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महाराष्ट्र के पुणे जिले के शिरोली गांव के निवासी राजाराम विट्ठल चौधरी ने संरक्षित खेती के जरिए फूलों की खेती (Flower farming) को एक नई दिशा दी है। 10 मई 1955 को जन्मे राजाराम ने अपनी लगन, मेहनत और नई तकनीकों के समावेश से यह साबित किया है कि छोटे किसान भी कृषि में नवाचार के जरिए बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं।
संरक्षित खेती की शुरुआत
राजाराम बताते हैं, “खेती तो हमारे पूर्वजों से चली आ रही थी, लेकिन इसमें नवाचार लाना मेरी सोच थी। मैंने 12 गुंठा (20 आर) भूमि में फूलों की खेती (Flower farming) शुरू की। शुरुआत में डर था, लेकिन मैंने अपनी मेहनत और नई तकनीकों के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।”
राजाराम ने संरक्षित खेती की अवधारणा को अपनाया, जिसमें ग्रीनहाउस और पॉलीहाउस जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है। इसके जरिए फूलों की खेती को प्रतिकूल मौसम और कीटों से बचाया जाता है। इससे उनकी उपज की गुणवत्ता बेहतर हुई और बाजार में फूलों को उच्च मूल्य मिला।
फूलों की खेती में नवाचार
राजाराम ने विभिन्न प्रकार के फूलों की खेती (Flower farming) शुरू की, जिसमें गुलाब, गेंदा, और जरबेरा जैसे फूल शामिल हैं। वे कहते हैं, “मैंने देखा कि फूलों की मांग हमेशा रहती है। शादी, त्योहार और अन्य आयोजनों में फूलों का उपयोग अधिक होता है। इसलिए मैंने इसे एक अच्छे व्यवसाय के रूप में चुना।”
उन्होंने अपनी खेती में उन्नत बीज, जैविक खाद और ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीकों का उपयोग किया। उनके अनुसार, “ड्रिप इरिगेशन से पानी की खपत कम होती है और फसलों को समय पर पर्याप्त नमी मिलती है। यह विधि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।”
प्रौद्योगिकी और बाजार का समावेश
राजाराम ने फूलों की खेती (Flower farming) से प्राप्त उत्पादों की बिक्री के लिए स्थानीय बाजार के साथ-साथ बड़े शहरों में भी नेटवर्क स्थापित किया। उन्होंने फूलों की गुणवत्ता और समय पर डिलीवरी सुनिश्चित की, जिससे उनके ग्राहकों का विश्वास बढ़ा।
राजाराम बताते हैं, “मैंने अपने फूलों को स्थानीय मंडियों में बेचना शुरू किया। बाद में मैंने फूलों को मुंबई और पुणे जैसे बड़े बाजारों में भेजना शुरू किया। इससे मेरी आय में काफी वृद्धि हुई।”
पुरस्कार और सम्मान
राजाराम की मेहनत और नवाचार को विभिन्न संस्थानों और संगठनों ने सराहा। उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें शामिल हैं:
- 2004: आरसीएफ लिमिटेड द्वारा ग्रामीण विकास और पुणे जिले में फ्लोरीकल्चर में उत्कृष्टता के लिए सम्मानित।
- 2012: आईसीएआर, नई दिल्ली द्वारा “कृषि समृद्धि पुरस्कार”।
- वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य: महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय, राहुरी द्वारा चयनित।
- ग्रामीण कार्यक्रम सलाहकार समिति के सदस्य: भारत सरकार के अखिल भारतीय रेडियो, पुणे द्वारा नामित।
राजाराम का मानना है कि ये पुरस्कार उनके काम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और समाज के लिए उनके योगदान का प्रमाण हैं।
सरकारी सहायता का लाभ
राजाराम ने सरकारी योजनाओं का भी पूरा लाभ उठाया। उन्हें ड्रिप इरिगेशन और अन्य आधुनिक उपकरणों पर सब्सिडी मिली। इसके जरिए उन्होंने अपने खेतों में पानी की बचत की और उत्पादन बढ़ाया। राजाराम बताते हैं, “सरकार की सब्सिडी ने मेरी खेती को और अधिक प्रौद्योगिकी-संचालित बनाया। ड्रिप इरिगेशन ने पानी की खपत को 40% तक कम कर दिया।”
आर्थिक प्रभाव और समाज में योगदान
फूलों की खेती से राजाराम ने वार्षिक 2.20 लाख रुपये की आय अर्जित की। इसके अलावा, उनकी खेती ने उनके गांव के अन्य किसानों को प्रेरणा दी। वे कहते हैं, “मेरे खेत को देखकर अब गांव के अन्य किसान भी फूलों की खेती (Flower farming) में रुचि लेने लगे हैं। यह देखकर मुझे बहुत खुशी होती है।”
राजाराम का मानना है कि खेती में नवाचार और तकनीकी का समावेश ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त कर सकता है।
पत्रकारिता और समाज में पहचान
राजाराम की कहानी को विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में जगह मिली। उनके नवाचारों और सफलताओं पर प्रकाशित लेखों ने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई। वे कहते हैं, “मीडिया ने मेरी कहानी को एक मंच दिया, जिससे अन्य किसान भी प्रेरित हुए।”
चुनौतियों का सामना
राजाराम ने अपने सफर में कई चुनौतियों का सामना किया। वे बताते हैं, “शुरुआत में ग्रीनहाउस और पॉलीहाउस जैसी तकनीकों को अपनाने में कठिनाई हुई। इसकी लागत अधिक थी और इसके लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता थी। लेकिन मैंने कृषि विशेषज्ञों और सरकारी संस्थानों की मदद से इन समस्याओं का समाधान निकाला।”
भविष्य की योजनाएं
राजाराम की योजना अपनी फूलों की खेती (Flower farming) को और विस्तार देने की है। वे कहते हैं, “मैं अब सुगंधित फूलों और औषधीय पौधों की खेती शुरू करना चाहता हूं। इसके साथ ही, मैं अपने फूलों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भेजने की योजना बना रहा हूं।”
इसके अलावा, वे स्थानीय किसानों को प्रशिक्षण देकर संरक्षित खेती के प्रति जागरूक करना चाहते हैं। उनका लक्ष्य है कि उनके गांव का हर किसान आधुनिक तकनीकों को अपनाए और बेहतर आय अर्जित करे।
संरक्षित खेती की अहमियत
राजाराम के अनुभव से यह स्पष्ट है कि संरक्षित खेती न केवल उत्पादकता बढ़ाती है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी होती है। उनके अनुसार, “संरक्षित खेती से फसलों को प्रतिकूल मौसम से बचाया जा सकता है। इससे फसलों की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।”
निष्कर्ष
राजाराम विट्ठल चौधरी की कहानी उन सभी किसानों के लिए प्रेरणा है जो अपनी खेती को एक लाभकारी व्यवसाय में बदलना चाहते हैं। उनकी मेहनत, नवाचार और समर्पण ने यह सिद्ध कर दिया है कि छोटे किसान भी बड़े सपने देख सकते हैं और उन्हें साकार कर सकते हैं। उनकी सफलता यह संदेश देती है कि यदि किसान आधुनिक तकनीकों को अपनाएं और अपनी फसलों की गुणवत्ता पर ध्यान दें, तो वे न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी सकारात्मक योगदान दे सकते हैं।
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