देश में किसान वर्ग दो भागों में बंटा है। एक जिनके पास खेती लायक अपनी ज़मीन है और दूसरे हैं भूमिहीन किसान। भूमिहीन किसानों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है। ये वो किसान होते हैं जिनके पास कृषि योग्य अपनी ज़मीन नहीं होती। ये ज़मींदारों से ज़मीन लीज़ या पट्टे पर लेकर खेती करते हैं।
2011 की जनगणना के मुताबिक, कोई 11.8 करोड़ किसानों के पास खुद की ज़मीन है, वहीं करीब 14.4 करोड़ किसान भूमिहीन हैं।
‘प्रशासन गांवों के संग’ अभियान के तहत आंवटन
राजस्थान सरकार ने ऐसे ही भूमिहीन किसानों को एक अभियान के तहत खेती के लिए ज़मीन आंवटित की है। ये आंवटन ‘प्रशासन गांवों के संग’ अभियान के तहत किया गया है। प्रदेश के राजस्व मंत्री हरीश चौधरी ने कहा कि ये अभियान उन किसानों के लिए उम्मीद की किरण है, जिनके पास कृषि लायक अपनी ज़मीन नहीं थी।
भूमिहीन किसानों को मिलेगा मालिकाना हक
भूमिहीन किसानों को सरकार की कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। राजस्थान सरकार के इस कदम से आवंटित ज़मीन का मालिकाना हक भूमिहीन किसानों को मिलेगा। इससे सरकार की अन्य योजनाओं का लाभ भी वो उठा सकेंगे।
‘प्रशासन गांवों के संग’ अभियान के तहत 2,363 भूमिहीन किसानों को कुल 480.78 हेक्टेयर भूमि आंवटित की गई है। अकेले डूंगरपुर ज़िले में सबसे ज़्यादा 2,206 किसानों को कुल 411.78 हेक्टेयर ज़मीन आंवटित की गई है। चित्तौड़गढ़ के 51 भूमिहीन किसानों को 18.86 हेक्टेयर, भीलवाड़ा के 49 किसानों को 24.24 हेक्टेयर, बांसवाड़ा के 34 किसानों को 18.65 हेक्टेयर, सिरोही के 13 किसानों को 1.55 हेक्टेयर, जैसलमेर के 6 किसानों को 4.03 हेक्टेयर, बारां के 2, दौसा और श्री गंगानगर के एक- एक भूमिहीन किसान को भूमि आंवटित की गई है।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को किया जाता रहा है अनदेखा
जब भी खेती से जुड़े किसी कानून की बात होती है तो स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों का ज़िक्र ज़रूर होता है। आयोग ने साल 2006 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र में सुधार को लेकर कई सिफ़ारिशें की थीं। इन्हीं सिफ़ारिशों में से एक थी, भूमिहीन किसानों में ज़मीन का वितरण करना। आयोग ने कहा था कि अतिरिक्त और इस्तेमाल नहीं हो रही ज़मीन को भूमिहीन किसानों में बांट देना चाहिए। इससे उनकी आजीविका में सुधार होगा। लेकिन इन सिफारिशों पर गंभीर होकर अमल नहीं किया गया।
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दूसरे राज्यों को क्यों अपनानी चाहिए ये नीति
राजस्थान सरकार के इस कदम से अन्य राज्य भी भूमिहीन किसानों के हित में कदम उठाने के लिए प्रेरित होंगे । इससे अतिरिक्त बेकार पड़ी ज़मीन फिर से हरी-भरी तो होगी ही, साथ ही ऐसा कदम किसान परिवार की आमदनी का ज़रिया भी बनेगा।