खेती से जुड़ी महिलाओं के लिए अतिरिक्त आमदनी प्राप्त करने का अच्छा ज़रिया है डेयरी व्यवसाय। विश्व दुग्ध दिवस पर पढ़िए इसके ज़रिए वह न सिर्फ़ आत्मनिर्भर बन सकती हैं, बल्कि अपने सपने भी पूरे कर सकती हैं, जैसा कि आंधप्रदेश की गोंथिनी लक्ष्मी कर रही हैं। 16 साल से डेयरी उद्योग चला रही लक्ष्मी इसी व्यवसाय के बल पर अपने बेटों को अच्छी शिक्षा दे रही हैं और साथ ही उन्होंने पक्का घर भी बनवाया है।
दो गायों से ही शुरुआत
आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम ज़िले के परवाड़ा मंडल में एक गाँव पड़ता है, जिसका नाम है पीएस बोनांगी। गोंथिनी लक्ष्मी इसी गाँव की रहने वाली हैं। लक्ष्मी कहती हैं कि डेयरी उद्योग ने उनके जीवन को खुशहाल बनाया है और वह इस काम से बहुत संतुष्ट हैं। 10वीं तक पढ़ी लक्ष्मी ने 15 साल पहले सिर्फ 2 गायों के साथ डेयरी की शुरुआत की और आज इसे लाभदायक उद्योग में बदल दिया।
रोज़ाना औसतन 100 लीटर दूध का उत्पादन
उनके पास 1.5 एकड़ ज़मीन है ,जिसपर वह पशुओं के लिए चारा भी उगाती हैं। उनके पास 18 मुर्रा भैंसें, 5 गायें (जर्सी और होल्स्टीन फ़्रीज़ियन) हैं। इनसे रोज़ाना का औसतन 100 लीटर दूध का उत्पादन होता है। वह विशाखापट्टनम स्टील प्लांट के निवासियों और कर्मचारियों को दूध बेचती हैं। दुधारु पशुओं के अलावा उनके पास 20 अन्य गैर-दूधारु पशु भी हैं।
पशुओं के चारे के लिए वह अपनी डेढ़ एकड़ ज़मीन पर नेपियर घास की हाइब्रिड किस्म एपीबीएन-1 घास की खेती करती हैं। इसके अलावा, चारे की खेती के लिए उन्होंने सालाना 10 हज़ार के शुल्क पर अतिरिक्त एक एकड़ भूमि लीज पर ली हुई है।
कितना होता है मुनाफ़ा?
दूध की बिक्री से उन्हें सालाना करीब 8 लाख 10 हज़ार रुपये की आमदनी होती है। इस डेयरी व्यवसाय में उन्हें सालाना लागत तकरीबन 3 लाख 60 हज़ार रुपये आती है। इस तरह करीबन 4 लाख 50 हज़ार रुपये का उन्हें सीधा मुनाफ़ा होता है।
पशुओं के प्रसव तारीख का खासतौर रखती हैं ध्यान
दुधारू पशुओं के प्रसव के 3 महीने बाद लक्ष्मी उनके दोबारा गर्भधारण पर काम करती हैं। पशुपालन विभाग की ओर से उन्हें पूरा सहयोग और जानकारी मिलती है। वह डायरी में अपना हिसाब-किताब लिखने के साथ ही प्रत्येक पशु की डिलीवरी तारीख भी लिखती हैं।
मिला चारा योजना का लाभ
वह आंध्र प्रदेश सरकार की प्रमुख योजना “Oroora Pashu Grasa Khshetralu” (हर गाँव में चारा खेत) की लाभार्थी रही हैं। इसमें उन्हें चारे की खेती के लिए ज़मीन लीज़ पर लेने के लिए 20 हज़ार रुपये की आर्थिक सहायता दी गई। साथ ही चारे की खेती की लागत का पैसा भी मुहैया कराया गया।
बेटे की पढ़ाई और घर बनाया
डेयरी व्यवसाय की बदौलत उन्होंने 6 लाख रुपये लगाकर पक्का मकान बनवाया। वो अपने दो बेटों को अच्छी शिक्षा दे रही हैं। उनका एक बेटा बीटेक की पढ़ाई कर रहा है और दूसरा बेटा इंटरमिडिएट कोर्स कर रहा है। वह दूसरी महिलों को भी संदेश देती हैं कि नौकरी की तलाश में घर छोड़कर बाहर जाने से अच्छा है कि खुद का डेयरी व्यवसाय शुरू करें।
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