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प्रस्तावना
गांव से आने वाले युवा किसानों का अब खेती-बाड़ी की पारंपरिक विधियों से आगे बढ़कर नवाचारों की ओर रुख करना न केवल उनकी आय को बढ़ा रहा है, बल्कि देश के कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति का संचार भी कर रहा है। ऐसी ही प्रेरक कहानी है अभिलाष पांडे की, जो मछली पालन में नए तरीके अपनाकर अपने अनोखे प्रयोगों और मेहनत से एक नई मिसाल पेश कर रहे हैं। आइए, जानते हैं कि कैसे अभिलाष ने मछली पालन को चुना, इस क्षेत्र में संघर्ष किया और किस तरह आज वे एक सफल किसान के रूप में पहचाने जाते हैं।
अभिलाष पांडे का परिचय
अभिलाष पांडे ने खेती के पारंपरिक तरीकों को छोड़कर मछली पालन में कदम रखा। उनका गाँव गोरखपुर जिले में स्थित है, जहां पहले खेती के दूसरे तरीकों को अपनाने के बाद उन्होंने मछली पालन को एक व्यवसाय के रूप में चुना। उनके पास 6 बीघा यानी लगभग 1.5 एकड़ जमीन है, जिसे उन्होंने 10 साल के सरकारी पट्टे पर लिया है।
अभिलाष ने मछली पालन को इसलिए चुना, क्योंकि ये एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें कम पानी और सीमित संसाधनों में भी अच्छी आमदनी हो सकती है। शुरू में उनके पास सीमित साधन थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने आधुनिक तकनीक और पारंपरिक ज्ञान का समन्वय करते हुए अपने व्यवसाय को सफल बनाया।
मछली पालन में केले का प्रयोग
अभिलाष ने मछली पालन की सफलता के लिए पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाया। उनका मानना है कि मछलियों की सेहत और उनके विकास के लिए भोजन का सही अनुपात और तालाब की गुणवत्ता महत्वपूर्ण होती है। उन्होंने अपने तालाब में गोबर की खाद, केले के पेड़ और केले के छिलके का प्रयोग किया, जिससे मछलियों की ग्रोथ में तेजी आई।
इसके अलावा, उन्होंने केले के पेड़ से निकलने वाले रस का प्रयोग भी शुरू किया। उनका कहना है, “केले के रस से मछलियाँ जल्दी भोजन पचा पाती हैं, जिससे उनकी ग्रोथ तेजी से होती है। यह उनके पेट के लिए भी फायदेमंद होता है और उनका स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है।”
मछली पालन में तालाब की मिट्टी
अभिलाष का तालाब 10 साल के पट्टे पर है, जिसमें वे हर साल मछलियों की नई किस्में जोड़ते हैं। उन्होंने गोबर की खाद, केले के पेड़, और चूने के मिश्रण का तालाब की मिट्टी में इस्तेमाल किया। वो बताते हैं- “ये मिश्रण तालाब की मिट्टी को उपजाऊ बनाता है, जिससे मछलियों को पोषण मिलता है और पानी की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।” उन्होंने गांव में प्रचलित पारंपरिक तकनीकों को आधुनिक तकनीक से जोड़ा और मछलियों के लिए ऐसा वातावरण तैयार किया, जिससे वे तेजी से बढ़ सकें।
मछली पालन में बाज़ार का चुनाव
अभिलाष ने अपने उत्पादों को बेचने के लिए पहले स्थानीय बाजारों और ग्राहकों से सीधा संपर्क बनाया। जब उन्होंने शुरुआत की थी, तब गाँव में मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा नहीं थी। उस समय, वे एक-एक रुपये का सिक्का डालकर पीसीओ से ग्राहकों से बात किया करते थे।
उन्होंने बताया, “हम हर दिन सुबह 4 बजे उठकर मछलियाँ लेकर मुंबई और अन्य बड़े शहरों के बाजारों में पहुंचते थे। उस समय, ग्राहकों से संपर्क बनाना आसान नहीं था, लेकिन हमने हार नहीं मानी और लगातार मेहनत करते रहे।”
आज, इंटरनेट और मोबाइल की सुविधा के कारण ये काम और भी आसान हो गया है। अब वह ग्राहकों से सीधा संपर्क रखते हैं और अपनी मछलियों को सीधे उनके घर तक पहुँचाते हैं, जिससे उनके उत्पादों की मांग बढ़ी है।
मछली पालन में ड्रोन तकनीक का उपयोग
अभिलाष सिर्फ पारंपरिक तरीकों पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि उन्होंने आधुनिक तकनीकों का भी बखूबी इस्तेमाल किया है। उन्होंने अपने तालाब की निगरानी और कीटनाशक के छिड़काव के लिए ड्रोन तकनीक का उपयोग किया।
गुजरात में केले की फसल में पहली बार ड्रोन का उपयोग उन्होंने ही किया, जिसे देखकर सैकड़ों किसानों ने इसे अपनाया। उनका यह प्रयोग पूरे राज्य में एक नई लहर की तरह फैल गया और आज गुजरात के कई किसान इसी तकनीक का प्रयोग अपनी फसलों में कर रहे हैं।
किसान सम्मान पुरस्कार के लिए प्रेरणा
अभिलाष का मानना है कि किसान सम्मान पुरस्कार ऐसे किसानों को मिलना चाहिए, जो न केवल अपनी मेहनत से सफल हुए हों, बल्कि अपने ज्ञान और अनुभव से समाज के अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रहे हों।
उनके अनुसार, “गांव के लोग अक्सर नई तकनीकों और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं रखते। मैंने यह दिखाया है कि कैसे हम पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं और आत्मनिर्भर बन सकते हैं।”
मछली पालन में नए तरीके अपनाए
अभिलाष ने मछली पालन के दौरान कई कठिनाइयों का सामना किया। तालाब की सफाई, पानी की गुणवत्ता, और मछलियों का उचित भोजन – ये सभी महत्वपूर्ण पहलू थे, जिनमें छोटी-सी गलती भी बड़े नुकसान का कारण बन सकती थी।
तालाब की गहराई और चौड़ाई को सही अनुपात में रखना जरूरी होता है, ताकि मछलियाँ ठीक से पनप सकें। उन्होंने इन चुनौतियों का सामना करते हुए तालाब के डिजाइन और मछलियों के पालन में निरंतर सुधार किया।
निष्कर्ष: अभिलाष का जीवन हर किसान के लिए एक सीख
अभिलाष पांडे की कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत, नए प्रयोग, और सही दिशा में किया गया प्रयास हमेशा सफलता की ओर ले जाता है। उन्होंने अपने पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीकों के साथ मिलाकर मछली पालन के क्षेत्र में एक नई पहचान बनाई है।
आज, उनके प्रयोग और नवाचार न केवल उन्हें एक सफल किसान बनाते हैं, बल्कि देश के अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणा हैं। यदि गांव का एक युवा किसान इस तरह से नए प्रयोग कर सकता है, तो निश्चित ही देश का हर किसान आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा सकता है।
तो आइए, अभिलाष की कहानी से प्रेरणा लेते हुए, हम भी खेती और मछली पालन में नई तकनीकों का प्रयोग करें और अपने देश के कृषि क्षेत्र को और भी समृद्ध बनाएं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।