गेंहू की नई किस्म (New Variety of Wheat): सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रयास कर रही है, परन्तु किसानों की स्थिति में पिछले कुछ दशकों से बहुत अधिक सुधार नहीं आया है। किसानों को समय से बीज एवं खाद उपलब्ध करवाने के लिए सरकार द्वारा केंद्र खोले हैं।
किसानों की अच्छी पैदावार के लिए राज्य सरकारों द्वारा किसानों को उन्नत एवं प्रमाणित किस्म के बीज अनुदान पर दिए जाते हैं जिससे ज्यादातर किसान इन बीजों की बुआई कर अधिक पैदावार प्राप्त कर सकें।
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केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय द्वारा लगातार ऐसी किस्मों का विकास किया जा रहा है जिससे कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन किया जा सके, साथ ही रोग रोधी किस्मों का भी विकास किया जा रहा है। अब हरियाणा सरकार ने गेहूँ की किस्म एचडी- 2967 की अच्छी उत्पादन क्षमता को देखते हुए इसके प्रमाणिक बीज पर अनुदान सीमा को 2021-22 तक बढ़ा दिया है। इससे किसानों को अगले एक साल तक इस बीज पर अनुदान मिलता रहेगा जिससे किसानों को गेंहूं की उत्पादकता बढ़ाने में सहायता मिलेगी। अब किसान रबी 2021-2022 सत्र में अनुदान पर बीज खरीद सकेंगे।
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एचडी- 2967 की प्रगति अच्छी होने से सरकार ने इसके अनुदान की समय सीमा बढ़ाने का निर्णय लिया है। गेहूँ के बीज पर 500 रुपए क्विंटल की सब्सिडी मिलती है। यह किस्म भारत सरकार द्वारा अक्टूबर, 2011 को अधिसूचित की गई थी। राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत सरकारी एजेन्सियों द्वारा बेचे जाने वाले गेहूँ के प्रमाणित बीजों पर किसानों को प्रति वर्ष अनुदान प्रदान किया जाता है।
यह अनुदान गेहूँ की उन्हीं किस्मों पर दिया जाता है जिन किस्मों की अधिसूचना की सीमा 10 वर्ष से कम हो। गेहूँ की किस्म एच.डी.-2967 अनुदान की समयावधि अक्टूबर, 2021 में समाप्त हो जाएगी। सरकार द्वारा इस किस्म की अच्छी पैदावार को देखते हुए इसके प्रमाणित बीज पर अनुदान की समय सीमा को रबी 2021-22 तक बढ़ाया गया है।
हालांकि इस किस्म के बीजों से गेंहू की उत्पादकता अधिक होती है लेकिन कुछ रोग ऐसे हैं जिससे इस विशेष किस्म पर खतरा रहता है। इन्हीं में से एक रोग है पीला रतुआ रोग। ये किस्म पीला रतुआ रोग के प्रति अधिक संवेदनशील है। इस रोग के मुख्यत: लक्षण पत्तों की सतह पर पीले रंग की धारियां दिखाई देना, पाउडरनुमा पीला पदार्थ पत्तो पर होना, शुरू में इस रोग से ग्रस्त खेत में कहीं-कहीं गोलाकार दायरों का दिखना तथा तापमान बढऩे पर पीली धारियों के नीचे की सतह पर काले रंग में बदलाव आना है।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा गेहूँ की यह किस्म को पीला रतुआ रोग के प्रति अति संवेदनशील बताया गया है। पीला रतुआ रोग का उपचार गेहूँ में पीले रतुए रोग के उपचार के लिए किसानों को उक्त लक्षण दिखाई देने पर प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. की 200 मिलीलीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिडक़ाव करना चाहिए। यदि रोग फसल की आरंभिक अवस्था में आ जाए तो पानी की मात्रा कम कर देनी चाहिए। रोग का प्रकोप बढऩे पर दूसरा छिडक़ाव 10-15 दिन के बाद दोहराया जा सकता है।