भारत में कोरोना काल में हुए लॉकडाउन ने कई लोगों को ज़िंदगी को अस्त-व्यस्त कर दिया। ज्यादातर बड़े-छोटे रोजगार ठप पड़ गए। करोड़ों लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। कई कंपनियों में ताले लगने से बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए। आमदनी का पहिया अचानक से अस्थिर हो गया। इस उथल-पुथल वाली स्थिति में सिर्फ एक ऐसा क्षेत्र रहा, जिसने भारत को अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर संभाले रखा। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के मुताबिक, कृषि क्षेत्र ने मज़बूती दिखाते हुए पिछले साल की पहली तिमाही के 3.5 फ़ीसदी से बढ़कर 4.5 फ़ीसदी की विकास दर हासिल की।
इस आंकड़े का एक भावुक पहलू आपको बताएं तो देश का किसान शुरू से ही अस्थिरता में ही जीता आया है। कब मौसम की मार और किसी और वजह से उसकी फसल खराब हो जाए, ये कहा नहीं जा सकता। ये भी एक वजह है कि जब कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से देश में अस्थिरता के हालात बने तो कृषि क्षेत्र ने खुद को संभाले रखा, जिसका श्रेय देश के तमाम मेहनतकश किसानों को जाता है जो अपने खेत खलिहान में पसीने बहाकर देशवासियों का पेट भरते हैं। इस लेख में हम कुछ ऐसे ही किसानों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कोरोना काल में हार न मानते हुए आपदा में अवसर की तलाश की और कई किसानों के लिए मिसाल बने।
फौजी परिवार का किसान बेटा, प्रतिकूल परिस्थितियों में कर डाली केले की खेती
मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िला के किवलाझीर गांव के रहने वाले जोगिंदर सिंह ने लॉकडाउन के वक़्त ही केले की खेती करने के बारे में सोचा। एक तो मध्य प्रदेश की जलवायु केले की खेती के लिए अनुकूल नहीं मानी जाती ऊपर से लॉकडाउन की स्थिति, ऐसे में उनके इस फैसले पर कई लोगों ने सवाल उठाए। इलाके के पहले एक-दो किसानों ने केले की खेती में हाथ आजमाया था, लेकिन उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था। ऐसे में जोगिंदर सिंह ने केले की खेती को न सिर्फ़ चुनौती की तरह लिया बल्कि इसमें सफल भी हुए। आज इसी का नतीजा है कि आस-पास के किसान उनसे प्रभावित हो केले की खेती करने में रुचि ले रहे हैं।
जोगिंदर सिंह के पास पचास से ज्यादा खेतिहर मजदूर पूरे साल काम करते हैं, ऐसे में उन्हें एक ऐसी फसल की तलाश थी, जिसके जरिये वो सबको लगातार काम दे सकें। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में जोगिंदर सिंह ने बताया कि वो जी-9 किस्म के केले की खेती करते हैं। दो पौधों के बीच 5 बाय 5 की दूरी से 15 एकड़ की ज़मीन पर 24 हज़ार पौधे लगाए हुए हैं। केले की खेती में पानी की ज़्यादा ज़रूरत होती है तो इसके लिए वो ड्रिप इरिगेशन तकनीक का सहारा लेते हैं। इसकी खेती काली और पीली मिट्टी में की जा सकती है। केले का एक लुंगर करीबन 30 से 40 किलो तक फल दे देता है। एक पौधे में एक ही लुंगर आता है। फसल लगने के बाद दस महीने के अंदर ये कटाई के लिए तैयार हो जाती है। किसान ऑफ़ इंडिया को जोगिंदर सिंह बताते हैं कि केले की खेती में प्रति एकड़ करीबन एक लाख 25 हज़ार की लागत आ जाती है, जिससे 3 लाख रुपये प्रति एकड़ का मुनाफ़ा हो जाता है। v
बेरोजगार ग्रामीण युवाओं ने ककड़ी की इस किस्म की खेती कर कमाया मुनाफ़ा
कोरोना काल में कई सेक्टर्स पर पड़े असर से बेरोज़गारों की संख्या में वृद्धि दर्ज हुई। मणिपुर के लीमाराम गाँव के रहने वाले कुछ बेरोजगार ग्रामीण युवाओं ने लॉकडाउन में ठप पड़े काम के बीच ककड़ी की खेती करने का फैसला किया। काम था नहीं, ऐसे में 30 से 35 साल के इन युवाओं ने मणिपुर के उत्लौ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के ग्रामीण युवा कौशल प्रशिक्षण (STRY Scheme) में भाग लिया। इसमें इन युवाओं ने सब्जियों की संरक्षित खेती करने की ट्रेनिंग ली। इन युवाओं ने कोरोना काल के दौरान ही ककड़ी की एक किस्म आलमगीर-180 (Alamgir-180) की गैर-मौसमी खेती शुरू की। उन्होंने 1,250 वर्ग मीटर में इसकी खेती की। ककड़ी के बीज बोने के करीबन डेढ से दो महीने में 11 बार कटाई करके 1,865 किलोग्राम/1,250 वर्ग मीटर की उपज हुई।
ककड़ी की खेती में 11,200 रुपये की लागत आई। 30 रुपये प्रति किलो की औसत दर से स्थानीय व्यापारियों को ककड़ी बेची। इससे इन युवाओं को 55,950 रुपये की कमाई में सीधा 44,750 रुपये का मुनाफ़ा हुआ। इन युवाओं से प्रभावित होकर आस-पास के अन्य किसान भी ऐसी ही आधुनिक किस्मों को अपनाकर खेती से मुनाफ़ा कमाने की राह पर निकल पड़े।
गाय के गोबर से तैयार किए ईको फ्रेंडली दीये, महिला किसानों की आमदनी का ज़रिया
किसानों का ज़िक्र हो और महिला किसान की बात न हो, ऐसा भला हो सकता है क्या! भारत में कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी करीबन 71 फ़ीसदी है। महिला किसान भारत के कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों की रीढ़ हैं। ऐसे में कोरोना संकट के बीच खेती-किसानी में महिलाओं को सशक्त करने के मकसद से देहरादून स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने स्थानीय रूप से उपलब्ध कच्चे माल का उपयोग कर महिलाओं की आय को बढ़ाने की दिशा काम किया। 50 स्थानीय महिला किसानों को जड़ी-बूटियों के साथ गाय के गोबर का इस्तेमाल कर दीयों के निर्माण की ट्रेनिंग दी गई। आज ये महिलाएं पैसों के लिए घर के पुरुष वर्ग पर निर्भर नहीं हैं। ये स्थानीय महिलाएं 50 हज़ार से अधिक दीये तैयार कर 70 हज़ार से अधिक की कमाई कर लेती हैं।
पूरी तरह से ऑर्गेनिक चीज़ों से तैयार इन हर्बल दीयों को मिट्टी के दीयों की तुलना में पसंद भी किया जा रहा है। ये दिए पूरी तरह से इको फ्रेंडली हैं। इसके बचे अवशेषों को हर्बल राख के रूप में इस्तेमाल में लाया जा सकता है। वहीं हानिकारक कीड़ों को मारने के लिए पौधों पर छिड़काव के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। यही नहीं, इस्तेमाल किए जाने के बाद ये दीये कुछ दिनों बाद खाद में तब्दील हो जाते हैं। इन हर्बल दीयों को सूखे गोबर में महीन मिट्टी मिलाकर तैयार किया जाता है। सुगंध लाने के लिए नीम, लैंटाना, लेमन घास और तुलसी के पत्तों को साथ में पीसकर गोबर और मिट्टी के बनाए गए मिश्रण में मिला दिया जाता है। फिर इसका आटा गूंद, लोई बनाकर दीयों का आकार दिया जाता है।
केले के भाव में आई भारी गिरावट, आटा बनाकर किसानों ने बढ़ाई आय
लॉकडाउन के कारण केले के दाम अचानक से लुढ़क गए। स्थिति ऐसी आई कि कम दाम होने के बावजूद खरीदारों का अकाल पड़ गया। तब तब कर्नाटक के केला किसानों ने केला से आटा बनाकर इस समस्या का हल निकाला। कर्नाटक के तुमकुर की रहने वाली नयना आनंद ने आईसीएआर-कृषि विज्ञान केंद्र, अलाप्पुझा से संपर्क कर केले से आटा बनाने की विधि जानी। वॉयस नोट और मैसेज के ज़रिए कच्चे केले से आटा बनाने की ट्रेनिंग ली। इसके बाद एक हफ़्ते के भीतर ही नयना ने केले के आटे के दो फ्लेवर मीठा और नमकीन तैयार कर दिखाए। उन्होंने अपने इस सफल प्रयोग के बारे में उत्तर कन्नड़ जिले के किसानों के वहाट्सऐप ग्रुप ‘एनी टाइम वेज़ीटेबल’ में जानकारी दी। इसके बाद अन्य किसानों ने भी केले से आटा बनाने की विधि शुरू कर दी।
कच्चे केले से आटा बनाने का तरीका बेहद आसान है। कम लागत और आसानी से उपलब्ध साधनों से ही केले का आटा बनाया जा सकता है। सबसे पहले कच्चे केले के छिलके हटा दें। फिर केले को एक चौथाई इंच के टुकड़ों में तिरछा काट लें। काटने के बाद इसे अच्छे से दो से तीन दिन के लिए धूप में सूखा दें। अच्छे से सूखने के बाद इसे मिक्सी में पीस लें और एक हवा बंद डिब्बे में स्टोर कर लें। इसे बनाने में न तो महंगे उपकरण की ज़रूरत होती है और न ही भारी निवेश की। यही कारण है कि कच्चे केले से आटा बनाने की विधि हाल के दौर में किसानों और गृहणियां के बीच काफी प्रचलन में है। इसके स्वास्थ्यवर्धक फायदों को देखते हुए कच्चे केले की आटे की कीमत बाज़ार में 150 से 500 रुपये प्रतिकिलो रहती है। इसे किसान या ग्रहणी स्थानीय बाज़ार में ही आसानी से बेच सकते हैं।
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