर्मीकंपोस्ट के बारे में बताया तो, इस बारे में यूट्यूब पर सर्च करके जानकारी जुटाई और फिर इसे शुरू किया। 25 बेड से उन्होंने इस काम की शुरुआत की, लेकिन मांग बढ़ने और अच्छी बिक्री होने पर उन्होंने इसे बढ़ाकर 250 से 300 बेड कर दिया।
कहां से ली वर्मीकम्पोस्ट बनाने की ट्रेनिंग?
वर्मीकम्पोस्ट बिज़नेस से होने वाले फायदे और इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए ताहिर हसन 5 बीघा के गन्ने के खेत को भी खाली करके उसमें वर्मीकम्पोस्ट बनाने वाले हैं। ट्रेनिंग के बारे में उनका कहना है कि सहारनपुर में अपने एक जानकार से उन्होंने वर्मीकंपोस्ट बनाना सीखा, जो सालों से ये काम कर रहे हैं। उनसे ट्रेनिंग लेने के साथ ही ताहिर हसन ने केंचुआ भी उन्हीं से लिया और फिर उसके बाद काम शुरु किया।
वर्मीकम्पोस्ट कैसे बनाते हैं?
ताहिर हसन का कहना है कि इसे बनाना बहुत आसान है, ये कोई रॉकेट साइंस नहीं है। पहले तो मिट्टी को प्लेन करते हैं। फिर 3 फीट चौड़ा और 30 फीट लंबा बेड बनाते हैं, उसके ऊपर प्लास्टिक डालते हैं और साइड में मिट्टी से मेड़ बनाते हैं। फिर 20-25 दिन पुराना कच्चा गोबर डालते हैं, उसके ऊपर केंचुआ डालते हैं। गोबर ज़्यादा पुराना नहीं होना चाहिए। एक बेड में 15 क्विंटल गोबर और 30 किलो केंचुआ डाला जाता है। 90 दिन के बाद केंचुआ करीब 9 क्विंटल गोबर तो खा जाता है और बाकी बचा 6 किलो खाद प्राप्त होता है। वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए नमी होना बहुत ज़रूरी है, इसलिए बेड बनाने के बाद उसे पुआल से ढंक दिया जाता है। फिर हर दिन इस पर पानी डालना पड़ता है। गर्मियों में रोज़ाना और सर्दी के मौसम में एक दिन के बाद पानी डालना चाहिए। ये सूखना नहीं चाहिए, वरना ये केंचुए के किसी काम का नहीं रहेगा। 90 दिन में खाद तैयार हो जाती है।
कैसे निकालते हैं खाद?
90 दिन पूरा होने पर खाद 80 फीसदी तक तैयार हो जाती है। फिर बेड के ऊपर से पुआल हटाकर 4-5 दिन धूप में यूं ही खुला छोड़ दिया जाता है। जिससे केंचुआ नीचे चला जाता है और फिर ऊपर से खाद निकाल ली जाती है और छानकर इसकी पैकिंग की जाती है। केंचुआ नए बेड के लिए चला जाता है, जिसे फिर से रिन्यू किया जाता है यानी दोबारा नया बेड बनाया जाता है।
किसानों को देते हैं मुफ़्त ट्रेनिंग
ताहिर हसन का कहना है कि वर्मीकम्पोस्ट के लिए कच्चा माल यानी गोबर उन्हें आसानी से मिल जाता है, क्योंकि आसपास बहुत सारी गौशाला है, जो किसान उनके पास सीखने के लिए आते हैं, उन्हें वो मुफ्त में ट्रेनिंग देते हैं। बहुत से किसान सब्ज़ियों और छोटी फसलों में इसका इस्तेमाल करने के लिए एक बेड बनाकर खुद ही वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन कर रहे हैं। यही नहीं ताहिर हसन कम कीमत पर किसानों को वर्मीकम्पोस्ट उपलब्ध कराकर जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।बाज़ार में वर्मिंकंपोस्ट 250-500 रुपए प्रति किलो की दर से बिकता है, जबकि वो सिर्फ 200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं।
वर्मीकम्पोस्ट की मार्केटिंग कैसे करते हैं?
कोई नई चीज़ शुरू करने के बाद उसे बेचना यानी मार्केटिंग में दिक्कत आती ही है, लेकिन ताहिर हसन का कहना है कि उन्हें कोई दिक्कत नहीं आई,क्योंकि जिस कंपनी से वो जुड़े हैं वो उनका सारा माल खरीद लेती है इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर भी किसानों के बीच उनके खाद की मांग है। देहरादून से भी लोग उनसे खाद लेने आते हैं, क्योंकि वो कम कीमत में अच्छी क्वालिटी उपलब्ध करवा रहे हैं।
किसानों में कितना बदलाव दिख रहा है?
ताहिर हसन का कहना है कि हालांकि अभी ये काम करते हुए उनको ज़्यादा वक्त नहीं हुआ है, लेकिन उनके आसपास के किसानों को उन्होंने कम कीमत में वर्मीकम्पोस्ट दिया और इस्तेमाल करने के लिए कहा। गेहूं, आलू, सरसों और छोटी फसलों में इसका इस्तेमाल किया गया और अच्छा रिज़ल्ट मिलने पर किसान दोबारा खाद लेने आएं। जिससे ज़ाहिर होता है कि वो इसे पसंद कर रहे हैं। ताहिर किसानों से खासतौर पर अपील कर रहे हैं कि छोटी फसलों में ऑर्गेनिक खाद का ही इस्तेमाल करें।
कितनी होती है आमदनी?
ताहिर का कहना है कि एक बेड से उन्हें सारा खर्च निकालने के बाद 1 हज़ार का मुनाफा हो जाता है। इस तरह वो 3 लाख रुपए प्रति माह कमाई कर रहे हैं।
खुद भी करते हैं जैविक खेती
ताहिर का कहना है कि किसानों को जागरुक करने और इसके अच्छे नतीजे दिखाने के लिए उन्होंने हाल ही में आलू, लहसुन वगैरह के साथ और भी कई चीज़ें लगाई हैं, जो किसान ट्रेनिंग के लिए आते हैं, वो उन्हें फसल की ग्रोथ दिखाते हैं, जिससे किसान इसे अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं।
ऑर्गेनिक खेती के फायदे बताने के साथ ही ताहिर हसन, उन्हें वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने की तकनीक सिखाते हैं और साथ ही केंचुआ भी उपलब्ध करा रहे हैं। आज के समय में जब केमिकल वाली खेती से सेहत और खेत दोनों को नुकसान पहुंच रहा है, ऐसे में ताहिर हसन जैसे लोगों की बहुत ज़रूरत है।
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