मधुमक्खियों ने तबस्सुम को एक नयी पहचान दी है जिसका नाम है आत्मनिर्भर। कश्मीर की सेंट्रल यूनिवर्सिटी से एमएससी कर रहीं बांदीपोरा के सुंबल की रहने वालीं तबस्सुम दो साल पहले तक पढ़ाई की फ़ीस और ख़ुद की जेब खर्च के लिए अपने पिता पर आश्रित थीं। लेकिन अब वो न सिर्फ ख़ुद का सारा खर्च निकाल लेती है, बल्कि परिवार की ज़रूरतों में भी हाथ बँटाती है।
अपने सफ़र के बारे में किसान ऑफ़ इंडिया को तबस्सुम मलिक बताती है कि पहले परिवार के लोग खुश नहीं थे कि पीजी स्टूडेंट ये काम करेगी। लड़की है बाहर जाएगी। मोहल्ले वाले क्या कहेंगे? लेकिन पढ़ाई बिना डिस्टर्ब हुए ये काम करते हुए पैसे कमाने लगी तो पापा के चेहरे पर खुशी देखी। ‘ऑल आर हैप्पी नाउ’।
तबस्सुम कहती हैं कि पढ़ाई के दौरान ‘एपिकल्चर सेमेस्टर’ में उसने समझा कि अगर नौकरी न मिली तो कैसे ख़ुद का काम कर सकते हैं? इसके बाद उसने मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में दाख़िल होने की ठानी। हालाँकि, पहले ही कदम पर धोखा मिला और पैसे भी डूब गये। उस मुश्किल दौर में भी तबस्सुम ने हार नहीं मानी। फिर यूनिवर्सिटी के ज़रिये ही उसकी मुलाक़ात एज़ाज़ से हुई, जिनसे मधुमक्खी पालन के 30 बक्से लेकर तबस्सुम जो आगे बढ़ी तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बक़ौल तबस्सुम, ‘साल में करीब 70-80 हजार रुपये आ जाते हैं। एक माइंडसेट है कि सरकारी नौकरी चाहिए। कश्मीर में कम स्कोप है। दूसरे बिज़नेस में निवेश ज़्यादा करना होता है। इसमें न तो ज़्यादा निवेश करना है न वक़्त ज़्यादा देना होता है और मार्केट अच्छा है। लाभ भी ज़्यादा है।’
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एज़ाज़ की दास्ताँ
दिलचस्प बात ये है कि मधुमक्खी पालन के मामले में तबस्सुम के उस्ताद बने एज़ाज़ को भी कभी ऐसे ही दिन देखने पड़े थे और दिन भी ऐसे ही दिन बदले थे। एज़ाज़ बताते हैं कि 2010 में 6 बक्सों से शुरू किया। ट्रेनिंग दी। सरकार से सपोर्ट मिला। मेरे पास पैसा नहीं था। जीरो से शुरू किया। सब्सिडी से बक्सा दिया। फिर पिता और भाई को भी इस काम में लगाया। पहला क्रॉप 75,000 रुपये में बिका। फिर और बक्से बढ़ाता चला गय। अब मेरे पास 850 बक्से हैं और मैं सप्लायर बन चुका हूँ।
एज़ाज़ कहते हैं कि अब तो बाग़ वाले बोलते हैं बक्शे उनके यहाँ लगा दो। दरअसल, मधुमक्खी की वजह से पॉलिनेशन ख़ासा बढ़ जाता है। इससे बाग़ वालों का उत्पादन बहुत बढ़ जाता है और बदले में हमें शहद मिल जाता है। 2017 में अब तक मैं 45 लोगों के साथ मिलकर मधुमक्खी पालन कर रहा हूँ। इनमें कई महिलाएँ भी हैं। मधुमक्खी पालन का जो काम है उसमें हफ्ते में 5-6 घंटे देखना होता है बस। मक्खी काम करती है और हम खाते हैं। एक बॉक्स से 30 से 40 किलो शहद होता है। एक बक्से से सालाना 15 हज़ार रुपये तक की आमदनी होती है।
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मधुमक्खी का असली फ़ायदा फसलों को
दरअसल, मधुमक्खी पालन एक ऐसा कारोबार है, जिसमें न तो बहुत ज़्यादा जानकारी की ज़रूरत है और ना ही ज़्यादा निवेश की। असली काम तो मधुमक्खियाँ करती हैं। इस पेशे की एक ख़ासियत ये भी है कि इसमें शहद को खेती-किसानी एक बाय प्रॉडक्ट की तरह देखा जा सकता है, क्योंकि मधुमक्खी पालन का असली फ़ायदा तो फसलों को होता है, जहाँ मधुमक्खियों के कारण पॉलिनेशन ज़्यादा होता है और उत्पादन बढ़ जाता है। शहद की माँग हमेशा रहने से मधुमक्खी पालकों की नियमित आय होती
रहती है। इसीलिए सरकार भी इसे खूब प्रोत्साहित करती है।
बांदीपुरा से किसान ऑफ़ इंडिया के लिए पंकज शुक्ला की रिपोर्ट।